हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने में दो एकादशी पड़ती है। यानी कि साल में कुल 24 एकादशी आती है। एकादशी के दिन व्रत रखने की परंपरा है। इन एकादशियों पर व्रत रखने का एक अलग ही महत्व बताया गया है। वैसे तो साल में पड़ने वाली हर एकादशी व्रत का बहुत महत्व होता है लेकिन मार्गशीर्ष माह में पड़ने वाली एकादशी पर व्रत रखना बहुत ही अहम होता है, क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था। मागर्शीर्ष मास में पड़ने वाली एकादशी 22 नवंबर को पड़ने वाली है। उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु और एकादशी माता की पूजा की जाती है।
जानें उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहूर्त
उत्पन्ना एकादशी तिथि: 22 नवंबर शुक्रवार
एकादशी तिथि प्रारंभ: (AM) 09 बजकर 01 मिनट से
एकादशी तिथि समापन: (AM) 06 बजकर 24 मिनट तक
उत्पन्ना एकादशी पूजन विधि:
मान्यता के अनुसार एकादशी का व्रत करने वालों को एक दिन पहले यानी की दशमी के दिन से ही इस व्रत का पालन शुरू कर देना चाहिए।
व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और फिर नए-साफ़ सुथरे कपड़े पहनने चाहिए।
उत्पन्ना एकादशी का व्रत निर्जला रखा जाता है।
इसके बाद घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करिए और अगर आपके मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा पहले से ही हो तो उनके आगे हाथ जोड़कर पूजा की शुरुआत कीजिए।
अब भगवान विष्णु की मूर्ति पर तुलसी दल, नवैद्य और फल फूल अर्पित कीजिए।
इसके बाद भगवान विष्णु की आरती कीजिए और उसके बाद घर में सभी को प्रसाद बाँट दीजिए।
उत्पन्ना एकादशी के दिन माँ लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है।
कहते हैं कि अगर इस दिन घर में सुंदर-कांड का आयोजन किया जाए तो इसे सभी फलों की प्राप्ति बड़े ही आसानी से हो जाती है।
अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या किसी ज़रूरतमंद को अपनी इच्छा-शक्ति के अनुसार भोजन कराइये और फिर उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें
इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर के अपने व्रत को पूरा करें।
उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व :
उत्पन्ना एकादशी : कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मुर नामक राक्षस का वध किया था जिसके बाद चारों तरफ जश्न और ख़ुशी का माहौल बन गया था। इसी ख़ुशी के मौके पर उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है। उत्तर भारत में उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष मास में पड़ती है जबकि कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र-प्रदेश और गुजरात में ये एकादशी कार्तिक महीने में मनाई जाती है। साल-भर एकादशी व्रत रखने वाले उत्पन्ना एकादशी से ही अपने व्रत की शुरुआत करते हैं।
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उत्पन्ना एकादशी की कथा :
सतयुग में एक मुर नाम का राक्षस हुआ। अपने ताकत के बल पर इस राक्षस ने देव लोक पर कब्ज़ा कर लिया, जिसके बाद सभी देवी-देवताओं को देव लोक छोड़कर मृत्यु लोक में जाकर रहना पड़ गया। इस बात से बेहद दुखी होकर स्वर्ग लोग के राजा भगवान इंद्र शिव जी के पास पहुंचे और उन्होंने भगवान से विनती की कि वो कैसे भी कर के भगवानों को उनका लोक वापिस दिला दें। तब भगवान शिव ने कहा कि आपकी इस समस्या का हल भगवान विष्णु कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान इंद्र के साथ सभी देवी-देवता क्षीरसागर पहुंचे और उन्होंने भगवान विष्णु से रक्षा करने की गुहार लगायी। तब भगवानों को उनका स्थान वापिस दिलाने के लिए भगवान विष्णु चन्द्र-नगरी पहुँच गए जहाँ उनके और मुर नामक राक्षस के बीच युद्ध शुरू हो गया।
ये युद्ध 10,000 वर्षों तक चला लेकिन मुर मरा नहीं। इस युद्ध से थक-कर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। बद्रिकाश्रम में एक बाद सुन्दर गुफ़ा थी जिसका नाम था हेमवती। आराम करने के लिए भगवान गुफा के अंदर चले गए। 12 योजन लंबी इस गुफा का केवल एक ही दरवाज़ा था। अंदर जाकर भगवान गहरी निद्रा में सो गए। भगवान का पीछा करते हुए राक्षस भी वहां आ पहुंचा और उसने भगवान को मारने का प्रयत्न किया। तभी भगवान के अंदर से उज्जवल, कांतिमय एक देवी का प्राकट्य हुआ। उस देवी ने राक्षस को युद्ध के लिए ललकारा, उससे युद्ध किया और उसे मौत के घाट उतार दिया।
जब भगवान विष्णु अपनी गहरी नींद से उठे तब उन्होंने देवी को देखा और सारी बातें जानी। इसके बाद उन्होंने देवी से कहा कि, “हे देवी, एकादशी के दिन आपका जन्म हुआ है इसलिए जगत में आपको एकादशी देवी के नाम से ही जाना और पूजा जायेगा। जो लोग मेरे भक्त हैं वो आपकी पूजा भी पूरे दिल से करेंगे.” और तब से ही एकादशी देवी की व्रत-पूजा का प्रचलन शुरू हो गया।