जैसा कि हमने पहले भी बताया था कि जब सूर्य राशि परिवर्तन करके नई राशि में प्रवेश करता है तो उस दिन को उस राशि के संक्रांति के नाम से जाना जाता है। ऐसे में इस वर्ष 14 मई शुक्रवार के दिन वृषभ संक्रांति है। यानी कि इस दौरान सूर्य राशि परिवर्तन करके वृषभ राशि में प्रवेश कर जाएगा। साल में यूँ तो कुल 12 संक्रांति होती है लेकिन इन सभी बारह संक्रांतिओं में मकर संक्रांति और वृषभ संक्रांति का सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है।
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वृषभ संक्रांति के दिन भी पवित्र नदियों में स्नान करने का, जप तप करने का, पूजा करने का और दान आदि देने का विशेष महत्व होता है।
वृषभ संक्रांति का महत्व
वृषभ संक्रांति के दौरान सूर्य देवता मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं। साथ ही इस दौरान सूर्य देवता 9 दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में भी आते हैं। ऐसे में इन 9 दिनों में बेहद ही तेज गर्मी पड़ती है। सूर्य की परिक्रमा के चलते इन 9 दिनों को नवतपा कहा जाता है। यही वजह है कि इस दौरान जल का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसे में मुमकिन हो तो इस दौरान अपने घर के बाहर प्याऊ लगवाए या प्यासे राहगीरों को पानी अवश्य पिलाएं। ऐसा करने से व्यक्ति को यज्ञ से मिलने वाले फल के समान फल की प्राप्ति होती है। साथ ही वृषभ संक्रांति के दौरान ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण पूर्वक जाप करना भी बेहद फलदाई साबित होता है।
वृषभ संक्रांति के दौरान व्रत और पूजा
वृषभ संक्रांति के दिन व्रत करने और पूजा करने का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है वृषभ संक्रांति के दिन जो कोई भी व्यक्ति पूजा-पाठ और व्रत आदि करता है उसके जीवन में यश और वैभव की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जानकारी के लिए बता दें कि, वृषभ संक्रांति के दिन भगवान शिव के ऋषभ रूद्र स्वरूप और भगवान सूर्य की पूजा किए जाने की परंपरा सालों से चली आ रही है।
वृषभ संक्रांति से जुड़ी अन्य मान्यताएं
इस दिन दान का विशेष महत्व माना जाता है कहा जाता है यदि इस दिन गोदान किया जाए तो ऐसा करना व्यक्ति के लिए बेहद लाभकारी होता है। गोदान नहीं कर सकते हैं तो अपने अनुसार कुछ दान तो अवश्य करें। क्योंकि इस दिन बिना दान की पूजा अधूरी मानी जाती है। भारत के अलग-अलग हिस्सों में वृषभ संक्रांति को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे:
दक्षिण भारत में वृषभ संक्रांति को वृषभ संक्रमण के रूप में जाना जाता है। वहीं सौर कैलेंडर के अनुसार इस त्योहार को नए मौसम की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। तमिल कैलेंडर में इसे वैगसी मासुम का आगमन कहा जाता है। इसके अलावा मलयालम कैलेंडर में इसे ‘एदाम मसम’ कहा जाता है। बंगाली कैलेंडर में इसे ‘ज्योत्तो मश’ का प्रतीक माना जाता है। ओडिशा में वृषभ संक्रांति को ‘ब्रश संक्रांति’ के रूप में जाना जाता है।
वृषभ संक्रांति महत्व एवं पूजा विधि
- इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान शिव का पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान शिव के ऋषभ रूद्र स्वरूप को पूजा की जाती है।
- वृषभ संक्रांति के दिन यदि आप व्रत रखना चाहते हैं तो इससे पूर्व रात को आपको में जमीन पर सोने की सलाह दी जाती है।
- इसके अलावा संक्रांति के दिन गरीबों, ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को अपनी यथाशक्ति के अनुसार दान आदि करना बेहद लाभकारी माना जाता है। इसलिए बहुत से लोग इस दिन जरूरत की वस्तुएं और खानपान की चीजों का दान करते है।
- संक्रांति मुहूर्त के पहले आने वाली 16 घड़ियों को बहुत शुभ माना जाता है। इस समय में दान, मंत्रोच्चारण, पितृ तर्पण और शांति पूजा करवाना भी बहुत अच्छा माना जाता है। इसके अलावा इस समय में गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
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