3 नवंबर 2019 को छठ व्रत पारण के साथ-साथ भानु सप्तमी का पर्व भी मनाया जाएगा। इस पर्व को सूर्य सप्तमी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। सनातन संस्कृति में सूर्य को महज़ एक प्रकाश देने का प्राकृतिक स्रोत ही नहीं समझा जाता है, बल्कि इसे देवताओं की श्रेणी में रखा गया है। इसलिए हिन्दू संस्कृति में सदा से सूर्य देव की पूजा का विधान रहा है। सूर्य न केवल अंधकार का नाशक है, बल्कि इसके प्रकाश में कई ऐसे तत्व भी हैं जिनसे हमें रोग दोषों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में सूर्य देव से प्राप्त होने वाली शक्तियों को हमारे धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में भी विस्तार से बताया गया है।
मोक्षदायिनी सूर्य सप्तमी पूजा का महत्व
शास्त्रों के अनुसार सूर्य सप्तमी या भानु सप्तमी के दिन सूर्य की उपासना का विधान है। अब सवाल ये है कि सूर्य सप्तमी पूजा कब होती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, भानु सप्तमी कब पड़ती है, तो हम आपको यह बता दें कि जब वैदिक पंचांग की गणना के मुताबिक सप्तमी तिथि जब रविवार के दिन पड़ती है तो उसे भानु सप्तमी या फिर सूर्य सप्तमी कहते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन सूर्य देव पहली बार सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए और फिर धरती पर अपना प्रकाश फैलाया था। मान्यता के अनुसार तो ऐसा भी कहा जाता है कि सूर्य सप्तमी व्रत स्त्रियों के लिए मोक्षदायिनी होता है। यह व्रत प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है।
भानु सप्तमी पूजा एवं व्रत का लाभ
भानु सप्तमी के दिन सूर्य की उपासना और व्रत करना उत्तम फलदायी होता है। इस दिन पवित्र नदी या जलकुंड में स्नान करने से शरीर दोष-रोग मुक्त रहता है। आज के दिन जो लोग दीपदान करते हैं उन्हें सूर्य भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सूर्य देव को जल चढ़ाने से बौद्धिक विकास होता है और व्यक्तित्व में निखार आता है। मानसिक शांति और सरकारी नौकरी की चाह रखने वाले जातकों को सूर्य सप्तमी के दिन सूर्य की उपासना और व्रत अवश्य ही करना चाहिए।
सूर्य सप्तमी के दिन ऐसे करें सूर्य देव की पूजा
- सूर्य सप्तमी पर्व के दिन प्राप्तः जल्दी उठें।
- शौच आदि के बाद गंगाजल से स्नान करें।
- अब सूर्यदेव की अष्टदली प्रतिमा बनाएँ।
- शिव व पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करें।
- पूजन के बाद तांबे के बर्तन में चावल भरकर ब्राह्मणों को दान करें।
- सूर्य सप्तमी पूजा के समय सूर्य के इस मंत्र का जाप करें – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
सूर्य सप्तमी व्रत कथा
भविष्यपुराण के मुताबिक, ऐसा कहा जाता है कि एकबार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि, कलयुग में किस व्रत के प्रभाव से स्त्री को मोक्ष मिलता है? इस पर श्री कृष्ण ने उन्हें इंदुमती नामक वेश्या की कथा सुनाई। कथा के मुताबिक एक बार इंदुमति ने ऋषि वशिष्ठ के पास गई और उनसे कहा कि, उसने आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं किया है।
ऐसे में उसे मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी? उसकी बात सुनकर वशिष्ठ मुनी ने उसे बताया कि स्त्रियों को मुक्ति, सौभाग्य और सौंदर्य देने वाले सूर्य सप्तमी से बढ़कर और कोई व्रत नहीं है। उन्होंने उसे भानु सप्तमी के दिन यह व्रत करने को कहा। इसके बाद इंदुमति ने विधि-पूर्वक यह व्रत किया और व्रत के प्रभाव से उसे स्वर्ग लोक में स्थान मिला।