आज इस लेख में हम आपको महाभारत की वो घटना बताएंगे जब भीष्म पितामह की एक प्रतिज्ञा की वजह से पांडवों के जान पर बन आई थी और द्रौपदी को उनकी मदद के लिए आगे आना पड़ा था।
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दुर्योधन की पितामह से नाराजगी
जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ और यह तय हो चुका था कि भीष्म पितामह को कौरवों की तरफ से युद्ध करना है। तब भीष्म पितामह हर रोज पांडवों के दस हजार सैनिकों का वध करते। पांडवों की पूरी सेना एक भीष्म पितामह के प्रताप के सामने फीकी पड़ने लगी थी लेकिन इसके बावजूद दुर्योधन को हमेशा ये लगता था कि भीष्म पितामह पक्षपात कर रहे हैं। उसका मानना था कि भीष्म पितामह और द्रोण जैसे महारथी योद्धाओं के कौरवों की सेना में रहते हुए भी पांडव का इतने दिन युद्ध में टिक जाना बिल्कुल असंभव था। हालांकि कौरवों की सेना इन्हीं महारथियों की वजह से युद्ध के मैदान में पांडवों पर भारी भी पड़ रही थी लेकिन दुर्योधन के अंदर धैर्य कहाँ था।
जब दुर्योधन पर नाराज हो गए भीष्म पितामह
एक दिन कौरवों का प्रदर्शन युद्ध में निराशाजनक रहा। इस वजह से कौरवों के शिविर में मायूसी छाई हुई थी। यह देख कर दुर्योधन अपना आपा खो बैठा और वह भीष्म पितामह पर पक्षपात का आरोप लगाने लगा। दुर्योधन के आरोप सुनकर भीष्म पितामह ने उसे समझाने की कोशिश भी की।
उन्होंने दुर्योधन से कहा कि वो उन पर जो भी आरोप लगा रहा है वह बिल्कुल ही निराधार हैं। भीष्म पितामह ने आगे कहा कि वो भगवान नहीं हैं, उनके वश में युद्ध करना है लेकिन युद्ध के परिणाम तय करना उनके वश में नहीं है। लेकिन दुर्योधन ने उनकी बात नहीं मानी और भीष्म पितामह से उसने कहा कि कौरव तब तक युद्ध नहीं जीत सकते जब तक कि पांडवों का वध नहीं हो जाता है। ऐसे में भीष्म पितामह कितने भी महारथियों को मार दें लेकिन जब तक उनका प्रेम पांडवों के लिए बना रहेगा तब तक कुछ भी नहीं हो सकता।
यह सुनकर भीष्म पितामह को क्रोध आ गया और उन्होंने उसी क्षण पाँच बाण हवा में उठाकर उन्हें मंत्र सिद्ध करते हुए यह घोषणा कर दी कि कल इन्हीं पाँच बाणों से पांडवों का वो वध करेंगे। यह सुनकर दुर्योधन प्रसन्न हो गया क्योंकि वह जानता था कि भीष्म पितामह अपने दिये हुए शब्दों से कभी नहीं मुकरते।
भीष्म के प्रतिज्ञा से पांडवों के खेमे में चिंता
उधर भीष्म पितामह की यह घोषणा सुनकर पांडवों के खेमे में खलबली मच गई। वे परेशान हो उठे और इसका उपाय ढूंढने का प्रयत्न करने लगे। उस दिन एक ही शिविर में द्रौपदी, भगवान कृष्ण और पांचों पांडु पुत्र मौजूद थे। कोई भी उपाय न सूझने पर द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से पूछा कि क्या इस समस्या का कोई भी समाधान नहीं है। तब भगवान कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा द्रौपदी से कहा कि समाधान तो है।
भगवान कृष्ण ने तब द्रौपदी से पूछा कि उसने आखिरी बार भीष्म पितामह का आशीर्वाद कब लिया था। यह सुनकर द्रौपदी की आँखों में आँसू आ गए और उसने कहा कि उसके जीवन में ऐसा कोई मौका कभी आया ही नहीं जब वो पितामह के आशीर्वाद ले सके। तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि क्यों न ये कार्य अभी किया जाये। इतना कह कर उन्होंने द्रौपदी को एक लंबा घूँघट कर उनके साथ चलने को कहा। द्रौपदी ने भगवान कृष्ण के कहे अनुसार वैसा ही किया। वे दोनों शिविर से निकले और भीष्म पितामह के शिविर की तरफ चल पड़े।
रास्ते में चलते हुए द्रौपदी के खड़ाऊ आवाज कर रहे थे। ऐसे में भगवान कृष्ण ने उसके खड़ाऊ उतरवा कर अपने हाथों में रख लिया ताकि कौरवों के गुप्तचर को इस बात की खबर न लगे। भीष्म पितामह के शिविर के पास पहुँच कर भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को कहा कि जाओ पितामह से अपने पतियों के लिए आशीर्वाद ले लो लेकिन उन्हें अपनी सूरत मत दिखाना।
ब्रह्म मुहूर्त होते ही द्रौपदी भीष्म पितामह के शिविर के पास गयी। वहाँ मौजूद शिविर के रक्षकों ने उसे रोका और उसके आने की वजह पूछी। तब द्रौपदी ने बताया कि वह भीष्म पितामह से मिलने आई हैं। रक्षकों ने उसे वहीं इंतज़ार करने को कहा। दरअसल भीष्म पितामह भी कर्ण की ही तरह ब्रह्म मुहूर्त में दरवाजे पर आए किसी भी याचक को खाली हाथ वापस नहीं भेजते थे। यह बात द्रौपदी भी जानती थी और भगवान कृष्ण भी।
जब ब्रह्म मुहूर्त में भीष्म पितामह अपने शिविर से बाहर निकले तो उन्हें एक सुबकती हुई स्त्री मिली। भीष्म पितामह ने उस स्त्री से उसकी व्यथा पूछी तो उस स्त्री ने उनसे वचन लिया कि चाहे कुछ भी हो भीष्म पितामह इस कठिन समस्या का समाधान अवश्य करेंगे। भीष्म पितामह ने हामी भर दी। तब द्रौपदी ने घूंघट में ही अपना चेहरा छिपाए हुए भीष्म पितामह को बताया कि उसके पति इस महाभारत के युद्ध में पांडवों की तरफ से लड़ रहे हैं और अब उन्हें चिंता है कि भीष्म पितामह उनका वध कर देंगे।
यह सुन भीष्म पितामह ने वचन अनुसार कहा कि उस स्त्री को रोने की कोई आवश्यकता नहीं है, वो यानी कि भीष्म उसके पति की हत्या नहीं करेंगे। भीष्म पितामह ने जैसे ही यह बात कही द्रौपदी ने आगे बढ़ कर उनके चरण छू लिए। भीष्म पितामह ने सर पर हाथ रखते हुए उसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे दिया। तब द्रौपदी ने अपना घूंघट उठाया। भीष्म द्रौपदी को पहचान गए और उन्हें सारा माजरा समझ आ गया।
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जब भीष्म और कृष्ण मिले
भीष्म पितामह ने तब मुस्कुराते हुए द्रौपदी से पूछा कि क्या कृष्ण उनके साथ नहीं आए हैं। पितामह की यह बात सुन द्रौपदी ने शिविर के एक ओर इशारा किया। भीष्म तेज कदमों से वहाँ पहुंचे और भगवान कृष्ण का अभिवादन किया। भीष्म पितामह को अचानक देखकर भगवान कृष्ण सकपका गए और उन्होंने खड़ाऊ वाले हाथ से ही उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम किया जिससे खड़ाऊ आपस में टकरा कर बज उठे। यह देख भीष्म पितामह ने भगवान कृष्ण से मुस्कुराते हुए कहा कि जिस महिला के खड़ाऊ तीनों लोकों के स्वामी ने अपने हाथों में उठा रखे हों, उसका क्या बुरा हो सकता है।
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