वर्तमान समय के अनुसार देखा जाए तो आज-कल हर एक आम व्यक्ति भी विदेश यात्रा और विदेशों में काम करने की लत लगाए बैठा रहता है, परन्तु यह हर किसी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। ज्योतिष शास्त्र द्वारा निर्मित जन्मकुंडली के अध्ययन से बताया जा सकता है कि, किसी जातक की कुंडली में विदेश यात्रा का योग है या नहीं। किसी भी जातक की जन्मकुंडली के षष्ठ भाव, अष्टम भाव, नवम, सप्तम, बारहवां भाव विदेश यात्रा से संबंधित होते हैं, जिनके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि कब विदेश यात्रा का योग बन रहा है।
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इसी तरह से जन्मकुंडली के तृतीय भाव से भी जीवन में होने वाली यात्राओं के बारे में बताया जा सकता है। कुंडली में अष्टम भाव समुद्री यात्रा का प्रतीक होता है और सप्तम तथा नवम भाव लंबी विदेश यात्राओं या विदेशों में व्यापार, व्यवसाय एवं दीर्घ प्रवास बताते हैं। जातक यदि विदेश में अपना कोई कार्य करने की योजना बना रहा है तो इस अध्ययन के आधार पर परिणाम का आकलन किया जा सकता है।
कौन सा ग्रह बनाता है विदेश जाने का योग
ज्योतिषीय दृष्टिकोण में देखें तो जन्मकुंडली में बने कुछ विशेष ग्रहयोग ही हमारे जीवन में विदेश से जुड़कर काम करने या विदेश यात्रा का योग बनाते हैं। हमारी जन्मकुंडली में बारहवें भाव का सम्बन्ध विदेश और विदेश यात्रा से जोड़ा गया है, इसलिए दुःख भाव होने पर भी आज के समय में कुंडली के बारहवे भाव को एक सुअवसर के रूप में देखा जाता है।
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चन्द्रमा को विदेश यात्रा का नैसर्गिक कारक माना गया है। कुंडली का दशम भाव हमारी आजीविका को दिखाता है तथा शनि आजीविका का नैसर्गिक कारक होता है। अत:, विदेश यात्रा के लिये जन्मकुंडली का बारहवां भाव, चन्द्रमा, दशम भाव और शनि का विशेष महत्व होता है। जानिए कुंडली में कौन से योग कराते हैं विदेश यात्रा।
रज्जु योग
सभी ग्रह चर राशि में हो (इस योग को रज्जु योग कहते हैं) तथा अष्टमेष व द्वादशेष का केंद्र प्रभाव विदेश में यात्रा करवाता है।
कई देशों में कारोबार
चतुर्थ स्थान पर बली शनि व गुरु चर राशि में वक्री होकर बैठे हो तो व्यक्ति कई देशों में कारोबार करता है।
विदेश में नौकरी
सूर्य राहु का योग 1,5,9,10 स्थान में हो तो जातक विदेश में नौकरी करता है।
धनेश व लाभेष बली होकर व्यय या अष्टम स्थान पर स्थित हो तो व्यक्ति को विदेशी स्त्रोत से धन लाभ होता है।
- यदि चन्द्रमा कुंडली के बारहवें भाव में स्थित हो तो विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर आजीविका का योग होता है।
- यदि कुंडली में दशमेश, बारहवें भाव और बारहवें भाव का स्वामी दशवें भाव में हो तो भी विदेश में या विदेश से जुड़कर काम करने का योग होता है।
- चन्द्रमा यदि कुंडली के छठे भाव में हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है।
- चन्द्रमा यदि दशवें भाव में हो या दशवें भाव पर चन्द्रमा की दृष्टि हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।
- यदि लग्नेश बारहवें भाव में और बारहवें भाव का स्वामी लग्न में हो तो भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
- भाग्य स्थान में बैठा राहु भी विदेश यात्रा का योग बनाता है।
- चन्द्रमा यदि सप्तम भाव या लग्न में हो तो भी विदेश से जुड़कर व्यापार का योग बनता है।
- शनि आजीविका का कारक है अतः कुंडली में शनि और चन्द्रमा का योग भी विदेश यात्रा या विदेश में आजीविका का योग बनाता है।
- यदि भाग्येश बारहवें भाव में और बारहवें भाव का स्वामी भाग्य स्थान (नवें भाव) में हो तो भी विदेश यात्रा का योग बनता है।
- यदि सप्तमेश बारहवें भाव में हो और बारहवें भाव का स्वामी सातवें भाव में हो तो भी विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर व्यापार करने का योग बनता है।
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कुंडली में विदेश यात्रा का योग बार-बार बिगड़ रहा हो तो करें ये उपाय
- चार से छह रत्ती का गोमेद त्रिधातु में पहनने से विदेश यात्रा की बाधाएं दूर होती हैं। बुधवार से शुरू करके 49 दिन तक कबूतरों को बाजरा दें। तुलसी की माला लेकर इस मंत्र का जप करें-
अनन्याश्चितयंतो माये जनापयर्पासने।
नेषा नित्या मियुक्तानां योगक्षेम वहांम्यहम्।।
- लकड़ी के पटले पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर मां लक्ष्मी को स्थापित करें उसके बाद पश्चिम को मुख करके देसी घी का दीपक जलायें। एक शंख लेकर उस पर केसर के घोल से स्वस्तिक बनायें और मां लक्ष्मी के बगल में स्थापित करें। मां लक्ष्मी व शंख का पूजन कर भोग अर्पित करें।
- मां लक्ष्मी और शंख की स्थापना के बाद स्फटिक की माला से ॐ अनंग वल्लाभाये विदेश गमनार्थ कार्य सिध्यर्थे नम: का जाप करें। इस चमत्कारी मंत्र का पांच दिन में कम से कम 11000 और अधिक से अधिक 24000 जाप करें। अनुष्ठान पूर्ण होने पर मां लक्ष्मी की तस्वीर को मंदिर में रखें और शंख आदि को कपड़े में लपेट कर किसी ऐसे स्थान पर रखें जहां कोई उसे छुए नहीं। विदेश यात्रा संबंधित बाधाओं से मुक्ति मिलेगी।
- प्रतिदिन हनुमानजी के मंदिर में जाकर उनसे प्रार्थना करें। हनुमान चालिसा का पाठ करें। इसके बाद हनुमान जी की प्रतिमा की उलटी परिक्रमा यानी घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में करें। परिक्रमा ऐसे करें कि बजरंग बली की मूर्ति आपके बाएं हाथ की ओर रहे। तीन परिक्रमा करें।
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उदाहरण
जन्म तिथि – 29/9/1980
जन्म समय – 4:15
जन्म स्थान – बेंगलुरु
यह पत्रिका मेरे परिचित आशीष जी की है। वर्तमान समय में आशीष जी विदेश में स्थित एक अच्छे व्यापारी के नाम से जाने जाते हैं। इन्होंने बचपन से ही विदेश में पढ़ाई लिखाई कर वहीं अपना व्यापार कर अपनी आजीविका का स्थान बना लिया। इनकी पत्रिका में कर्म क्षेत्र का मालिक12वें घर में स्थित और 12वें घर का स्वामी चंद्रमा दशम भाव यानी कर्म क्षेत्र में स्थित है।
यहां पर शुक्र और चंद्रमा का विपरीत राज योग भी बनता है क्योंकि, चंद्रमा के घर पर स्थित शुक्र व शुक्र की घर पर चंद्रमा स्थित है, जो की सीधे विदेशी कार्य को दर्शाता है, और साथ ही वहां की पूर्ण नागरिकता को प्राप्त भी करता है। जो की आशीष जी की पत्रिका में प्राप्त मिलता है। प्रमाणित रूप से कई योग हैं जो की पूर्ण रूप से विदेश में स्थित कारोबार व नौकरी के साथ नागरिकता को भी प्राप्त करता है।
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