वृंदावन में भी लगता है कुंभ का मेला? जानिए उससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

कुंभ मेले का आयोजन प्राचीन काल से होता आ रहा है। हिंदू धर्म में कुंभ मेले और कुंभ स्नान को बेहद महत्व भी दिया जाता है। प्रत्येक वर्ष लोग दूर-दूर से कुंभ मेले में स्नान करने पहुंचते हैं। हम में से अधिकतर लोगों को यही पता होगा कि, कुंभ मेले का आयोजन 4 जगहों पर होता है हरिद्वार, प्रयाग, नासिक, और उज्जैन। हालाँकि आपको शायद यह जानकर शायद थोड़ा अचरज भी हो की कुंभ मेला वृंदावन में भी आयोजित होता है। इसे ‘मिनी कुंभ’ के नाम से जानते हैं। 

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बेहद ही भव्य शानदार खूबसूरत और आस्था का प्रतीक कुंभ मेले की भव्यता समझना तभी आसान होता है जब एक आदमी प्रत्यक्ष रूप से उस मेले में मौजूद हो। इस वर्ष वृंदावन कुंभ 16 फरवरी,2021 से शुरू होने जा रहा है। यह आयोजन 25 मार्च 2021 तक चलेगा। वृंदावन में होने वाले कुंभ पर्व को कुंभ या वैष्णव कुम्भ के नाम से जाना जाता है। जहां संत समाज के अनुसार वृंदावन का यह कुंभ मेला लगभग 500 साल पुराना बताया जाता है वहीं, साधु समाज इसे तकरीबन 5000 साल पुराना मानते हैं। 

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मान्यता के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने यमुना नदी के किनारे बाल क्रीड़ा की तभी से कृष्ण भक्ति शाखा के संतों के लिए यह जगह बेहद ही पवित्र और खास हो गई। तभी से वे यमुना नदी के जल को चरणामृत की तरह पूजते हैं और यमुना स्नान भी कुंभ स्नान की ही तरह महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। भागवत की कथा में वृंदावन के कुंभ का वर्णन मिलता है। बताया जाता है कि, समुद्र मंथन के बाद जब अमृत कलश लेकर वरुण जी सबसे पहले वृंदावन आये और कदम के वृक्ष पर बैठे तब अमृत की कुछ बूंदें वृक्ष पर गिर गई थी। इसके अलावा माना जाता है कि, वृंदावन में जिस जगह कुंभ मेला लगता है यहां पहले एक कुंड हुआ करता था। जिसमें कालिया नाम का नाग रहता था। इस नाग के विष से कुंड के आसपास के सभी पेड़ सूख गए और पशु पक्षी मर गए। तब श्री कृष्ण ने इस कुंड में छलांग लगाई जिससे इस कुंड को अमृत तत्व प्राप्त हुआ और तभी से यहां वृंदावन में कुंभ लगने की परंपरा की शुरुआत हुई।

तो आइए जानने की कोशिश करते हैं कुंभ मेले से जुड़ी कुछ बेहद ही रोचक और हैरान कर देने वाली बातें। 

  • कुंभ मेले में प्रत्येक वर्ष ना ही केवल साधु, संत और अखाड़े बल्कि आम लोगों के साथ-साथ भारी मात्रा में विदेशी लोग भी पहुंचते हैं। 
  • कुंभ मेले का सबसे प्रमुख आकर्षण होता है साधु-संतों के 13 अखाड़े। हालांकि इसमें अब दो अखाड़े और शामिल हो चुके हैं। 
  • कुंभ मेले को दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले की मान्यता मिली है। यह देश और दुनिया का शायद इकलौता ऐसा मेला हो जिसमें ना ही केवल देश के बल्कि विदेशी भक्तों की संख्या भी हैरान कर देने वाली होती है। 
  • कुंभ मेले के दौरान प्रयागराज के संगम तट से लेकर कई 100 किलोमीटर दूर तक भक्त खुद के रहने के लिए टेंट का आयोजन करते हैं। देखने में यह नज़ारा ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि, यह अपने आप में ही एक छोटा सा शहर है। 
  • कुंभ स्नान के बारे में ऐसी मान्यता है कि, इसमें स्नान करने से ना केवल मनुष्य के पाप खत्म होते हैं बल्कि उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • प्रत्येक कुंभ मेले का पहला स्थान साधु सन्यासी करते हैं और इसके बाद ही आम लोगों को स्नान करने की अनुमति मिलती है। 
  • कुंभ मेले को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त संस्कृति विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल भी किया जा चुका है। इसके अलावा कुंभ मेले में लोगों को भारी मात्रा में रोज़गार भी मिलता है। एक आंकड़ों के अनुसार बात करें तो, साल 2013 में इलाहाबाद में हुए कुंभ मेले के दौरान लगभग 6,50,000 लोगों को रोज़गार मिला था।

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