“अपने जीवन में एक रास्ता खोजो, उस पर विचार करो, उस विचार को ही अपना जीवन बना लो, उसके बारे में सोचो, उसका सपना देखो और उस विचार को जियो, अपने मस्तिष्क मांस पेशियों और नसों यानी अपने शरीर के हर एक हिस्से को उस विचार से भर दो और अपनी शरीर या अपने दिमाग में किसी अन्य विचार को जगह मत लेने दो, सफलता का यही एक रास्ता है।”
यह शब्द हैं भारत के ऐसे महापुरुष के जिन्होंने न सिर्फ केवल भारत देश में बल्कि विदेश में भी अपनी छाप छोड़ी है। ऐसे महापुरुष सिर्फ एक ही हो सकते हैं और वह हैं स्वामी विवेकानंद। 12 जनवरी 1863 में कोलकाता के एक कायस्थ परिवार में जन्मे स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था। स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ कोलकाता के हाई कोर्ट के वकील थे और उनकी मां भुवनेश्वरी देवी बेहद ही धार्मिक विचारों वाली महिला थी। अपनी मां की तरह स्वामी विवेकानंद भी बेहद ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे और केवल 25 साल की उम्र में ही उन्होंने अपना घर बार छोड़कर सन्यासी बनने का फैसला ले लिया था। इसी के बाद उनका नाम स्वामी विवेकानंद रखा गया।
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बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य थे। स्वामी जी और रामकृष्ण परमहंस जी की मुलाकात 1881 में कोलकाता के ही दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में हुई थी। एक महान दार्शनिक और पूरे विश्व में भारत के अध्यात्म का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानंद ने 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा में देश के सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। बचपन से ही जिज्ञासु नरेंद्र नाथ ने 8 साल की उम्र में स्कूल पास किया और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया था।
सबसे पहला सवाल, क्या आपने ईश्वर को देखा है?
बताया जाता है कि, स्वामी विवेकानंद जब पहली बार अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिले थे तो, उन्होंने सबसे पहला और सबसे अहम सवाल उनसे यही किया था कि, “क्या आपने कहीं ईश्वर को देखा है?” स्वामी विवेकानंद के इस सवाल के जवाब में रामकृष्ण परमहंस जी ने जवाब दिया था कि, “हां मैंने भगवान को देखा है। मैं भगवान को इस वक्त भी उतना ही साफ देख सकता हूं जितना कि मैं तुम्हें देख रहा हूं। फर्क सिर्फ इतना है कि, मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं।”
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जब स्वामी जी के भाषण की शुरुआत में ही 2 मिनट तक लगातार बच दे रही थी तालियां
स्वामी विवेकानंद एक शानदार वक्ता भी थे। ऐसे में जब उन्होंने शिकागो धर्म संसद में पहली बार ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ इस शब्द से अपने भाषण की शुरुआत की तो सभागार में 2 मिनट तक लगातार तालियां बजती रही थी। 11 सितंबर 1893 का यह दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है और लोग इसे आज भी याद करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के मौके पर ही क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय युवा दिवस?
12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी का जन्म हुआ था और प्रत्येक वर्ष इसी दिन राष्ट्रीय युवा दिवस भी मनाया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि, आखिर स्वामी जी के जन्मदिन के दिन ही राष्ट्रीय युवा दिवस क्यों मनाया जाता है? तो आइए जानते हैं इस सवाल का जवाब।
1985, यह वही साल है जब भारत सरकार ने 12 जनवरी के दिन देशभर में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने की घोषणा की थी। स्वामी विवेकानंद भारत के महानतम समाज सुधारक, विचारक और दार्शनिक होने के साथ-साथ उन्होंने सदैव युवाओं को प्रेरित करने का निरंतर प्रयास किया है। स्वामी जी ने अपने जीवन में अनेकों ऐसे अनमोल विचार युवाओं और देश के लोगों के साथ साझा किए हैं जिन्हें अपनाकर हम अपने जीवन को नई दिशा और जीवन में सकारात्मकता भर सकते हैं। आज के समय में जहां जीवन में थोड़ी सी भी परेशानी से लोग घुटने टेक देते हैं या आगे बढ़ने का जज्बा छोड़ देते हैं ऐसे में, स्वामी जी के दिखाए मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन में आने वाली हर तरह की परेशानियों को बेहद ही आसानी से दूर करके सफलता हासिल कर सकते हैं। इसी तर्ज पर स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के मौके पर युवा दिवस मनाया जाता है ताकि, युवाओं को इस बारे में जागरूक किया जा सके कि कैसे स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन में हर असफलता और कठिनाइयों को पार करके सफलता हासिल की और हम भी चाहे तो उनके विचारों को अपनाकर अपने जीवन में हर एक मुकाम पर सफलता हासिल कर सकते हैं।
कैसे मनाया जाता है देश भर में राष्ट्रीय युवा दिवस
अब सवाल उठता है कि, आखिर स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के मौके पर राष्ट्रीय युवा दिवस कैसे मनाया जाता है? तो जानकारी के लिए बता दें कि, इस दिन देशभर में बेहद ही उत्साह और धूमधाम के साथ स्वामी विवेकानंद जी का जन्मोत्सव और राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न जगहों पर भाषण, पाठ, युवा सम्मेलन, तरह-तरह की प्रस्तुतियां, युवाओं के द्वारा और युवाओं के लिए किए जाने वाले उत्सव, प्रतियोगिताएं, खेल आयोजन, योगा सत्र संगीत प्रदर्शन इत्यादि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और लोग बढ़-चढ़कर इन आयोजनों में हिस्सा भी लेते हैं इस वर्ष कोरोनावायरस चलते यह आयोजन भव्य रुप से तो नहीं किए जा सकेंगे लेकिन लोग, इंटरनेट के माध्यम से लोग स्वामी जी का जन्मोत्सव और राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाले हैं।
क्या कहती है स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली
हर इन्सान की कुंडली में उसके जीवन से जुड़े कई बड़े-छोटे राज़ मौजूद होते हैं। तो आइये जानते हैं कि, आखिर स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली उनके जीवन के बारे में क्या कुछ बताती है।
- स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली के अनुसार इनकी कुंडली में धनु लग्न में सूर्य है, जो इस बात को इंगित करता है कि, ऐसे जातक जन्म-जात लीडर होते हैं। बता दें कि, जिस भी जातक की कुंडली में लग्न में सिंह राशि हो या फिर सूर्य लग्न में हो तो ऐसे जातक सदैव लोगों को अपनी बातों और विचारों से प्रेरित कर के उनका मार्गदर्शन करने के लिए जाने जाते हैं।
- इसके अलावा स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली में मंगल ग्रह स्व-ग्रही है यानि कि, अपने घर में ही है, जिसके चलते ऐसे जातक पढ़ाई लिखाई के क्षेत्र में अव्वल दर्जे के होते हैं। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि, कैसे अपनी पढ़ाई के माध्यम से स्वामी विवेकानंद ने हमेशा लोगों को जीवन की सही राह दिखाई है।
- इसके अलावा मंगल का पंचम भाव (पांचवा घर शिक्षा का घर माना गया है) और बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि का योग बनना अपने आप में एक ऐसा योग बनाते हैं जिससे ऐसे जातक ज्ञान के क्षेत्र में खूब नाम कमाते हैं, और दुनिया और समाज को अपने ज्ञान के दम पर एक संदेश देते हैं, जो स्वामी जी ने अपने जीवन काल में बखूबी किया है।
- इसके अलावा स्वामी विवेकानंद की की कुंडली धनु लग्न की है, और धनु लग्न के जातक हमेशा से ही प्रखर बुद्धि के और विद्वान होते हैं।
- धनु लग्न की कुंडली और लग्न में सूर्य का होना इस बात को इंगित करता है कि ऐसे जातक बेहद ही विद्वान होने के साथ-साथ कर्मठ और प्रेरणादायक होते हैं।
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