शनि देवता की दृष्टि किसी पर पड़ जाये तो सामान्य परिस्थिति में उसका अनिष्ट होना निश्चित है। ऐसे में वे लोग जिनकी कुंडली में भगवान शनि की स्थिति कमजोर हो या फिर सीधे शब्दों में कहें तो अगर किसी को भगवान शनि की वजह से तकलीफ हो रही हो तो आपने देखा होगा कि वैसे लोगों को सलाह दी जाती है कि वे भगवान शनि को तेल अर्पित करें। हो सकता है आप में से भी कई लोगों ने भगवान शनि को तेल अर्पित किया हो। लेकिन क्या आप शनि देवता को तेल अर्पित करने के पीछे की वजह जानते हैं? अगर नहीं तो आप बिलकुल सही जगह आए हैं। आज हम इस लेख में आपको वो कथा बताएँगे जिसके बाद से भगवान शनि को तेल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
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क्या है भगवान शनि को तेल चढ़ाने की वजह?
दरअसल भगवान शनि को तेल चढ़ाने के पीछे दो कथाएँ खास तौर पर प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा के अनुसार एक बार त्रेता युग में भगवान शनि को अपने पराक्रम और शक्ति का अहंकार हो गया। उन्हें यह महसूस होने लगा कि उनसे बलशाली और पराक्रमी इस सृष्टि में कोई भी नहीं है। लेकिन ठीक उसी समय में चारों ओर भगवान हनुमान के पराक्रम और बल की ख्याति भी फैली हुई थी।
ऐसे में भगवान शनि ने भगवान हनुमान से युद्ध लड़ने का निश्चय किया ताकि इस बात का फैसला हो जाये कि उन दोनों में सबसे ज्यादा पराक्रमी कौन है। इस इरादे के साथ जब भगवान शनि हनुमान जी के पास पहुंचे तब हनुमान जी भगवान राम का ध्यान कर रहे थे। शनिदेव ने जब हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा तो हनुमान जी ने उनसे कहा कि वे थोड़ी देर इंतजार करें क्योंकि इस वक़्त वो भगवान श्री राम का ध्यान कर रहे हैं। लेकिन शनि देवता के अंदर धैर्य नहीं था। वो लगातार हनुमान जी को ललकारते रहे। हनुमान जी ने भगवान श्री राम की आराधना करने के बाद शनि देव से कहा कि वे थोड़ी देर और प्रतीक्षा करें क्योंकि अब उन्हें राम सेतु की परिक्रमा करनी है।
शनि देव इस बात से उग्र हो गए। शनि देवता को युद्ध के लिए आतुर देख भगवान हनुमान ने उन्हें अपनी पूंछ में लपेट लिया और रामसेतु के चक्कर लगाने लगे। इस प्रक्रिया में हनुमान जी के पूंछ में बंधे शनि देवता का पूरा शरीर पत्थर, बालू और चट्टान से रगड़ा खाने से छिल गया और उससे रक्त बहने लगा। तब शनि देव का अहंकार टूटा और उन्होंने हनुमान जी से माफी मांगते हुए उन्हें रिहा करने का आग्रह किया। हनुमान जी ने उन्हें रिहा करने से पहले यह शर्त रखी कि भगवान शनि यह वचन दें कि हनुमान जी के स्वामित्व वाली राशि को कभी भी वे परेशान नहीं करेंगे। जब भगवान शनि ने यह वचन दिया तब हनुमान जी ने उन्हें रिहा किया और उनके घायल शरीर पर तेल लगाया। तेल लगाने से भगवान शनि की पीड़ा शांत हुई। ऐसे में उन्होंने हनुमान जी से कहा कि आज से जो कोई भी सच्चे मन से उन्हें तेल अर्पित करेगा, वो उसकी सारी पीड़ा हर लेंगे।
एक कथा और है। माना जाता है कि जब मेघनाद का जन्म होने वाला था तब रावण ने सभी ग्रहों को एक निश्चित स्थान पर रुकने का आदेश दिया था ताकि उसका पुत्र अति बलशाली और पराक्रमी पैदा हो। लेकिन शनि ने उसकी बात नहीं मानी और वह अपने स्थान से गोचर कर गए। रावण ने इस वजह से भगवान शनि पर हमला किया और उनकी एक टांग तोड़ दी। यही नहीं रावण ने सभी नौ ग्रहों को बंदी बना कर कारावास में डाल दिया।
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बाद में जब भगवान हनुमान ने अपनी पूंछ से पूरी लंका को जला कर खाक कर दिया था तब सभी ग्रह रावण की कैद से निकल कर भाग गए लेकिन शनि देव अपनी टूटी हुई टांग की वजह से भागने में असमर्थ थे। ऐसे में भगवान हनुमान ने शनिदेव के पैरों में तेल की मालिश की जिससे उन्हें आराम मिला। तब भगवान शनि ने कहा कि को कोई भी उन्हें सच्चे मन और श्रद्धा से तेल अर्पित करेगा, शनि देव उसकी सारी पीड़ा हर लेंगे।
तब से लेकर आजतक यह परंपरा चलती आ रही है कि भगवान शनि के रुष्ट होने पर उन्हें तेल चढ़ाया जाता है।
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