वाल्मीकि जयंती पर जानें मुहूर्त और पूजन विधि।

वैदिक काल के महान ऋषियों में जब भी विद्वानों का नाम आता है तो उसमें सबसे पहला नाम आता है महर्षि वाल्मीकि का, जिन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की। केवल संस्कृत ही नहीं उन्हें कई अन्य भाषाओं का ज्ञान भी था। इसके साथ ही वाल्मीकि विश्वभर में एक महान कवि के रूप में भी  विख्यात हुए थे। बताया जाता है कि उन्हें ये नाम एक स्थान पर सालों बैठकर घोर तपस्या करने से प्राप्त हुआ है। दरअसल, एक ही स्थान पर तप करने से उनके शरीर पर मिट्टी की बांबी बन गई थी। चूँकि मिट्टी की बांबी को वाल्मीकि कहते हैं, इसलिए इसके बाद से ही उन्हें वाल्मीकि नाम से जाना जाने लगा। इससे पहले यानी महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि जी को रत्नाकर नाम से जाना जाता था।  

वाल्मीकि जयंती का महत्व 

भारत के साहित्य को दिए अपने इस अनमोल योगदान के लिए देशभर में उनके जन्म दिवस को एक पर्व के रूप में मनाए जाने का विधान है। उनके जन्मदिन को लोग वाल्मीकि जयंती पर्व के रूप में मनाते हैं। जो हर वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को आता है। इस वर्ष यह तिथि 13 अक्टूबर, रविवार को पड़ रही है। बता दें कि आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहते हैं और हिन्दू पंचांग अनुसार इस तिथि का बहुत अधिक धार्मिक महत्व होता है।

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शरद पूर्णिमा

हिन्दू पंचांग अनुसार, हर वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन ही वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। यह पूर्णिमा तिथि हिन्दू धर्म के लिए बेहद ख़ास महत्व रखती है। इस दिन व्रत, ध्यान, दान, पुण्य आदि करने का भी मुख्य विधान है। इसके अलावा वैदिक ज्योतिष अनुसार भी यह दिन खगोलीय घटनाओं के लिए जाना जाता है, क्योंकि आश्विन पूर्णिमा के दिन दोनों चंद्रमा एवं पृथ्वी एक-दूसरे के बेहद नज़दीक होते हैं। जिसके चलते चंद्रमा की किरणें अमृत रूपी लाभदायक सिद्ध होती हैं। जिससे मनुष्य के जीवन से हर प्रकार का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, साथ ही इससे पृथ्वी पर एक प्रकार का सकारात्मक वातावरण भी तैयार होता है। जिससे सभी प्राणियों को फायदा मिलता है। 

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वाल्मीकि जयंती 2019 का शुभ मुहूर्त

सूर्योदय अक्टूबर 13, 2019, 06:20:24
सूर्यास्त अक्टूबर 13, 2019, 17:54:15
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ अक्टूबर 13, 2019, 00:39 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त अक्टूबर 14, 2019,  02:40 बजे तक

पहले महाकाव्य रामायण की रचना स्वयं वाल्मीकि जी द्वारा की गई 

महर्षि वाल्मीकि को न केवल विश्व का पहला महाकाव्य रामायण लिखने कर गौरव प्राप्त है बल्कि उन्हें एक महान कवि होने का दर्जा भी प्राप्त है। भारत का प्रथम महाकाव्य रामायण भगवान श्रीराम के संपूर्ण जीवन में घटी प्रमुख घटनाओं पर आधारित है। बताया जाता है कि जीवन में आए एक बड़े बदलाव के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी जिसके बाद ही उन्होंने रामायण ग्रंथ की महा रचना की थी। 

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महर्षि वाल्मीकि ने दिया था माता सीता को आश्रय 

पौराणिक मान्यताओं अनुसार वाल्मीकि भगवान राम के भक्त थे। नारद मुनि ने वाल्मीकि को राम नाम जपने की सलाह दी थी। जिसका उन्होंने भली-भाँती पालन भी किया। श्री राम के प्रति उनकी इस श्रद्धा को देखते हुए ही जब श्रीराम ने सीता जी का त्याग किया तो गर्भवती सीता जी ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही आश्रय लिया। यही माता सीता द्वारा लव-कुश को जन्म दिया गया। इसके साथ ही सीता जी ने अपने वनवास का अंतिम काल महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही व्यतीत किया था।

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वाल्मीकि जयंती की संपूर्ण विधि 

  • वाल्मीकि जयंती वाले दिन, प्रातः जल्दी उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ हो जाएँ। 
  • इसके बाद स्वच्छ हलके रंग के वस्त्र पहनकर सूर्य देव को जल का अर्घ दें। 
  • फिर पूजा स्थल पर नमन करते हुए अपने इष्ट देवताओं का स्मरण करें और उनकी पूजा करें।  
  • इस दिन कई जगहों पर महर्षि वाल्मीकि के जीवन को प्रदर्शित करते हुए एवं उन्हें याद करते हुए एक शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। जिस दौरान श्रद्धालु वाल्मीकि जी से संबंधित भजन-गीत गाते हैं। 
  • इस दिन दान-पुण्य का भी महत्व होता है। इसलिए इस दिन ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों को भोजन कराना व उन्हें दक्षिणा देना शुभ माना जाता है।
  • इस दिन जगह-जगह पर मंदिरों को फूलों और रंगोलियों से सजाया जाता है। 
  • कई जगहों पर रामायण का पाठ होता है, जिसमें वाल्मीकि जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्हें याद किया जाता है।