अमरनाथ यात्रा भगवान शिव के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। जम्मू और कश्मीर में स्थित श्रीनगर से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी और समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा की यात्रा काफी मुश्किलों से भरी होती है लेकिन आस्था से ओत-प्रोत भोले बाबा के भक्त प्रत्येक साल ‘हर हर महादेव’ का जाप करते हुए इस यात्रा को तय करते हैं। यह चीज अपने आप में बताने के लिए काफी है कि अमरनाथ यात्रा भगवान शिव के भक्तों के लिए कितना महत्व रखता है और उनकी इस यात्रा में कितनी आस्था है। अब ऐसे में इस साल भी बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए शुरू होने वाली यात्रा की नयी तारीख की घोषणा कर दी गयी है।
कब से शुरू होगी अमरनाथ यात्रा?
हर साल अमरनाथ श्राइन बोर्ड मीटिंग कर के अमरनाथ यात्रा की नयी तारीख की घोषणा करता है और इस साल यह तारीख 28 जून से 22 अगस्त तक की तय हुई है। इस साल अमरनाथ यात्रा 56 दिनों तक जारी रहने वाली है और फिर 22 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन यह यात्रा समाप्त हो जायेगी।
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अमरनाथ यात्रा से जुड़ी कथा क्या है?
अमरनाथ यात्रा को लेकर दो कथाएं आमजनों में प्रचलित है। एक कथा के अनुसार तो यह मान्यता है कि एक बार भगवान शिव माता पार्वती को अमर होने की कथा सुना रहे थे। माता पार्वती इस कथा को सुनते-सुनते बीच में ही सो गयीं लेकिन वहां मौजूद एक कबूतर के जोड़े ने यह पूरी कथा सुनी और वे अमर हो गए।
वहीं एक कथा और है जो अमरनाथ यात्रा से जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार बूटा मलिक नाम का एक मुस्लिम चरवाहा था। उसे एक दिन पहाड़ों में एक ऋषि मिले और दोनों की आपस में मित्रता हो गयी। एक दिन बहुत ठंड हो रही थी इस वजह से उन दोनों ने एक गुफा में शरण ली लेकिन गुफा में भी उतनी ही सर्दी हो रही थी। ऐसे में साधु ने बूटा मलिक को कोयले की एक बोरी दी जो सुबह तक सोने में तब्दील हो गयी। यह देख कर बूटा मलिक को बड़ा आश्चर्य हुआ। बूटा जब उस गुफा से बाहर मिले तो उन्हें साधुओं का एक जत्था मिला जो कि भगवान शिव के दर्शन को भटक रहा था। तब बूटा मलिक ने उन साधुओं से कहा कि वो अभी भगवान शिव से साक्षात मिलकर आ रहे हैं और वो उन साधुओं को उसी गुफा में वापस ले गए। जब ये सभी साधु उस गुफा में पहुंचे तो उन्हें वहां बर्फ से निर्मित एक विशाल शिवलिंग मिला जिनके बगल में माता पार्वती और भगवान गणेश बैठे कर अमर कथा सुन रहे थे।
आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि बूटा मलिक का परिवार आज भी मौजूद है और वे लोग बटकोट नाम की जगह पर रहते हैं। उनके परिवार वालों की मानें तो उस इलाके के मुसलमान भी अमरनाथ यात्रा का बेहद सम्मान करते हैं और यात्रा की अवधि में वहां कोई मुसलमान मांस वगैरह का सेवन नहीं करता है। हालांकि कई लोग अमरनाथ यात्रा से जुड़ी बूटा मलिक की कहानी को नहीं मानते हैं।
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कैसे पहुंचे अमरनाथ?
बाबा अमरनाथ के दर्शन करने के दो रास्ते हैं पहलगाम और सोनमर्ग बालटाल। आप चाहे देश के किसी भी हिस्से में रह रहे हों आपको अमरनाथ यात्रा के लिए पहले या तो पहलगाम पहुंचना होगा या फिर सोनमर्ग बालटाल। इन जगहों पर पहुँचने के बाद आगे की यात्रा भक्त पैदल तय करते हैं। पहलगाम से बाबा अमरनाथ के गुफा की दूरी 48 किलोमीटर है लेकिन फिर भी अधिकतर भक्त पहलगाम से यात्रा करते हैं क्योंकि यहाँ से यात्रा काफी सुविधाजनक है। वहीं दूसरी तरफ बालटाल से बाबा अमरनाथ के गुफा की दूरी महज 14 किलोमीटर है लेकिन यह रास्ता काफी मुश्किलों से भरा है।
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