क्या आपकी कुंडली में भी होता है कुलनाशक विषकन्या योग का निर्माण ?

हमेशा से ही ज्योतिष विज्ञान में तिथि, वार, ग्रह, नक्षत्र आदि के संयोगों से निर्मित योगों की संख्या हजारों मे रही है जिसमें गजकेसरी योग, राजयोग, हंस योग, भद्रयोग, मालवीय योग आदि जैसे कई छोटे-बड़े शुभ फलदायक योग शामिल है। ठीक इसी प्रकार ग्रहों-नक्षत्रों से बने संयोग द्वारा कुंडली में वैधव्य, नाशक, पितृदोष, ज्वालामुखी एवं विषकन्या योग जैसे अति अशुभ एवं बेहद कष्टदायक योग भी बनते हैं। कहने को तो भले ही यह दोनों योगों के अलग-अलग प्रकार हैं लेकिन दोनों में ये अंतर देखना बेहद ज़रूरी होता है कि जातक की कुंडली में बनने वाले ये योग शुभ हैं या अशुभ। 

विषकन्या योग अशुभ योगों में है सबसे सर्वोपरि

ज्योतिष विशेषज्ञों की माने तो जहाँ शुभ योगों में राजयोग और गजकेसरी योग सबसे सर्वोपरि माने जाते हैं, तो वहीं सबसे ज्यादा अशुभ योगों में विषकन्या योग सबसे ऊपर आता है। अपने नाम के ही अनुरूप गजकेसरी योग से जातक का जीवन शत्रुहन्ता, वाकपटु, राजसी सुख एवं गुणों से युक्त, दीर्घजीवी, कुशाग्रबुद्धि, तेजस्वी एवं यशस्वी बनता है। जबकि कुंडली में मौजूद ‘विषकन्या’ योग जातक के वैवाहिक जीवन में अशांति उत्पन्न करने का कार्य करता है। 

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विषकन्या योग रखता है विवाहित सुख से वंचित 

विषकन्या से ही दाम्पत्य जीवन में हानि होती है, जिससे बचने के लिए विवाह से पहले वर-वधु की कुंडली को किसी विद्वान ज्योतिषी से दिखाते हुए ज़रूरी उपाय किये जाते हैं, अन्यथा विषकन्या योग जातक को पति-पुत्रहीन, सम्पत्ति हीन, सुख की न्यूनता आदि जैसे अशुभ फल देता है।

इन छः मुख्य परिस्थितियों से होता है स्त्री की कुंडली में विषकन्या योग का निर्माण:-

नक्षत्र  वार  तिथि 
अश्लेषा तथा शतभिषा रविवार द्वितीया 
कृतिका अथवा विशाख़ा अथवा शतभिषा  रविवार द्वादशी
अश्लेषा अथवा विशाखा अथवा शतभिषा मंगलवार सप्तमी 
अश्लेषा  शनिवार द्वितीया
शतभिषा  मंगलवार द्वादशी
कृतिका शनिवार सप्तमी या द्वादशी

उपरोक्त परिस्थितियों के अलावा ये स्थितियाँ भी करती हैं विषकन्या योग का निर्माण:-

-कुंडली में शनि लग्न में , सूर्य पंचम भाव में व मंगल नवम भाव में होने पर ‘विषकन्या’ योग का निर्माण होता है। 

-कुंडली के लग्न व प्रथम भाव में कोई पाप ग्रह व अन्य शुभ ग्रह कुंडली के शत्रु क्षेत्री या षष्ठ, अष्टम व द्वादश स्थानों में बैठे हो तो भी ‘विषकन्या’ योग बनता है। 

-साथ ही किसी स्त्री की कुंडली में छठे स्थान पर कोई पाप ग्रह किसी अन्य दो शुभ ग्रहों के साथ युति बनाए तो यह ‘विषकन्या’ योग बनाता है।

-इसके अलावा यदि किसी भी स्त्री की जन्म कुंडली के सप्तम स्थान में कोई भी पापी व क्रूर ग्रह बैठा हो और उनपर कोई अन्य क्रूर अथवा पापी ग्रह दृष्टि डाल रहा हो तो इससे कुंडली में विषकन्या योग का निर्माण होता है। 

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विषकन्या योग का नकारात्मक प्रभाव

माना जाता है कि विषकन्या योग से पीड़ित जातिक को अपने जीवन में तो अशुभ फलों की प्राप्ति होती ही है। साथ ही उनके संपर्क में आने वाले लोगों का जीवन भी इस योग के प्रभाव से हमेशा अस्त-व्यस्त हो जाता है, जिसके चलते उनके जीवन में भी दुर्भाग्य छा जाता है। विषकन्या स्त्रियाँ अपने माता-पिता, भाई-बहन के साथ-साथ अपने ससुराल वालों के लिए भी कष्टकारी सिद्ध होती है।

किन परिस्थितियों में विषकन्या योग हो जाता है शून्य-

-यदि किसी की कुंडली में विषकन्या योग तो बन रहा है, परंतु जन्म लग्न या चन्द्र लग्न से सप्तम भाव में सप्तमेश या शुभ ग्रह बैठा हो तो कुंडली में ‘विषकन्या’ योग से बनने वाला हर प्रकार का दोष शून्य हो जाता है। 

-इसके साथ ही कुंडली में सप्तमेश शुभ स्थिति में हो और सप्तम भाव गुरु से दृष्टि कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में भी ‘विषकन्या दोष’ दूर होता है। 

-हालांकि इन स्थितियों के बावजूद भी स्त्री की कुंडली में विषकन्या योग की शांति कराना बेहद आवश्यक होता है।

विषकन्या योग शोधन हेतु ज़रूर करें ये कार्य:-

-जिस भी स्त्री की कुंडली में विषकन्या योग का निर्माण होता है उसे सर्वप्रथम हर वटसावित्री व्रत रखना चाहिए। 

-विषकन्या योग से पीड़ित कन्या के विवाह से पूर्व कुम्भ, श्री विष्णु या फिर पीपल अथवा शमी अथवा बेर के वृक्ष के साथ उसका विवाह कराना चाहिए। 

-स्त्री को विषकन्या योग से निजात पाने हेतु सर्वकल्याणकारी “विष्णुसहस्त्रनाम” का पाठ आजीवन करने की सलाह दी जाती है। 

-गुरु बृहस्पति की निष्ठा पूर्वक आराधना भी विषकन्या योग के अशुभ फलों को शून्य करती है।