आज से कुछ ही दिन बाद 03 अगस्त, सोमवार के दिन भाई बहन का सबसे बड़ा त्योहार रक्षाबंधन न सिर्फ भारत बल्कि नेपाल और मारिशस जैसे कई बड़े देशों में भी पूरे हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाएगा। यूँ तो ये केवल हिंदुओं का त्यौहार है लेकिन आज इसे हर धर्म के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। रक्षा बंधन का पावन पर्व रक्षा की कामना के लिए भाई-बहन का एक ऐसा बंधन है जो प्राचीन काल से इस सृष्टि पर मौजूद है। प्राचीन काल से ही इस पर्व को भाई-बहन के अनोखे प्रेम के प्रतीक के रूप में जाना जाता है और रेशम के कुछ धागों के साथ जहाँ हर भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए उसे वादा करता है तो वहीं बहनें भी अपने भाई की रक्षा की मंगलकामना करती हैं। इस कारण ही रक्षाबन्धन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
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पौराणिक कथाओं में भी किया गया है रक्षाबंधन का जिक्र
इस पर्व की मान्यता का उल्लेख करते हुए इसके पीछे कई पौराणिक मन्यताएं भी बताई गयी है। लेकिन बावजूद इसके कई ऐसे लोग आज भी आपको मिल जाएंगे जिन्हे रक्षाबंधन से जुड़ी ये जानकारी नहीं है कि आखिर इस पर्व को मनाने के पीछे की विशेष मान्यता क्या है। इसी सवाल को जब खोजा गया तो ज्ञात हुआ कि रक्षाबंधन पर्व को लेकर पुराणों में अलग अलग मान्यताएं बताई गई हैं। जिसके द्वारा इससे जुड़ी कई घटनाओं का जिक्र भी किया गया है, जिससे आज के समय में रक्षाबंधन के महत्व को सही से समझा जा सकता है। चलिए आइए अब जाने पुराणों में लिखी रक्षाबंधन से जुड़ी एक सबसे रोचक मान्यता के बारे में:
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जब द्रौपदी ने साड़ी के पल्लू को फाड़कर बाँधी श्री कृष्ण को राखी
यूँ तो पुराणों में रक्षा बंधन के पावन पर्व के संदर्भ में कई पौराणिक कथाओं का उल्लेख है, जिनमें से एक कहानी के अनुसार, महाभारत काल में शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी, जिसके बाद जैसे ही द्रौपदी की नज़र भगवान कृष्ण की उंगली से निकल रहे खून पर पड़ी तो वो घबरा गई और आनन फानन में द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उस कपड़े को श्री कृष्ण की उंगली पर बांध दिया जिससे, तुरंत ही खून का रिसाव बंद हो गया। जिस वक़्त ये घटना घटी वो समय सावन के महीने की पूर्णिमा तिथि ही थी।
उसी राखी के वचन को भगवान कृष्ण ने निभाया
महाभारत में भी द्वापर युग में ही भगवान श्री कृष्ण को द्रौपदी द्वारा उस राखी बांध कर भाई बनाए जाने वाली घटना का जिक्र किया गया है। इस संदर्भ में ही ये माना जाता है कि उसी रक्षा के वादे को निभाते हुए श्री कृष्ण ने चीर हरण के दौरान द्रौपदी की रक्षा की थी। इसलिए कई लोग मानते हैं कि इस घटना के बाद से ही राखी का त्योहार दुनियाभर में आज तक मनाया जाता है।
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पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है रक्षाबंधन का पर्व
प्राचानी काल से लेकर आज तक भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक इस पर्व को पूरे देश में मनाया जाता है। भले ही इस पर्व को देश के अलग-अलग भागों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, लेकिन इसकी महत्ता हर राज्य में विशेष होती है। जहाँ इसे उत्तरांचल में श्रावणी के नाम से जाना जाता है तो वहीं राजस्थान में ये पर्व रामराखी और चूड़ाराखी के नाम से विख्यात है। जहाँ कच्चे दूध से अभिमंत्रीत रेशम के इस पावन धागे को बांधने के बाद हीं लोग भोजन करते हैं। वहीँ अगर दक्षिण भारत की बात करें तो तमिलनाडु, केरल और उड़ीसा लोग इसे अवनि अवितम के नाम से मनाते है। इसके अलावा अन्य कुछ राज्यों में इसे हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है और इसी दिन से ठाकुर जी का झूला दर्शन भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है।
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