श्रावण मास का महीना अपने आख़िरी चरण में है। धार्मिक दृष्टि से यह पूरा महीना महत्वपूर्ण होता है। सावन महीने के आख़िरी शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत रखा जाता है। यह व्रत धन समृद्धि की देवी और भगवान विष्णु की अर्धांगिनी माँ लक्ष्मी जी को समर्पित है। आज हम इस ख़बर के माध्यम से वरलक्ष्मी व्रत के बारे में जानेंगे। हम यह जानेंगे कि इस व्रत का महत्व क्या है। इसकी सही पूजा विधि और व्रत कथा क्या है तथा भक्तों को इस व्रत से क्या-क्या लाभ मिलते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, वरलक्ष्मी व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पड़ती है और यह तिथि शुक्रवार के दिन ही आती है। कहते हैं जो भक्त आज के दिन वरलक्ष्मी व्रत का विधि-विधान के साथ पालन करता है तो उसे माता लक्ष्मी के आशीर्वाद के रूप में अनेकों लाभ मिलते हैं। भक्तों के घर में धन-धान्य के भंडार भर जाते हैं। हालाँकि भक्तों को इस व्रत का तभी फल मिलता है जब व्रती पूर्ण विधि-विधान के साथ व्रत का पालन करता है।
वरलक्ष्मी व्रत के लाभ
शास्त्रों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि वरलक्ष्मी व्रत रखने वाले भक्तों को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। ये लाभ इस प्रकार हैं –
- व्रत रखने वाले को माँ लक्ष्मी के आशीर्वाद के रूप में धन की प्राप्ति होती है।
- जो भक्त इस व्रत को सच्चे मन से करता है उसकी जायदाद में वृद्धि होती है।
- व्रती को माँ सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसके ज्ञान में वृद्धि होती है।
- वरलक्ष्मी व्रत रखने वाला प्रेम और करुणा का पात्र बनता है।
- जो भक्त इस व्रत को रखते हैं उनके निजी जीवन में शांति बनी रहती है।
- व्रत रखने वालों के अधूरे कार्य पूर्ण हो जाते हैं।
- व्रती की सेहत दुरुस्त रहती है।
- यदि विवाहित महिलाएं इस व्रत को रखती हैं तो उन्हें माँ लक्ष्मी के द्वारा सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद मिलता है।
वरलक्ष्मी व्रत की विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के पश्चात उपासक पूजा के स्थान पर गंगा जल छिड़क ले।
- लकड़ी की चौकी पर माता लक्ष्मी और श्री गणेश की मूर्ति को स्थापित करें।
- मूर्तियों को नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं।
- अब फल और फूल चढ़ाएं।
- कलश की स्थापना करें। इसके लिए कलश में पानी भर कर उस पर एक नारियल रखें।
- माता के आगे दीया जलाएं और वरलक्ष्मी की कथा पढ़ें।
- अब महिलाओं में प्रसाद वितरित करें।
- व्रत रखने वाले भक्त शाम की पूजा के बाद केवल फलों का सेवन करें।
वरलक्ष्मी व्रत कथा
पौराणिक कथा अनुसार, मगध राज्य में कुंडी नामक एक नगर था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी चारुमति सहपरिवार रहती थी। कहते हैं कि चारुमति बेहत कर्त्यव्यनिष्ठ थी। वह दिन रात अपने सास, ससुर एवं पति की सेवा करती थी। साथ ही साथ वह नियमित रूप से माँ लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना भी करती थी। चारुमति की ये दिनचर्या उसे थका देती थी। एक रात चारुमति के सपने में आकर माता लक्ष्मी ने कहा, चारुमति तुम प्रत्येक शुक्रवार की बजाय मात्र वरलक्ष्मी व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हे मनोवांछित फल प्राप्त होगा।
अगले सुबह चारुमति ने मां लक्ष्मी द्वारा बताये गए वर लक्ष्मी व्रत को समाज के अन्य नारियों के साथ विधिवत पूजन किया। पूजन के संपन्न होने पर सभी नारियां कलश की परिक्रमा करने लगीं, परिक्रमा करते समय समस्त नारियों के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए। उनके घर भी स्वर्ण के बन गए तथा उनके यहां घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। सभी नारियां चारुमति की प्रशंसा करने लगें। क्योंकि चारुमति ने ही उन सबको इस व्रत विधि के बारे में बताई थी।