ज्येष्ठ मास में अनेक व्रत एवं त्योहार आते हैं। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का व्रत किया जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत एवं पूजन करती हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन सावित्री और सत्यवान की पूजा का विधान है।
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अलग-अलग हैं व्रत की तिथियां
भारत में वट सावित्री का व्रत देश के अलग-अलग हिस्सों में भिन्न तिथि पर रखा जाता है। पश्चिम भारत में इस व्रत को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रखा जाता है, तो वहीं उत्तरी भारत में यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को किया जाता है।
वट पूर्णिमा व्रत हिंदू त्योहारों में बहुत महत्व रखता है और इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट सावित्री पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। नारद पुराण के अनुसार वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ अमावस्या और ज्येष्ठ पूर्णिमा दोनों पर रखा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर, स्कंद पुराण में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि ज्येष्ठ माह में पूर्णिमा पर व्रत किया जाता है जबकि एक अन्य ग्रंथ में ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री का व्रत रखने की तिथि के रूप में उल्लिखित किया गया है।
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कब है वट पूर्णिमा का व्रत
वट पूर्णिमा का व्रत 21 जून, 2024 को पड़ रहा है। 21 जून को सुबह 06 बजकर 33 मिनट पर पूर्णिमा तिथि आरंभ हो जाएगी और इसका समापन अगले दिन 22 जून को 06 बजकर 39 मिनट पर होगा। इस प्रकार व्रत 21 जून को ही रखा जाएगा।
वट सावित्री या वट पूर्णिमा का व्रत त्रयोदशी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक लगातार तीन दिनों तक रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार जो महिलाएं तीन दिनों तक व्रत नहीं रख सकती हैं, वो ज्येष्ठ अमावस्या या ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत कर सकती हैं।
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वट पूर्णिमा व्रत का क्या महत्व है
हिंदू पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष त्रिमूर्ति यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक है। इस वृक्ष की पूजा करने से श्रद्धालुओं के सभी दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें सौभाग्य प्राप्त होता है।
अनेक शास्त्रों और ग्रंथों में इस व्रत के महत्व का उल्लेख किया गया है। स्कंद पुराण, भविष्योत्तर पुराण और महाभारत आदि में इस व्रत का उल्लेख मिलता है। अपने पति के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना के लिए विवाहित स्त्रियां इस व्रत को रखती हैं।
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कहां मनाया जाता है वट पूर्णिमा का व्रत
भारत के सभी हिस्सों में वट पूर्णिमा का व्रत किया जाता है। यह व्रत मां गौरी और सती सावित्री को समर्पित है। महाराष्ट्र और गुजरात में बड़ी धूमधाम से इस व्रत को किया जाता है। भारत के अन्य शहरों जैसे कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा में भी इस व्रत को करने का विधान है।
भारत के दक्षिण राज्यों जैसे कि कर्नाटक और तमिलनाडु में इस व्रत को करादयन नोन्बू के नाम से जाना जाता है। पूरे भारत में इस व्रत को पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
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वट पूर्णिमा 2024 व्रत करने की विधि
- इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान के पानी में आंवला और तिल के बीजों को डालकर नहाती हैं और फिर धुले हुए वस्त्र पहनती हैं। फिर वे अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं और चूड़ियां पहनती हैं।
- इस दिन श्रद्धालु वट वृक्ष की जड़ खाते हैं और अगर लगातार तीन दिनों तक व्रत हो, तो इसे पानी के साथ तीनों दिन लिया जाता है।
- वट वृक्ष की पूजा करने के बाद महिलाएं पेड़ के चारों ओर लाल या पीले रंग का धागा बांधती हैं। इसके बाद अक्षत, पुष्प और जल चढ़ाती हैं और फिर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
- इस दिन विशेष भोजन बनता है। पूजा के बाद परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित किया जाता है।
- महिलाएं अपने घर के बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद लेती हैं।
- इस दिन ज़रूरतमंद और गरीब लोगों को वस्त्रों, भोजन, धन आदि का दान देने का भी बहुत महत्व है। इस दिन आप बेल के वृक्ष की पूजा भी कर सकते हैं।
- वट पूर्णिमा के दिन पानी में सरसों के दाने मिलाकर स्नान करें। महिलाएं सोलह श्रृंगार कर के वट वृक्ष की पूजा करें।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्तर. इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
उत्तर. इस दिन सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।
उत्तर. 21 जून को वट पूर्णिमा है।
उत्तर. यह व्रत तीन दिनों का होता है।
उत्तर. इस दिन निर्जल व्रत रखा जाता है।
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