सनातन धर्म में वट पूर्णिमा व्रत का काफी महत्व है। प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को यह व्रत रखा जाता है। यह व्रत खासकर सुहागन महिलाएं करती हैं। ऐसे में क्या है इस व्रत का महत्व, कब है ये व्रत और कैसे करें ये व्रत, इन सभी सवालों का जवाब आज हम आपको इस लेख के माध्यम से देने वाले हैं।
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साल 2021 में कब है वट पूर्णिमा का व्रत?
साल 2021 में 24 जून को व्रत पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा। 24 जून 2021 को गुरुवार की सुबह 03 बजकर 32 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ हो जाएगी और 25 जून 2021 को शुक्रवार की रात्रि में 12 बजकर 09 मिनट पर पूर्णिमा तिथि का समापन हो जाएगा। ऐसे में वट पूर्णिमा का व्रत 24 जून को मनाया जाएगा।
क्या है वट पूर्णिमा का महत्व?
सनातन धर्म में वट वृक्ष को एक बेहद ही पवित्र वृक्ष माना गया है। सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए वट वृक्ष कितना महत्व रखता है इसका अंदाजा हमें स्कंद पुराण में वर्णित एक श्लोक से मिलता है। यह श्लोक है:
अश्वत्थरूपी विष्णु: स्याद्वरूपी शिवो यत:॥
अर्थात :
पीपल भगवान विष्णु का रूप है और बरगद भगवान शिव का।
इस श्लोक के मुताबिक वट वृक्ष को सभी देवों में से महादेव का दर्जा प्राप्त है। वैसे तो मान्यता ये भी है कि वट वृक्ष में सृष्टि को संचालित करने वाले त्रिदेवों का वास है। कहा जाता है कि इस वृक्ष के जड़ में भगवान ब्रह्मा, मध्य भाग में भगवान विष्णु और अग्रभाग में भगवान शिव का वास है। यही वजह है कि वट पूर्णिमा का व्रत और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने वाली सुहागन स्त्रियों को इन तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही वट पूर्णिमा करने वाली स्त्रियों के पति दीर्घायु होते हैं और उन्हें संतान सुख भी प्राप्त होता है। इस दिन वट वृक्ष के साथ माता सावित्री की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि माता सावित्री अपने पति सत्यवान को यमराज के पास से वापस लेकर आई थीं। इस दिन माता सावित्री की पूजा करने से सुहागन स्त्रियों के पति की आयु बढ़ती है।
आइये अब आपको वट पूर्णिमा की पूजा विधि बता देते हैं।
वट पूर्णिमा पूजा विधि
वट पूर्णिमा के दिन सुहागन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और नए कपड़े धारण करें। इस दिन खास तौर से महिलाओं को सोलह श्रृंगार करना चाहिए। इसके बाद दो बांस की टोकरी ले लें। इसमें से के बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रख लें और इसे एक कपड़े से ढक दें। इसके बाद दूसरी टोकरी में माता सावित्री की प्रतिमा रख इसे भी कपड़े से ढक दें। दोनों ही टोकरियों को लेकर घर के आसपास मौजूद वट वृक्ष के पास जाएँ। इसके बाद वट वृक्ष और माता सावित्री की पूजा करें। पूजा करने के बाद लाल धागे से वट वृक्ष को बांध कर इसकी सात बार परिक्रमा करें। वहीं वट वृक्ष के नीचे बैठ कर माता सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें।
इसके बाद गरीब व जरूरतमंद व्यक्तियों को दान करें। इस दिन श्रृंगार का सामान दान व वट वृक्ष को अर्पित करने से विशेष लाभ मिलता है। इस दिन गुड़ व चने का प्रसाद वितरित किया जाता है। घर जाएं और घर के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर व्रत खोलें।
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