वनस्पति विज्ञान के विश्व विख्यात वैज्ञानिक डॉक्टर जगदीश चन्द्र बसु का एक बचपन का किस्सा है जिसके मुताबिक बसु एक बार शाम के वक़्त किसी पेड़ पर अटके एक गेंद को उतारने की कोशिश कर रहे होते हैं। उन्हें ऐसा करते देख उनकी माँ उन्हें समझाती हैं कि शाम में पेड़ को तंग नहीं करना चाहिए। बसु ने उत्सुकता में माँ से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि शाम में पेड़ सो रहे होते हैं। यह सुनकर बसु आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि उस समय पेड़-पौधों की गिनती जीवित प्राणियों के बीच नहीं होती थी। बाद में डॉक्टर जगदीश चंद्र बसु ने अपने शोध और बुद्धि के बल पर दुनिया को दिखाया कि पेड़-पौधे न सिर्फ जीवित होते हैं बल्कि उन्हें दर्द भी महसूस होता है।
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यह कहानी यहां पर आपको इसलिए बताई गयी क्योंकि भले ही बसु ने यह खोज 19वीं सदी में की लेकिन सनातन धर्म हजारों साल से पेड़-पौधों को जीवित प्राणियों की तरह मानता आया है। यह किस्सा इस बात का एक और प्रमाण है कि सनातन धर्म वैज्ञानिक पद्धति के हिसाब से बुना गया, लिखा गया और अपनाया गया है। हमारे शास्त्रों, पुराणों, वेदों में वृक्ष और पौधों को देव तुल्य माना गया है। इन्हीं में से एक वृक्ष है बरगद का और आज हम आपको इस लेख में बरगद के पेड़ के महत्व के बारे में बताने वाले हैं।
सनातन धर्म में बरगद
दीर्घायु, विशालकाय, जटाधारी, घना और हरा-भरा बरगद का वृक्ष कभी गाँव कस्बों में बड़ी आसानी से देखने को मिल जाया करता था। आम लोग इसकी पूजा करते, बच्चे इसकी छाँव में खेलते और पुरुष व वृद्ध के सफर में ये एक पनाहगार का काम करता था। आबादी बढ़ती गयी और बरगद के लिए जगह भी कम होते गए। शहरों में आपको तो यदा-कदा ही कोई बरगद का वृक्ष देखने को मिलेगा लेकिन गाँव में भी इसकी संख्या अब काफी सीमित हो चुकी है। इन सब के बावजूद सनातन धर्म में इस दिव्य वृक्ष का महत्व आज भी है।
बरगद के पेड़ को वट वृक्ष भी कहा जाता है। बरगद की उत्पत्ति को लेकर सनातन धर्म में हमें वामनपुराण का एक श्लोक मिलता है। यह श्लोक है :
यक्षाणामधिस्यापि मणिभद्रस्य नारद, वटवृक्ष: समभव तस्मिस्तस्य रति: सदा॥
इस श्लोक के मुताबिक यक्षों के राजा मणिभद्र से वट वृक्ष की उत्पत्ति हुई।
जब सृष्टि का सृजन हो रहा था तब भगवान विष्णु की नाभि से कमल का पुष्प पैदा हुआ। ऐसे में अन्य देवताओं ने भी अन्य वनस्पतियों का सृजन किया। इनमें से यक्षों के राजा मणिभद्र ने वट वृक्ष का सृजन किया। यही वजह है कि वट वृक्ष अर्थात बरगद को कई और नाम जैसे कि ‘यक्षवास’, ‘यक्षतरु’, ‘यक्षवारुक’ आदि नामों से भी जाना जाता है।
सनातन धर्म में पाँच वट वृक्षों को बेहद पवित्र माना गया है। इनके नाम हैं अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्ध वट। वट वृक्ष सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए कितना पवित्र है इसका अंदाजा हमें स्कंद पुराण के एक श्लोक से मिलता है। यह श्लोक है:
अश्वत्थरूपी विष्णु: स्याद्वरूपी शिवो यत:॥
अर्थात :
पीपल भगवान विष्णु का रूप है और बरगद भगवान शिव का।
यानी कि बरगद के पेड़ को सनातन धर्म में भगवान शिव का दर्जा प्राप्त है। वैसे तो मान्यता ये भी है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेवों की ऊर्जा समाहित है। इस पेड़ के जड़ में परमपिता ब्रह्मा वास करते हैं, मध्य भाग में भगवान विष्णु और अग्रभाग में स्वयं भगवान महादेव का वास है। मान्यता है कि सृष्टि में प्रलय के वक़्त भगवान कृष्ण ने मार्कन्डेय को अक्षयवट के पत्ते पर ही दर्शन दिये थे।
सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ रामायण और महाभारत में भी बरगद के वृक्ष का हमें वर्णन मिलता है। इसके अलावा यजुर्वेद, अथर्ववेद, शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, महोपनिषद, सुभाषितावली, मनुस्मृति आदि में भी वट वृक्ष का वर्णन आता है।
सनातन धर्म में बरगद के पेड़ को काटना पुत्र हत्या के समान माना गया है। इसकी पूजा से जीवन में सुख, दीर्घायु और समृद्धि आती है। लेकिन वट वृक्ष बस धार्मिक दृष्टिकोण से ही अधिक महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इस वृक्ष का योगदान मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण में भी अतुल्य है। आइये एक नजर उस पर भी डाल लेते हैं।
बरगद का आयुर्वेदिक महत्व
बरगद का वृक्ष पूजनीय तो है ही लेकिन इस वृक्ष का लगभग हर हिस्सा आयुर्वेदिक इलाज में उपयोग होता है। इसका छाल, इसके पत्ते, तना और जड़ तक आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस वृक्ष से कफ, वात, पित्त दोष, नाक, कान, बाल व चमड़े से जुड़ी समस्याओं का समाधान होता है। इसके साथ ही आयुर्वेद में कुछ गंभीर बीमारियों जैसे कि खून की उल्टी होना इत्यादि में भी बरगद के वृक्ष का औषधीय इस्तेमाल होता है।
इसके अलावा पर्यावरण को साफ रखने में भी वट वृक्ष की अहम भूमिका रहती है। कहा जाता है कि एक वट वृक्ष हर रोज 20 घंटे ऑक्सीजन वायुमंडल में छोड़ता है। अपने घने रूप की वजह से अनेक चिड़ियों का आश्रय होता है बरगद का पेड़।
यही वजहें हैं कि वट वृक्ष यानी कि बरगद का पेड़ सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए इतना पूजनीय है। बरगद के वृक्ष का महत्व सनातन धर्म में बस यहीं तक सीमित नहीं है। मान्यता है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही पुनर्जीवित किया था। सावित्री स्वयं बरगद के वृक्ष में वास करती हैं। प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का पर्व भी मनाया जाता है। इस साल यानी कि साल 2021 में यह पर्व 24 जून को है।
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वट पूर्णिमा का ये पर्व सुहागन महिलाएं अपने पति के दीर्घायु होने की कामना के लिए करती हैं। ये सारी ही महिलाएं न जाने कब से वट वृक्ष से आरोग्यता, सुख, समृद्धि और शुभता की प्रार्थना करती आ रही हैं और वट वृक्ष हजारों वर्षों से इन महिलाओं की कामनाओं की पूर्ति करता चला आ रहा है। मानव और वृक्ष का यह अद्भुत रिश्ता आपको सनातन धर्म में ही देखने को मिलेगा।
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