अमावस्या तिथि हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। इस वर्ष की अगली अमावस्या 12 अप्रैल को पड़ रही है जिसे सोमवती अमावस्या कहा जाएगा। सोमवती अमावस्या इसलिए क्योंकि, अमावस्या सोमवार के दिन पड़ रही है और इस दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या तिथि अपने पितरों और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए, दान-पुण्य के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण और फलदाई होती है।
खैर ये तो रही वो बात जो अमावस्या तिथि के बारे में आप निश्चित रूप से ही जानते होंगे लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की फेरी लगाने का विशेष महत्व बताया गया है। कहा जाता है ऐसा करना बेहद शुभ होता है। लेकिन इसके पीछे की वजह क्या है? तो आइए जानते हैं सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की क्यों लगाते हैं? और साथ ही जानते हैं कि क्या है सोमवती अमावस्या का शुभ मुहूर्त और सही पूजन विधि।
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हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, सोमवती अमावस्या के दिन विशेष तौर पर विवाहित महिलाओं को पीपल के पेड़ की पूजा और उसकी फेरी करनी चाहिए। ऐसा करने से उनका वैवाहिक जीवन हमेशा सुखमय बना रहता है। इतना ही नहीं जिन लोगों के जीवन में लाख जतन के बावजूद विवाह योग नहीं बन पा रहा है, शादी की बात बनते-बनते अटक जाती है या विवाह में अनचाहा विलंब हो रहा है उन्हें भी सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने का विधान बताया गया है। ऐसा करने से जीवन में शीघ्र ही विवाह योग बनने लगते हैं।
सोमवती अमावस्या शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि आरंभ- (रविवार को) 11 अप्रैल 2021 सुबह 06 बजकर 05 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: (सोमवार को) 12 अप्रैल 2021 सुबह 08 बजकर 02 मिनट पर।
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अमावस्या का महत्व
जैसे की हमने पहले भी बताया कि, अमावस्या की तिथि पितरों की शांति के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके अलावा अमावस्या के दिन पूजा अर्चना करने से देवी देवता बेहद शीघ्र और आसान तरीके से प्रसन्न होते हैं और साथ ही इस दिन पवित्र नदियों में स्नान आदि से भी व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है।
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सोमवती अमावस्या की पूजन विधि
सोमवती अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी या किसी कुंड में स्नान करना चाहिए। यदि ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है तो घर के पानी में ही कुछ बूँद गंगाजल की डाल कर उस से स्नान कर लें। इसके बाद घर के मंदिर में विधि पूर्वक पूजा अर्चना करें। पूजा के बाद अपनी यथाशक्ति के अनुसार ज़रूरतमंदों, गरीबों और ब्राह्मणों को दान अवश्य करें।
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