शिक्षक दिवस विशेष: ये थे भारत के सबसे प्राचीन गुरु जिन्होनें देवताओं को भी ज्ञान दिया था !

हमारे हिन्दू धर्म में गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है। आज शिक्षक दिवस के मौके पर भारत के कुछ प्रमुख प्राचीन गुरुओं के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। हमारे हिन्दू धर्म में गुरु को साक्षात् भगवान् ब्रह्मा का रूप माना गया है। ऐसा क्यों है इसे कबीरदास जी के इस दोहे ने बहुत ही सटीकता से परिभाषित किया है “गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।”  इसका अर्थ है कि जब गुरु और ईश्वर दोनों साथ खड़े हों तो पहले गुरु के चरण स्पर्श करना चाहिए क्योंकि वो गुरु ही थे जिन्होनें ईश्वर के बारे में बताया था। आइये आज शिक्षक दिवस के शुभ अवसर भारत के कुछ प्राचीन गुरुओं के बारे में जानते हैं। पौराणिक काल में कुछ गुरु ऐसे भी थे जिन्होनें देवताओं को भी ज्ञान दिया था।

इन्हें दिया जाता है देवताओं के गुरु का दर्जा

हमारे धर्मशास्त्र के अनुसार बृहस्पति देव को समस्त देवताओं का गुरु माना जाता है। ऐसा माना जाता है की सभी देवताओं ने बृहस्पति देव से ही ज्ञान अर्जित किया था। इसलिए उन्हें इतिहास के सबसे प्राचीन गुरु का दर्जा भी दिया गया है। सभी नवग्रहों में भी बृहस्पति को सबसे प्रबल माना जाता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पति मजबूत स्थिति में हो तो वो व्यक्ति ज्ञानी और बुद्धिमान होता है। वहीं दूसरी तरफ यदि कुंडली में बृहस्पति की स्थिति कमजोर हो तो ऐसे व्यक्ति में ज्ञान और बुद्धि की कमी पायी जा सकती है। 

भारत के इन प्राचीन गुरुओं के बारे में भी जान लें 

वेदव्यास

महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी को साक्षात् ब्रह्मा का रूप माना जाता है। परम् ज्ञानी वेदव्यास जी ने करीबन 18 पुराणों की रचना की थी। उन्हें हमारे वेदों को चार भागों में विभाजित करने का भी श्रेय दिया जाता है। मान्यता है कि महाभारत की रचना करते वक़्त उन्होनें गणेश जी को भी कुछ विशेष ज्ञान दिया था। गुरुओं का जिक्र जब आता है तो वेदव्यास जी का नाम जरूर लिया जाता है। महर्षि वेदव्यास को आदिगुरु का दर्जा भी दिया जाता है।

महर्षि वाल्मीकि 

भारतीय पौराणिक इतिहास का सबसे प्राचीनतम महाकाव्य “रामायण” के रचयिता महर्षि वाल्मीकि को भी गुरु का दर्जा प्राप्त है। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण को वाल्मीकि रामायण के नाम से भी जानते हैं। सीता माता उन्हीं के आश्रम में रहती थी और उनके दोनों पुत्र लव और कुश को शिक्षा भी महर्षि वाल्मीकि ने ही दी थी।

द्रोणाचार्य

जहाँ गुरुओं की बात होती है द्रोणाचार्य जी का नाम जरूर जाता है। महाभारत काल में पांडव और कौरवों के गुरु के रूप में उनकी पहचान की जाती है। आपको बता दें कि उनके प्रमुख शिष्यों में मुख्य रूप से अर्जुन और एकलव्य का नाम लिया जाता है। हालाँकि एकलव्य को कभी उन्होनें प्रत्यक्ष रूप से रूप से शिक्षा नहीं दी लेकिन इसके वाबजूद भी वो उन्हें अपना गुरु मानता था। अपने गुरु के प्रति एकलव्य की इतनी श्रद्धा थी की उसने अपना अंगूठा ही द्रोणाचार्य को गुरुदक्षिणा में दे दिया था।