द्वादश भावों में सूर्य ग्रह की स्थिति का कार्यक्षेत्र पर प्रभाव

सूर्य ग्रह को समस्त ग्रहों का राजा कहा जाता है और पूरी पृथ्वी पर ऊर्जा इसी ग्रह के कारण होती है। यही वजह है कि सूर्य ग्रह को हमेशा से पृथ्वी पर पूजनीय माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी जातक की कुंडली में सूर्य की स्थिति व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ दर्शाती है, इसलिए कुंडली में सूर्य की स्थिति को महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कुंडली में शुभ स्थान पर स्थित सूर्य व्यक्ति के जीवन में तमाम खुशियाँ, मान-सम्मान, यश, करियर में बुलंदी आदि लेकर आता है।

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ऐसे में अपने इस विशेष आर्टिकल में आज हम जानेंगे कि कुंडली के द्वादश भावों में सूर्य की स्थिति से करियर पर क्या कुछ शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ते हैं।

ज्योतिष में सूर्य ग्रह

सूर्य को जगत की आत्मा कहा जाता है। यह पद प्रतिष्ठा का कारक ग्रह माना गया है। इसके मुख्य कारकत्व शक्ति, तीक्ष्णता, सुरक्षित स्थान, मान-सम्मान, अभिरुचि, महत्वाकांक्षा, दुष्टता, वृद्धावस्था, पिता, मनुष्य लोक या मृत्युलोक, उपासना, अग्नि, डरपोक होना, माता की संतान आदि शामिल हैं।

सूर्य ग्रह का करियर पर प्रभाव 

सूर्य हमारे करियर को विभिन्न रूपों में प्रमुखता से प्रभावित करता है, इसलिए सूर्य की कुंडली के किसी खास भाव में स्थिति हमारे कार्य क्षेत्र को भी प्रभावित करती है और हमें कार्यक्षेत्र में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। हालांकि कुंडली देखते वक्त देश काल पात्र और अन्य ग्रहों की दृष्टि, युति, परिवर्तन, आदि संबंधों की जांच-परख भी अवश्य करनी चाहिए। आइए जानते हैं कि कुंडली के विभिन्न भावों में सूर्य की स्थिति आपके कार्यक्षेत्र को किस प्रकार परिभाषित करती है।

किसी भी नौकरी या पेशे में सफलता हासिल करने के लिए यहाँ ये बात बेहद ज़रूरी होती है कि, आपको इस बात की स्पष्ट जानकारी हो की आपके लिए कौन सा करियर विकल्प शुभ साबित होगा। यदि आप भी इस बारे में जानकारी हासिल करना चाहता हैं तो हमारे विद्वान ज्योतिषियों से अभी प्रश्न पूछ सकते हैं या फिर अपनी कुंडली पर आधारित कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट से भी इस संदर्भ में परामर्श हासिल कर सकते हैं।

सूर्य लग्न (प्रथम भाव) में

अग्नि तत्व प्रधान ग्रह सूर्य लग्न यानि प्रथम भाव में अच्छा माना गया है, जो जातक को अच्छा स्वास्थ्य, साहस, राजसी व्यक्तित्व, कम बाल, नेत्र रोग आदि देता है। ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार ऐसा जातक अपनी आजीविका को प्राप्त करने के लिए एक सफल राजनीतिज्ञ बन सकता है एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला होता है। इसके साथ ही ऐसा जातक साहस पूर्ण काम करने वाला, जल्दी भड़कने वाला, शरीर में अधिक गर्मी वाला, मान प्रतिष्ठा की परवाह न करने वाला, दृढ़ इच्छाशक्ति, चंचल और लड़ाई-झगड़े से बचने वाला और समाज में प्रतिष्ठित होता है। 

सूर्य दूसरे भाव में

सूर्य स्वाभिमान, ईंधन, आग, अस्त-शस्त्र, विष आदि का प्रतिनिधित्व करता है, और दूसरे भाव में स्थित होने पर कुटुम्ब से अलगाव का कारक बन जाता है। मानसागरी के अनुसार, ऐसा जातक अपनी आजीविका को चलाने के  लिए अपने खुद के कार्य में विश्वास रखता है। वह लोहे या तांबे के व्यापार से धनी बन सकता है। अक्सर ऐसे जातक पैतृक व्यवसाय में संलिप्त देखे जाते हैं।

सूर्य तीसरे भाव में

प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार तृतीय भाव में पाप ग्रह की स्थिति जातक को साहसी बनाती है, हालांकि सूर्य पाप ग्रह नही है पर इसे क्रूर ग्रह माना गया है और इसलिए यहाँ पर इसकी स्थिति जातक को परिश्रमी बनाती है। जातक में कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता बढ़ जाती है। ऐसा व्यक्ति सदा नौकरी करने में रूचि रखता है। अर्थात व्यक्ति को व्यापार आदि से ज्यादा नौकरी के क्षेत्र में सफलता मिलती है। तीसरे भाव में सूर्य का होना भाई-बहनों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है, फिर भी अन्य ग्रहों की दृष्टि, स्थिति और युति से परिणामों में भिन्नता आ जाती है।

सूर्य चौथे भाव में

चतुर्थ भाव में सूर्य की स्थिति को लेकर विभिन्न दैवज्ञों की सहमति यह है कि जातक को इससे राज सेवा या सरकारी नौकरी या प्रभु कृपा प्राप्त होगी। वह पैतृक संपत्ति का उपयोग नहीं कर पायेगा या प्राप्त हो जाने पर उसे भी गँवा देगा। हालांकि अनेक विद्वान चौथे भाव के सूर्य को ज्यादा अच्छा नहीं मानते क्योंकि चौथे भाव में सूर्य कमजोर अवस्था में माना जाता है।

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सूर्य पांचवे भाव में

पंचम भाव बच्चों, मानसिक स्थिति, मानसिकता, शिक्षा, बचपन, दादा-दादी/नाना-नानी आदि का प्रतिनिधि भाव है। काल पुरुष की कुंडली में सूर्य पंचमेश होता है। अतः पंचम में सूर्य की स्थिति एक पुत्र या कम संतान, साहस, बुद्धिमता, कुशाग्रता, आदि देती है। पंचम भाव में सूर्य को वैसे अच्छा नहीं माना जाता। यदि पंचमेश सूर्य के साथ बुध और गुरु अस्त हों तो जातक मंदबुद्धि होगा। ऐसा जातक अपने जीवन में अपना व्यापार करता है और एक अच्छे व्यापारी के रूप में उभरता है। जैसे-जैसे उसकी आयु वृद्धि होती है, वैसे-वैसे व्यापार में भी वृद्धि होती है। 

सूर्य छठे भाव में

षष्ठम भाव में सूर्य की स्थिति आर्थिक सफलता, बीसवें वर्ष में नेत्र रोग, सम्मानित और प्रसन्नचित व्यक्तित्व प्रदान कर सकती है। छठे भाव में सूर्य का होना अच्छा कहा गया है परन्तु इससे जातक के नाना के परिवार को कष्ट हो सकता है। फलदीपिका के अनुसार, षष्ठम भाव में सूर्य के होने से जातक राजा के समान, प्रसिद्धि प्राप्त करने वाला, प्रशंसनीय गुणों वाला, धनाढ्य, संपन्न और शत्रुओं को परास्त करने वाला होता है और ऐसा जातक राजकीय सेवा में निचले पद पर होकर उच्च अधिकारियों का चमचा बना रहता है। हालांकि यहां उपस्थित सूर्य और रोग देने में भी सक्षम होता है। 

सूर्य सातवें भाव में

ग्रंथों व ज्योतिषियों के अनुसार सप्तम भाव में सूर्य दांपत्य जीवन के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। फलदीपिका के अनुसार सप्तम भाव में सूर्य जातक को राजकोष का अधिकारी व व्यापारी बनता है। जातक पाप वृत्ति में लिप्त, अत्यधिक यौनाचार के कारण बीमार और स्वास्थ्य-सम्बन्धी परेशानियों से ग्रस्त होता है। सप्तम भाव का सूर्य जातक को निजी जीवन में परेशान बनाता है लेकिन व्यापार में सफलता देता है। ऐसा जातक जवाहरात का कार्य भी कर सकता है।

सूर्य आठवें भाव में

फलदीपिका के अनुसार ऐसा जातक दीर्घायु, उदारता रहित, रोगी शरीर, नेत्र रोग से पीड़ित, ज्योतिषी, अचानक लाभ प्राप्त करने वाला,  साधारण जीवन जीने वाला होगा। सूर्य भचक्र के पंचम भाव का स्वामी और नेत्र का प्रतिनिधि होता है। सूर्य के अष्टम भाव में होने से जातक धन अर्जित कर पाने में सक्षम होता है। ऐसे जातकों को गुप्त धन की प्राप्ति होती है। हालांकि ऐसे जातक को अक्सर गलत कामों के कारण सरकारी तंत्र का सामना करना पड़ता है।

सूर्य नवें भाव में

काल पुरुष चक्र के अनुसार पंचमेश सूर्य के नवम में होने से जातक अपने कर्म से भाग्य बनाने वाला, स्वतंत्र विचार वाला तथा सरकारी क्षेत्र में उच्च पद अभिलाषी होता है। इसके साथ ही जातक महत्वाकांक्षी ओर उद्यमशील होगा। जातक चतुर, पुण्य कर्म करने में रुचि वाला, अल्पायु में पितृ स्नेह से वंचित और सदाचारी संतान वाला हो सकता है।  ऐसा जातक अक्सर पिता का व्यवसाय अपना सकता है और उसकी स्थिति पिता की स्थिति पर निर्भर होती है।

सूर्य दसवें भाव में

दशम भाव में सूर्य दिग्बली होता है। कुंडली के दशम भाव में बैठे सूर्य ग्रह के प्रभाव से जातक अनुशासित, कर्तव्यनिष्ठ, अपने मान सम्मान के प्रति जागरूक तथा शासक या आदेशात्मक प्रवृत्ति का हो जाता है। भचक्र का पंचमेश सूर्य जातक की कुंडली में दशम भाव में होने पर राजयोग बनाता है। जिस कारण उसे नाम व सफलता आदि मिलती है। किसी-किसी को उच्पद्स्थ या प्रतिष्ठित अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त होता है। वह जीवन में सरकारी कामकाज और दूतावास में सफलता पाता है। वह राजा की तरह प्रशंसा व सम्मान प्राप्त करता है। वह साहसी, स्वस्थ और रोग मुक्त जीवन-यापन करता है। 

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सूर्य ग्यारहवें भाव में

एकादश भाव में स्थित सूर्य ग्रह जातक को राज सेवा में संलग्न, अधिकार, संपन्नता, साहस तथा बुद्धिमत्ता से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करता है। वह अन्य ग्रहों की परिस्थितियों के कारण संपन्न, सुन्दर पत्नी वाला तथा राजनीतिक प्रभाव वाला भी हो सकता है व महान सफलता व पद प्राप्त करने वाला भी बन सकता है। इस भाव में उपस्थित सूअर है जातक को नौकरी अथवा व्यवसाय दोनों में ही उत्तम धन लाभ देता है।

सूर्य बारहवें भाव में

द्वादश भाव में सूर्य की स्थिति को अधिक शुभ नहीं बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार जातक पक्षी व पशुओं का शिकार करने वाला, या पशु-पक्षियों से जुड़े व्यापार को करने वाला होता है। इसके साथ ही विदेश प्रवास करने वाला या विदेश में रहकर जीवन यापन करने वाला होता है। इस भाव में उपस्थित सूर्य जातक को विदेश में सफल बनाता है और विदेशी यात्रा का मौका देता है।

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