सनातन धर्म के चार प्रमुख धामों में से एक है केदारनाथ धाम। हिमालय की गोद में बसे केदारनाथ धाम में स्थापित भगवान शंकर का शिवलिंग देश भर के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। साल के लगभग छह महीने बर्फ से ढके रहने के बाद एक बार फिर से बाबा केदारनाथ के कपाट इसी महीने की 17 तारीख को खुल गए हैं। समुद्र तल से लगभग साढ़े तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बसे बाबा केदारनाथ में सनातन धर्म के अनुयायियों की बहुत आस्था है।
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लेकिन क्या आपको पता है कि बाबा केदारनाथ की स्थापना हुई कैसे थी? अगर नहीं पता है तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। आज हम आपको इस लेख में वो पौराणिक कथा बताने वाले हैं जो बाबा केदारनाथ के स्थापना का आधार बनी।
कैसे हुई केदारनाथ की स्थापना?
पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों ने महाभारत के युद्ध के बाद लगभग चार दशकों तक हस्तिनापुर पर राज किया था। इसी दौरान जब एक बार पांडव और भगवान श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध पर चिंतन-मनन कर रहे थे तब पांडवों ने बड़े ही दुखी मन से भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि पांडवों के ऊपर तो अपने बंधु-बांधवों की हत्या का पाप है। इसके साथ-साथ उन पर ब्रह्म हत्या तक का पाप है। ऐसे में क्या ये संभव है कि पांडवों को मोक्ष की प्राप्ति हो।
पांडवों का यह सवाल सुनकर भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया कि ये सत्य है कि पांडव महाभारत का युद्ध जीत चुके हैं और अब हस्तिनापुर पर उनका राज है लेकिन यह भी सत्य है कि पांडवों के हिस्से में इतने पाप आ चुके हैं कि उन्हें मोक्ष मिलना असंभव है। ऐसे में पांडवों को यदि मोक्ष चाहिए तो सिर्फ महादेव ही ऐसे हैं जिनके आशीर्वाद से उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
यह बात सुनकर पांडव हमेशा यही सोचा करते कि कब वो दिन आएगा जब वे भगवान महादेव के दर्शन कर उनसे मोक्ष का वरदान मांगेंगे। ऐसे में एक दिन ये भी खबर आई कि भगवान विष्णु भी पृथ्वी लोक पर अपना देह छोड़ कर विष्णु लोक जा चुके हैं। तब पांडवों के अंदर मोक्ष पाने की इच्छा और भी तीव्र हो गयी। ऐसे में पांडवों ने निश्चय किया कि अब वो ये सब त्याग कर भगवान शंकर के दर्शन करेंगे।
पांडवों ने सारा राजपाट राजा परीक्षित को सौंप दिया और भगवान शिव की तलाश में सबसे पहले भोले की प्रिय नगरी काशी पहुंचे लेकिन भगवान शिव उन्हें वहाँ नहीं मिले। इसके बाद उन्होंने हर जगह पर भगवान शंकर को ढूंढने का प्रयास किया और इसी क्रम में वे हिमालय जा पहुंचे। जब भगवान शंकर को पता चला कि पांडव उन्हें ढूंढते-ढूंढते केदार तक पहुँच गए हैं तो उन्होंने एक वृषभ का रूप धारण कर लिया।
लेकिन पांडवों ने भगवान शंकर को वृषभ रूप में भी पहचान लिया। भीम ने तब अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए विशालकाय रूप धारण किया और दो पर्वतों के बीच अपने पैर फैलाकर खड़े हो गए। भीम का विशाल रूप देख कर अन्य जानवर तो उनके पैरों के नीचे से निकल कर भाग गए लेकिन महादेव के रूप में मौजूद वृषभ ने ऐसा नहीं किया क्योंकि पैरों के नीचे से गुजरना देवताओं का अपमान माना जाता है।
कोई और रास्ता नजर न आता देख भगवान शंकर तब खुद को जमीन के अंदर अन्तर्धान करने लगे। लेकिन इस बार भीम पूरी तरह से तैयार थे और भगवान शंकर के जमीन में समाने से पूर्व ही उन्होंने वृषभ का कूबड़ पकड़ लिया। पांडवों के मन में अपने लिए इतनी श्रद्धा देखकर भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रसन्न हो कर पांडवों को दर्शन दिया और उन्हें सभी पापों से मुक्त कर दिया।
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इसी के बाद से केदारनाथ में भगवान शिव के वृषभ के पीठ रूपी शिवलिंग की पूजा होती है। मान्यता है कि जब भगवान शिव जमीन के अंदर अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ के ऊपर का हिस्सा नेपाल में प्रकट हुआ जहां अभी पशुपतिनाथ मंदिर है। इसके अलावा भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्यहेश्वर में और जटा कलपेश्वर में प्रकट हुआ। ये पांचों स्थान पंचकेदार के नाम से जाने जाते हैं। बताया जाता है कि केदारनाथ धाम का मंदिर भी राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने बनवाया था।
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हम उम्मीद करते हैं कि केदारनाथ धाम से जुड़ी यह कथा आपको जरूर पसंद आई होगी। एस्ट्रोसेज के साथ जुड़े रहने के लिए धन्यवाद!