हर साल पूरे वर्ष भर में चार ऐसी खगोलीय घटना होती ही हैं, जिनमें 21 मार्च और 23 सितम्बर को दिन और रात की अवधि एक समान हो जाती हैं, यानी कि इन दो दिन रात और दिन एक बराबर हो जाते हैं, तो वहीं साल के दो दिन ऐसे भी होते हैं, जिन्हें साल के सबसे बड़े और सबसे छोटे दिनों की श्रेणी में रखा जाता हैं। साल 2019 में 21 जून वह दिन था जिसे साल का सबसे बड़ा दिन माना गया। इस दिन सूर्य काफी देर तक पृथ्वी पर अपनी किरणों से प्रकाश फैलाता हैं।
साल का सबसे छोटा दिन होने वाला है दिसंबर 22 का दिन
इसके एकदम विपरीत साल का एक दिन होता है 22 दिसम्बर का दिन। ये वह दिन होता है, जिसे साल के सबसे छोटे दिन के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन सूर्य पृथ्वी पर बेहद कम समय के लिए उपस्थित होता है। इस दिन अलग ये भी होता है कि चंद्रमा अपनी शीतल किरणों का प्रसार पृथ्वी पर ज़्यादा समय तक के लिए करता है। 22 (कभी 21 दिसंबर) दिसम्बर की इस खगोलीय घटना को विंटर सोलस्टाइस के नाम से भी जाना जाता हैं।
यूँ तो देखा जाए तो दिन के बाद रात का आना और फिर रात के बाद दिन होना एक बेहद ही सामान्य घटनाक्रम होता है। हाँ कई बार मौसम बदलने से दिन जल्दी निकल जाता है तो कभी रात जल्दी होने लगती है। इन सब बातों को बेहद सामान्य खगोलीय घटना माना जाता है, जिसपर आमतौर से किसी का ध्यान भी नहीं जाता। लेकिन इस बार 22 दिसंबर का दिन खगोलीय रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
क्यों होता है छोटा दिन
पृथ्वी अपने अक्ष पर साढ़े तेईस डिग्री झुकी हुई है। जिसके कारण सूर्य की दूरी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध से अधिक हो जाती हैं और सूर्य की किरणें पृथ्वी पर कम समय तक ही रह पाती हैं। कहा जाता है कि 22 दिसम्बर के दिन सूर्य, जिसे सौरमंडल का मुखिया भी कहा जाता हैं, वह दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है। साल के सबसेछोटे दिन 22 दिसम्बर के दिन सूर्य देवता मकर रेखा के लंबवत होते हैं तथा कर्क रेखा को तिरछा स्पर्श करते हैं, जिसके कारण इस दिन सूर्य जल्दी अस्त हो जाता हैं और चंद्रमा जल्दी आ जाता है।
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कभी यह खगोलीय घटना 21 तो कभी 22 दिसंबर को घटित होती है। इस दिन के बाद से सर्दियां बढ़ने लगती हैं।
इस वजह से महत्वपूर्ण है ये खगोलीय घटना
इसका नतीजा ये होता है कि इस दिन से ठंड बढऩी शुरू हो जाती हैं। 22 दिसम्बर के अगले दिन से ही दिन बड़े होने शुरू हो जाते हैं और रात छोटी होने लग जाती हैं। हर साल सर्द ऋतु में होनी वाली यह खगोलीय घटना किसानों के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद होती है। 21 दिसम्बर के दिन से ठंड का असर बढ़ जाता है, जिसके कारण रात के समय ओस की छोटी छोटी बूँदे फ़सलों पर पड़ती हैं, इससे फ़सलों में नमी बनी रहती हैं और गेहूं और चने की फसल जो शीत ऋतु की प्रमुख फ़सलों हैं, इन फ़सलों की पैदावार काफी हद तक बढ़ जाती है।
अगर आप इस खगोलीय घटना को तकनीकी शब्दों में समझना चाहते हैं तो ऐसे समझिए कि हमारी पृथ्वी नार्थ और साउथ नाम के दो पोल में विभाजित है। साल के अंत में 22 दिसंबर (या 21 दिसंबर) को सूर्य पृथ्वी के पास होता है और उसकी किरणें सीधे ही मकर रेखा पर पड़ती हैं।
अब क्योंकि सूर्य पृथ्वी के बेहद पास है इसलिए इसकी उपस्थिति महज 8 घंटों की ही रहती है और रात 16 घंटों की होती है। वैसे यह नियमित होने वाली खगोलीय घटना ही है, जो निश्चित समय पर अपने आप ही घटित हो जाती है। इस दिन के बाद से ही ठंड का पारा सातवें आसमान पर चढ़ता है। सूर्य का दक्षिणायन होना इसकी प्रमुख वजह है।
फिलहाल सूर्य मकर रेखा के ऊपर है, जिसके चलते दक्षिणी गोलार्ध में अभी भी गर्मी का मौसम है। उत्तरी गोलार्ध में सूर्य की किरणें सीधी न पड़ते हुए आड़ी पड़ने के चलते ही यहां ठंड का मौसम है। उत्तरी गोलार्ध पर सूर्य का झुकाव 23.5 डिग्री होता है। इस कारण 22 दिसंबर का ये दिन साल का सबसे छोटा दिन बन जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस घटना के बाद से ही असली सर्दी की शुरुआत हो जाती है।