सनातन धर्म में भगवान महादेव को देवों के देव की संज्ञा दी गयी है। कहा जाता है कि भगवान महादेव की जिस पर कृपा हो जाए वह मृत्यु को भी परास्त कर सकता है। ऐसी ही एक कथा सोमनाथ मंदिर से भी जुड़ी है। मान्यता है कि सोमनाथ मंदिर को स्वयं चंद्रमा देवता ने बनवाया था। देश भर में मौजूद सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर को ही माना जाता है। सोमनाथ मंदिर गुजरात के कठियावाड़ में समुद्र के किनारे बसा एक बेहद भव्य मंदिर है। कहते हैं कि मन में विश्वास और सच्ची श्रद्धा के साथ इस मंदिर में भगवान शिव से कुछ भी मांगा जाता है तो भगवान भोलेनाथ उसकी जरूर सुनते हैं।
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सोमनाथ मंदिर के सभी ज्योतिर्लिंगों में प्राचीनतम होने की वजह से सनातन धर्म के अनुयायी इसे बड़े ही आस्था की नज़रों से देखते हैं। सोमनाथ मंदिर का काफी वैभवशाली इतिहास रहा है। यही वजह है कि इस मंदिर ने कई आक्रमणों को झेला और कई बार इसका पुनर्निर्माण किया गया। इस मंदिर के प्रथम स्थापना की कथा बेहद अद्भुत है और आज हम इस लेख में आपको वही कथा बताने वाले हैं।
मान्यता है कि दक्ष प्रजापति की 60 पुत्रियाँ थी। राजा दक्ष ने उन 60 पुत्रियों में से सबसे ज्यादा यानी कि 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा देवता के साथ किया। लेकिन चंद्रमा देवता इन सब में से रोहिणी को सबसे अधिक प्रेम करते थे। इस वजह से दक्ष प्रजापति की अन्य पुत्रियाँ चंद्रमा देवता से नाराज रहती थीं लेकिन चंद्रमा पर इस बात का कोई असर न पड़ता। अंत में इन सभी ने अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति से इस बात की शिकायत कर दी।
ऐसे में राजा दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को समझाने की कोशिश भी की लेकिन चंद्रमा देवता पर उनकी बात का भी कोई असर नहीं पड़ा। यह देख कर राजा दक्ष को चंद्रमा देवता पर गुस्सा आ गया और उन्होंने उन्हें क्षय रोग का श्राप दे दिया। राजा दक्ष प्रजापति के ऐसा करते ही चंद्रमा क्षयग्रस्त हो गए जिसकी वजह से चारों ओर त्राहिमाम शुरू हो गया। सृष्टि पर हो रहे सारे काम रुक गए और आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
सृष्टि को विनाश की ओर अग्रसर देखते हुए सारे देवता परेशान होकर परमपिता भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे और उन्हें इस समस्या से अवगत कराया। तब भगवान ब्रह्मा ने इसका उपाय बताते हुए चंद्रमा देवता को कहा कि उन्हें इस श्राप से मुक्त करने के लिए सभी देवताओं के साथ प्रभास क्षेत्र जाकर भगवान भोलेनाथ की उपासना करनी होगी।
चंद्रमा देवता ने भगवान ब्रह्मा के आदेश का पालन किया और बहुत ही कठोर तपस्या की। इस दौरान उन्होंने 10 करोड़ बार महा मृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चंद्रमा देवता की कठोर तपस्या को देखते हुए भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्रमा देवता को अमर होने का वरदान दिया। साथ ही भगवान महादेव ने चंद्रमा देवता को कहा कि उन्हें अब चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनके वरदान से न सिर्फ चंद्रमा देवता का भला होगा बल्कि राजा दक्ष प्रजापति के शब्दों का भी मान रहेगा। भगवान शिव चंद्रमा को बताते हैं कि उनके वरदान और दक्ष प्रजापति के श्राप की वजह से उस दिन के बाद से कृष्ण पक्ष में चंद्रमा की कलाएं एक-एक कर खत्म होगी और शुक्ल पक्ष में चंद्रमा देवता अपनी कलाएं एक-एक कर वापस पाएंगे। इस वजह से प्रत्येक महीने चंद्रमा दो बार पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त करेंगे।
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भगवान शिव की यह भविष्यवाणी सुनकर सृष्टि में चारों ओर हर्षोल्लास की लहर फ़ेल गयी। भगवान शिव के आशीर्वाद से रोग मुक्त होकर चंद्रमा सभी देवताओं के साथ मिल कर भगवान शंकर और माता पार्वती से आग्रह किया कि वो इस जगह आकर वास करें ताकि समस्त प्राणियों का उद्धार हो सके। सभी देवताओं का आग्रह मान भगवान शंकर वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए जिसके बाद चंद्रमा देवता ने वहाँ भव्य मंदिर का निर्माण किया। चूंकि चंद्रमा का एक और नाम सोम भी है इसलिए इस मंदिर को सोमनाथ कहा जाने लगा।
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