क्यों खारा है समुद्र का पानी, जानें धार्मिक वजह

‘जल ही जीवन है’ इसके बारे में तो आपने ज़रुर सुना होगा लेकिन जीवन का आधार माना जाने वाला समुद्र का पानी खारा है। पौराणिक कथाओं की मानें तो एक समय पर समुद्र का पानी दूध की तरह सफेद और मीठा था, लेकिन अब पानी का स्वाद इतना खारा है कि वो किसी काम नहीं आ सकता है। हालांकि धार्मिक मान्यतानुसार समुद्र का पानी खारा होने के पीछे कुछ रहस्य हैं। तो आइए पौराणिक कथा के माध्यम से जानते हैं इसके पीछे का रहस्य-

माता पार्वती पर मोहित हो गए समुद्र देव

शिव महापुराण में बताई गई कथा के अनुसार, ब्रह्माजी के आदेश को मानते हुए हिमालय बेटी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कई सालों तक कठोर तपस्या की थी। बताया गया है कि ब्रह्माजी के आदेश के बाद महर्षि नारद ने पार्वती को पंचाक्षर मंत्र ‘शिवाय नमः’ की दीक्षा दी थी। इस दीक्षा को लेने के बाद पार्वती सहेलियों के साथ तपोवन में जाकर कठोर तपस्या करने लगीं। उनकी तपस्या के तेज़ से तीनों लोक भयभीत हो उठे। इस समस्या के समाधान के लिए जब सभी देवता माता पार्वती के पास पहुंचे तो माता पार्वती के सुंदर स्वरूप को देखते समुद्र के देवता उनपर मोहित हो गए।

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माता पार्वती के सामने रखा शादी का प्रस्ताव

माता पार्वती की तपस्या पूरी होने के बाद समुद्र के देवता ने देवी उमा के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया (देवी पार्वती को उमा के नाम से भी जानते हैं) । जवाब में देवी उमा ने उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए बड़ी विनम्रता के साथ कहा- ‘मैं भगवान शिव से प्रेम करती हूं और उन्हीं से शादी करना चाहती हूं’ ।  देवी उमा का जवाब सुनते ही समुद्र देव क्रोधित हो गए और भगवान शिव को बुरा भला कहने लगे। भोलेनाथ का तिरस्कार करते हुए उन्होंने कहा- ‘उस भस्मधारी आदिवासी में ऐसा क्या है, जो मुझमें नहीं है, मैं सभी की प्यास बुझाता हूं और मेरा चरित्र दूध की तरह सफेद है। हे उमा, तुम मुझसे शादी कर लो और समुद्र की रानी बन जाओ। ’

माता पार्वती ने दे दिया श्राप

समुद्र देव के ये कटु वचन और भगवान शिव का तिरस्कार होता देख माता पार्वती उनपर बहुत क्रोधित हुई। उन्होंने गुस्से में समुद्र देव को श्राप देते हुए कहा- जिस मीठे पानी पर तुम्हें इतना घमंड है, वह खारा हो जाएगा और तुम्हारा पानी किसी भी मनुष्य के पीने लायक नहीं रह जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इस घटना के बाद समुद्र का पानी खारा हो गया और पीने लायक नहीं रहा।

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जानें कैसे पड़ा माता पार्वती का नाम उमा

पौराणिक कथा के अनुसार, हिमालय उर्फ हिमवान के यहां एक बार कश्यप जी पधारे। हिमालय उनसे मशहूर होने,अक्षय लोक पाने और पूजनीय बनने का तरीका पूछने लगे। कश्यप जी ने उन्हें जवाब में कहा- ‘कठिन तपस्या करो और गुणवान संतान पैदा करो’। यह कहकर वो वहां से चले गए।

कश्यप जी का कहना मानकर हिमालय ने ऐसी तपस्या की, जिसका कोई मुकाबला नहीं था। उनकी कठिन तपस्या  देख खुद भगवान ब्रह्मा उनके पास पहुंचे और बोले- ‘तुम्हारी इस तपस्या के प्रभाव से तुम्हें ऐसी पुत्री प्राप्त होगी, जो पूरे समाज में तुम्हारा नाम रौशन करेगी और तुम्हारा मान-सम्मान बढ़ाएगी। करोड़ों तीर्थ तुम्हारे यहां वास करेंगे और देवता भी तुमको पूजेंगे।  इस वरदान से हिमालय की पत्नी मैना ने अपर्णा नाम की पुत्री को जन्म दिया। अपर्णा काफी समय तक भूखी प्यासी रही। उसे उपवास से रोकने के लिए मां ने कहा, ‘बेटी उमा, ऐसा ना करो’। जिसके बाद माता पार्वती को देवी उमा के नाम से जाना जाने लगा।