महाभारत का वो किस्सा जब युधिष्ठिर ने दुनिया की सभी महिलाओं को श्राप दे दिया था

धर्मराज युधिष्ठिर अपने न्याय के लिए जाने जाते थे। धर्म के प्रति उनकी निष्ठा और सत्य के प्रति उनका समर्पण ही उन्हें पांच भाइयों के बीच धर्मराज बनाता है। धर्मराज युधिष्ठिर एक अत्यंत ही शांत और विनम्र व्यक्ति के तौर पर याद किए जाते हैं लेकिन महाभारत का एक किस्सा ऐसा भी है जहां धर्मराज युधिष्ठिर ने क्रोधित होकर अपनी माँ कुंती समेत पूरी महिला जाति को ही श्राप दे दिया था। आज के लेख में हम आपको वही किस्सा सुनाने वाले हैं।

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महाभारत में कुंती

नागवंशी राजा कुंतीभोज ने एक यदुवंशी कन्या को गोद लिया और उसका नाम रखा कुंती। कुंती का एक और नाम पृथा भी था। कुंती का विवाह हस्तिनापुर के राजा पांडु से हुआ और वो पांडवों में से तीन भाइयों यानी कि युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम की माता बनीं। लेकिन आज हम आपको जो किस्सा बताने जा रहे हैं वो कुंती के राजा पांडु से विवाह के पूर्व के जीवन से जुड़ा है यानी जब कुंती अविवाहित थी।

महर्षि दुर्वासा और वरदान 

महर्षि दुर्वासा एक तेजस्वी और महान ऋषि थे लेकिन उनका क्रोध जगजाहिर था। महर्षि दुर्वासा अचानक ही काफी क्रोधित हो जाया करते थे और किसी को भी श्राप दे दिया करते थे। आम लोग ही नहीं बल्कि देवता भी महर्षि दुर्वासा के क्रोध से भय खाते थे। ऐसे में एक बार महर्षि दुर्वासा कुंती के पिता राजा कुंतिभोज के यहाँ भोजन पर पधारे। कुंती उस समय अविवाहित थी और महर्षि दुर्वासा के क्रोध को जानती थी इसलिए उन्होंने स्वयं महर्षि दुर्वासा के आवभगत की कमान संभाली। कुंती ने पूरे दिलो-जान से महर्षि की सेवा की जिसे देख कर महर्षि दुर्वासा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कुंती को एक वरदान दिया।

यह वरदान दरअसल में वेदों का एक मंत्र था जिसके जरिये कुंती किसी भी देवता से पुत्र प्राप्त कर सकती थी। महर्षि दुर्वासा तो वरदान दे कर चले गए लेकिन अविवाहित कुंती के मन में महर्षि दुर्वासा के मंत्र को परखने की इच्छा पैदा हुई और कुंती ने भगवान सूर्य का आवाहन किया। भगवान सूर्य के प्रताप से कुंती को कवच और कुंडल धारी बेहद ही तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन लोक-लाज के डर से कुंती इसे अपने पास नहीं रख सकती थी इसलिए कुंती ने उस बच्चे को एक टोकरी में डाल कर नदी में विसर्जित कर दिया।

यह लावारिस टोकरी नदी में बहते हुए भीष्म पितामह के सारथी अधिरथ को मिली। अधिरथ ने जब टोकरी में बच्चे को देखा तो उसने इस बच्चे को पालने का फैसला किया। उसकी पत्नी ने भी इस फैसले को सहर्ष स्वीकार लिया। दोनों ही पति-पत्नी यानी कि सारथी अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने उस बच्चे का नाम रखा कर्ण।

महाभारत का युद्ध और कर्ण की मौत

कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में जैसे ही अर्जुन के हाथों कर्ण की मौत होती है। कुंती कर्ण के शरीर से लिपट कर विलाप करने लगती है। माता कुंती को एक शत्रु के लिए विलाप करता देख सभी पांडव आश्चर्य में पद जाते हैं और माता कुंती से इसकी वजह पूछते हैं। यह सुन कर कुंती उन्हें बताती हैं कि कर्ण उनका शत्रु नहीं बल्कि बड़ा भाई है। माता कुंती पांडवों को महर्षि दुर्वासा के मंत्र और भगवान सूर्य के प्रताप से पैदा हुए कर्ण की सारी बात बताती हैं। 

माता कुंती की यह बात सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं। उन्हें इस बात की ग्लानि होने लगती है कि उनकी माता के इस भेद की वजह से आज पांडवों के माथे पर बड़े भाई के कत्ल का कलंक भी लग गया। यही वजह है कि युधिष्ठिर ने दुनिया की तमाम महिलाओं को यह श्राप दिया कि महिलाएं चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, वे अपने मन में कोई बात कभी भी छिपा कर नहीं रख पाएंगी। मान्यता है कि उस दिन के बाद से संसार की सभी महिलाएं अपने मन में कोई भी गहरा राज ज्यादा दिनों तक नहीं रख पाती हैं।

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