हवन में आहुति देते समय क्यों कहते हैं ‘स्वाहा’? यहाँ जानिए इसका पौराणिक महत्व

समय चल रहा है पावन नवरात्रि का, जहां नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है वहीं नवरात्रि का समापन नवमी तिथि और इस दिन किए जाने वाले हवन से होता है। बात हवन की हो रही है तो यकीनन एक शब्द आपके जहन में अवश्य आ रहा होगा और वह है ‘स्वाहा’। हवन के द्वारा जितनी बार भी अग्नि में आहुति डाली जाती है लोग उतनी बार स्वाहा कहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है इस स्वाहा का अर्थ क्या होता है और इसे क्यों कहा जाता है? अगर हाँ तो आइए जानते हैं इस सवाल का जवाब।

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जब हम हवन करते हैं तब अग्नि में आहुति डालते समय हम स्वाहा शब्द का इस्तेमाल करते हैं। इसका अर्थ होता है कि ईश्वर को अर्पित कर देना। यानि की सरल शब्दों में समझाएं तो स्वाहा शब्द का अर्थ होता है सही रीति से पहुंचाना। ऐसे में जब ही भी हवन की आहुति दी जाती है हम इस सोच और मान्यता के साथ कि इस हवन सामग्री को सभी देवी देवता ग्रहण कर लें इसलिए हम स्वाहा कहते हैं।

कहा जाता है कि, अग्नि मनुष्य और देवताओं को एक साथ जोड़ने का एक बेहद ही उपयुक्त माध्यम है। ऐसे में मनुष्य को जो भी चीजें देवताओं तक पहुंचाने होती है फिर वह चाहे फल हो या घी, शहद या फिर कोई भी हवन सामग्री हो वह उसे अग्नि के माध्यम से आहुति देकर देवताओं तक पहुंचाता है।

स्वाहा शब्द से संबंधित पौराणिक कथा 

कहा जाता है कि प्रजापति दक्ष की पुत्री स्वाहा की अग्नि देव के साथ शादी हुई थी। इसके अलावा अग्नि देव के माध्यम से ही हवन, यज्ञ सामग्री देवताओं तक पहुंचाई जाती है। इससे संबंधित एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता है कि, जब देवताओं में एक समय में अन्न की कमी हो गई थी तब सभी देवी देवता ब्रह्मा देव के पास पहुंचे। तब ब्रह्म देव ने स्वाहा से अनुरोध किया कि वह अग्नि देव से शादी कर लें। ऐसा होने की स्थिति में स्वाहा देवी के प्रभाव से अग्नि देव को शक्ति मिलती है और यज्ञ में डाली गई आहुति  स्वाहा के प्रभाव से भस्म हो जाती है जिसे देवता बेहद ही आसानी से उसे ग्रहण कर सकते हैं। कहा जाता है। यही वजह है कि हवन के दौरान स्वाहा बोला जाता है।

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