“उठो जागो और लक्ष्य को पूरा होने तक मत रुको”….अर्थात, ‘एक रास्ता खोजो, उस पर विचार करो, उस विचार को जीवन बना लो, उसके बारे में सोचो और उसी विचार को जियो। अपने शरीर के हर भाग को उस विचार से भर दो और किसी अन्य विचार को जगह मत दो, सफलता का यही रास्ता है…स्वामी विवेकानंद के इस तरह के कई विचारों ने उन्हें युवाओं का मार्ग दर्शक या रोल मॉडल बना दिया। दुनिया के सामने उन्होंने हिंदुत्व को लेकर अपने विचार रखे। उससे पूरी दुनिया में हिंदू धर्म का सम्मान बढ़ा। 12 जनवरी, रविवार को स्वामी विवेकानंद की जयंती है। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें
महापुरुष स्वामी विवेकानंद
हमारे देश में कई महापुरुषों ने जन्म लिया जिनके विचारों ने लोगों को सोच बदलने पर मजबूर किया। इन्हीं महापुरुषों में से एक हैं स्वामी विवेकानंद। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1983 को कोलकाता के कायस्थ परिवार में हुआ था। इन्हें बचपन में नरेंद्र देत्त के नाम से बुलाते थे। पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। नरेंद्र के पिता वकील थे और माता धार्मिक प्रवृत्ति की थी। नरेंद्र बचपन से ही तेज बुद्धि और नटखट स्वभाव के थे। नरेंद्र का परिवार शुरुआत से धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति का था। यही कारण था कि नरेंद्र का मन बचपन से ईश्वर में लगने लगा था। उनके मन में ईश्वर को प्राप्त करने और उनके बारे में जानने की लालसा बढ़ने लगी थी।
इस व्रत से हनुमानजी करेंगे सभी कष्ट दूर, 21 दिनों का होगा पूरा व्रत
रामकृष्ण परमहंस से मिले नरेंद्र
नरेंद्र सामाजिक विज्ञान, इतिहास, साहित्य दर्शन, धर्म और कला सभी विषयों में रूची रखते थे। लेकिन उनकी विशेष रूची हिंदू शास्त्रों में थी। सन् 1881 में नरेंद्र की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई। उस वक्त दक्षिणेश्वर, पश्चिम बंगाल में मां काली के उपासक और प्रख्यात गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस थे। उन्हें ईश्वर प्राप्त माना जाता है। नरेंद्र परमहंस से मिलकर बहुत प्रभावित हुए थे और उन्हें अपना गुरू मानने लगे थे। वह अपने गुरू परमहंस की देखभाल और सेवा करते थे। गुरू परमहंस ने नरेंद्र को ज्ञान देकर विवेकानंद बना दिया। सन् 1885 में गुरू परमहंस बीमार हो गए और 16 अगस्त को रामकृष्ण परमहंस का निधन हो गया। विवेकानंद ने अपना पूरा जीवन गुरू को समर्पित कर दिया।
अमेरिका के विद्वान भी विचार सुन रह गए हैरान
25 साल की उम्र में विवेकानंद ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया। जिसके बाद वह विश्व भ्रमण के लिए पैदल ही निकल पड़े। बता दें विवेकानंद ने 31 मई 1893 को मुंबई से अपनी विदेश यात्रा शुरू की। मुंबई से वह जापान पहुंचे। जापान के बाद वह चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो शहर में पहुंचे थे। कहते हैं कि उस वक्त यूरोप और अमेरिका के लोग भारतीयों को बहुत हीन नजर से देखते थे। वहां के लोगों ने स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद में बोलने से रोकने की काफी कोशिश की लेकिन एक अमेरिकी प्रोफेसर की कोशिश से उन्हें बोलने का थोड़ा समय मिल गया। उनके विचार को सुनकर सभी विद्वान हैरान रह गए थे। जिसके बाद अमेरिका में उनका स्वागत किया गया।
विवेकानंद के शिष्यों के मुताबिक 4 जुलाई सन् 1902 को उन्होंने शरीर त्याग दिया और परमात्मा में लीन हो गए।