नाग पंचमी विशेष: नागों के राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने दिया था उन्हें वरदान

भगवान शिव को अजन्मा माना गया है, कहा जाता है कि भगवान शिव का ना तो कोई आरंभ है और ना ही अंत। इसलिए उन्हें अवतार न मानते हुए साक्षात ईश्वर माना जाता है और इसीलिए भक्तों के द्वारा उन्हें देवों के देव की संज्ञा दी गई है। भगवान शिव एकमात्र ऐसे देव हैं जो हिमालय में निवास करते हैं। उनका रुप भी बाकी देवों से भिन्न है उनके हाथ में त्रिशुल, सिर पर गंगा और गले पर नाग विराजमान है। भगवान भोलेनाथ जगत के कल्याण की हमेशा कामना करते हैं। लोगों को सरक्षित रखने के लिए ही उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान विष का पान कर लिया था। भगवान शिव की यही खूबियां उन्हें भक्तों का प्रिय बनाती हैं। आज हम इस लेख के जरिये आपको बताएंगे कि भगवान शिव के गले में विराजमान नाग किसका प्रतीक है।

भगवान शिव के गले में विराजमान सर्प किस चीज का है प्रतीक

भगवान शिव के गले में विराजमान नाग किस चीज का प्रतीक है यह बताने से पहले हम आपको बता दें कि इस नाग का नाम वासुकी है। पुराणों में बताया गया है कि यह नाग नागों का राजा है और नागलोक पर शासन करता है। इसी नाग ने सागर मंथन के समय रस्सी का काम किया था। ऐसा माना जाता है कि वासुकी नाग शिव के परम भक्त थे और इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ही शिवजी ने इन्हें नागलोक का राजा बनाया था और इसके साथ ही अपने गले में आभूषण की तरह इन्हें जगह दी थी।

भगवान शिव के गले में विराजमान सांप यह दर्शाता है कि सर्प भगवान शिव के अधीन हैं। इसके साथ ही यह सांप इस चीज का भी प्रतीक है कि शिव तमोगुण, विकार और दोषों के भी नियंत्रक व संहारक हैं। इसीलिए भगवान शिव को कालों का काल भी कहा जाता है। यह सर्प कुंडलिनी शक्ति का भी प्रतीक है जो निष्क्रिय ऊर्जा कही जाती है और हर इंसान में यह ऊर्जा विराजमान होती है। भगवान शिव के गले में सर्प का होना यह भी दर्शाता है कि इंसान अगर अपने अंदर छुपी ऊर्जा यानि कुंडलिनी शक्ति को जगा दे तो वह शिवत्व को उपलब्ध हो सकता है और उसका जीवन सफल हो सकता है। इसके साथ ही उनके गले में सर्प का होना यह भी दर्शाता है कि कुंडलिनी शक्ति का स्थान सर्वोच्च है।

कैस हुई नागों की उत्पत्ति

ऐसा माना जाता है कि नागों की उत्पत्ति कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू की कोख से हुई। इनके कई पुत्रों में अनंत, कर्काटक, तक्षक, वासुकी, कुलिक और पिंगला थे। उनके पुत्रों में से वासुकी ने भगवान शिव की सेवा करना स्वीकार किया था। माना जाता है कि वासुकी का राज्य कैलाश पर्वत के ही निकट था। उन्होंने अपनी भक्ति से भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया था जिसके बाद शिव ने उनको नाग लोक का राजा बनाया। कुछ मान्यताओं के अनुसार शिव लिंग की पूजा की शुरुआत भी नाग जाति के लोगों के द्वारा ही की गई थी। इसके बाद अन्य जातियोें के लोगों ने भी शिव लिंग की पूजा करना आरंभ कर दिया।