सावन का महीना हो और शिव जी की बात न हो, ऐसा तो हो नहीं सकता। शिव के भक्त बाबा का आशीर्वाद पाने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए काँवड़ यात्रा पर निकल पड़े हैं। हरिद्वार, नासिक, काशी, प्रयाग और उज्जैन जैसे पावन तीर्थ स्थानों पर इन दिनों कावंड़ियों की ही धूम है। बोल बम के जयकारों के साथ काँवड़िये कांधे पर काँवड़ रखकर निकल पड़े हैं। सावन के इसी रंग में हम आज आपको बताने जा रहे हैं शिवजी की पूजा से जुड़ी एक ख़ास और ज़रुरी बात। दरअसल, शिव पूजा के दौरान आपने ये देखा होगा कि इस दौरान शिव जी को बेल पत्र चढ़ाने का विधान है। लेकिन क्या आपको यह पता है कि उन्हें बेल क्यों चढ़ाया जाता है और बेल पत्र को चढ़ाते समय भक्तों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? तो चलिए हम इस बारे में जानते हैं।
इसलिए चढ़ाया जाता है शिव जी को बेल पत्र
बेल के पेड़ की पत्तियों को बेल पत्र कहते हैं। बेल पत्र को संस्कृत में ‘बिल्वपत्र’ कहा जाता है। बेल पत्र में तीन पत्तियाँ एक साथ जुड़ी होती हैं लेकिन इन्हें एक ही पत्ती मानते हैं। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्र प्रयोग होते हैं और इनके बिना शिव की उपासना सम्पूर्ण नहीं होती। यह भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि बेल पत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है। पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। पूजा के साथ ही बेल पत्र के औषधीय प्रयोग भी होते हैं। इसका प्रयोग करके तमाम बीमारियां दूर की जा सकती हैं। हालाँकि बेल पत्र को तोड़ने के नियम भी शास्त्रों में बनाए गए हैं। जिसको जानना आवश्यक है।
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बेल पत्र को तोड़ने के नियम
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को अथवा संक्रांति के समय और सोमवार को बेल पत्र को नहीं तोड़ना चाहिए। इन तिथियों या वार से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए। स्कंदपुराण में यह भी कहा गया है कि अगर नया बेल पत्र न मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए गए बेलपत्र को भी धोकर कई बार उनका प्रयोग किया जा सकता है। टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेल पत्र ही तोड़ना चाहिए, कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए। पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे। बेल पत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए।
शिव जी को बेल ऐसे चढ़ाएँ बेल पत्र
- महादेव को बेल पत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर होना चाहिए।
- बेल पत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए।
- बेल पत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं। ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं।
- शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए।