क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस व जानें शिक्षक बनने के ज्योतिषीय योग

किसी भी इंसान के जीवन में गुरु/शिक्षक का होना बेहद ज़रूरी होता है। हम यहाँ सिर्फ स्कूल या कॉलेज के शिक्षकों/गुरुओं की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम हर उस व्यक्ति की बात कर रहे हैं, जो जीवन के किसी भी मोड़ पर आपको कुछ नया, कुछ उपयोगी सिखाये या जीवन में आपका मार्गदर्शन करे। यानि कि, शिक्षक/गुरु हर वो इन्सान हो सकता है जिसने आपको जीवन में कोई भी बहुमूल्य सीख दी हो।

वैसे तो शिक्षक या गुरुओं का शुक्रिया-अदा करने के लिए जीवन कम होता है, लेकिन साल के इस एक विशेष दिन (5 सितंबर) को शिक्षकों दिवस के रूप में सालों से मनाया जाता रहा है।  इस दिन हमारे देश के प्रथम उप-राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। तो आइये इस ख़ास मौके पर जानते हैं इस दिन के बारे में कुछ ज्योतिषीय तथ्य, और साथ ही जानते हैं कि कुंडली के कौन से योग इंसान को शिक्षक बनाने में मददगार साबित होते हैं।

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भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार पञ्च महा-शक्ति की उत्पत्ति सृष्टि निर्माण और उद्धार के लिए अधिष्ठात्री गो, गंगा, गायत्री, गौरी, गीता के रूप में प्रकट हुई है, और  इसी पावन अक्षर ‘ग’ से गुरू और ज्ञान की रचना होती है, जिसने संपूर्ण ब्रह्माण्ड को दिव्य ज्योति प्रदान की है। ज्ञान को व्यावहारिक रूप में उतारना तथा उसको ग्रहण करना शिक्षक-शिष्य परंपरा का एक महत्वपूर्ण पक्ष होता है। 

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भारतीय संस्कृति में शिक्षक को माता, पिता, गुरू के समान आदरणीय एवं ब्रह्राा, विष्णु, महेश के समान पूजनीय माना गया है। ज्ञान को वितरित करने वाला शिक्षक गुरू के रूप में सदा ही वन्दनीय रहा है। शिक्षक का नाम आते ही ज्योतिष जगत में देव-गुरु बृहस्पति का स्मरण आता है। वास्तव में, गुरू का संबंध देव-गुरु बृहस्पति से होता है, जो ज्ञान के भंडार हैं और इस मानव जगत में शिक्षक, यानि गुरु के रूप में अवतरित हैं।

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शिक्षक का अर्थात होता है शिक्षा प्रदान करने वाला, तथा शिष्य का अर्थ होता है शिक्षा ग्रहण करने वाला। शिक्षक से तात्पर्य केवल किताबी ज्ञान बांटने वाले से न होकर जीवन को एक संपूर्ण मार्गदर्शन देने वाले से है। जिस कारण प्रतिवर्ष पूरे भारत वर्ष में विद्यालयों, महा-विद्यालयों जैसी शैक्षणिक संस्थानों में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मना कर दर्शन-शास्त्र के महा-नायक  व भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 

शिक्षक व बृहस्पति ग्रह का संबंध 

भारतीय ज्योतिष में बृहस्पति (गुरू) को समस्त ग्रहों में अत्यंत शुभ, ज्ञान का प्रदाता और मानव का परम मित्र माना गया है। गुरू को देवताओं का गुरू अर्थात देव-गुरु  नाम से भी जाना जाता है। यदि जन्म पत्रिका में बृहस्पति ग्रह बलवान  होकर केन्द्र में हो तो जातक के अनेकों दुष्प्रभावों को दूर कर ज्ञान का भंडार भर देता है, इसलिए एक अच्छे शिक्षक की कुंडली में बृहस्पति (गुरू) की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

जैसे कि दर्शन शास्त्र के महा-नायक डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कुंडली में गुरू चतुर्थ भाव में स्थित होकर कर्म भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं, केन्द्र में स्थित बलवान गुरू ने इन्हें शिक्षकों का सर्वकालिक प्रतिनिधि बनाया और देश आज भी इनके जन्म-दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। 

जन्मकुण्डली में गुरू शुभ एवं बलवान हो अथवा गुरू ग्रह द्वारा गजकसेरी योग का सृजन हो रहा हो, या पंचमहापुरूष योग हो अथवा ग्रह स्थिति, ग्रह योग होने पर व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में पदार्पण करता है। शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है। शिक्षक के बिना शिक्षा की प्रक्रिया सफल रुप से नहीं चल सकती। सामान्यतः एक अच्छे अध्यापक में निम्नलिखित गुणों का होना अति आवश्यक है जो इस प्रकार हैं। 

एस्ट्रोसेज की कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट से जानें क्या आपकी कुंडली में भी है सफल शिक्षक बनने के योग? या अगर आप पहले से ही इस क्षेत्र में है तो जानिए क्या इसमें आपको सफलता मिलेगा? क्या आपकी कुंडली के अनुसार यह करियर विकल्प आपके लिए उपयुक्त है?

शिक्षक में मुख्य रुप से 4 गुण

1.शैक्षिक गुण /योग्यताएं

2.व्यावसायिक गुण

3.व्यक्तित्व संबंधी गुण 

4. संबंध स्थापित करने का गुण

कुंडली में शिक्षक बनने के ज्योतिषीय योग 

ज्योतिष शास्त्र में अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये कुंडली में गुरु तथा बुध का बली होना आवश्यक है, क्योंकि गुरु ज्ञान के कारक माने जाते हैं तथा बुध बुद्धि के कारक होते हैं। कुंडली में इन दोनों ग्रहों की शुभ स्थिति तथा इनका लग्न, धन, विद्या, रोग व सेवा, कर्म, लाभ स्थान से किसी भी प्रकार युति, दृष्टि संबंध स्थापित होने पर व्यक्ति को अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।

1. पंचमेश बली होकर पंचम भाव या केन्द्र में स्थित हो तो जातक अध्यापक होता है।

2. बुध स्वराशि में या सिंह राशि में हो और पंचम भाव में बुधादित्य योग हो तो जातक अध्यापक होता है।

3. पंचमेश पंचम भाव में और बुध व गुरु की युति एकादश भाव में हो तो जातक डिग्री कॉलिज या विश्‍वविद्यालय में शिक्षक होता है।

4. बुध और गुरु सप्तम या दशम भाव व सूर्य द्वितीय भाव में हो तो जातक शिक्षक होता है।

5. शुक्र सातवें, सूर्य पांचवें एवं गुरु दसवें भाव में हो तो जातक शिक्षक बनता है।

6. – यदि कुंडली में हंस योग, भद्र योग उपस्थित हो तो व्यक्ति अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।

7. – गुरु व बुध की केंद्र में स्थिति, दोनों का एक दूसरे से युति व दृष्टि संबंध हो तो जातक शिक्षक होता है।

8. – फलदीपिका के अनुसार यदि दशमेश के नवमांश का अधिपति गुरु हो तो व्यक्ति शिक्षा क्षेत्र में करियर बनाता है।

9. – लग्न तथा चंद्र कुंडली से लग्नेश, पंचमेश, दशमेश का संबंध गुरु तथा बुध से बनने पर अध्यापन क्षेत्र द्वारा जीविका अर्जन होती है।

10. – सूर्य का धन स्थान, पंचम, सेवा, कर्म में गुरु व बुध से संबंध सरकारी अध्यापन क्षेत्र में सेवा प्राप्त करने में सफलता प्रदान करता है।

11. – यदि कुंडली में गजकेसरी योग उपस्थित हो तथा उसका संबंध धन, पंचम, दशम स्थान से बन रहा हो तो ऐसे जातकों को शिक्षा क्षेत्र में सफलता मिलती है।

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हम आशा करते हैं कि शिक्षक दिवस पर लिखा गया हमारा यह लेख आपको अवश्य पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।