Skanda Sashti 2021: जानिए स्कंद षष्ठी की रोचक कथा, और पूजा का महत्व

हिंदी पंचांग के मुताबिक स्कंद षष्ठी का व्रत हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। इस बार स्कंद षष्ठी 2021 (Skanda Sashti 2021) माघ माह में  17 फरवरी को बुधवार के दिन मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति स्कंद षष्ठी के दिन भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करता है, उस पर भगवान शिव की विशेष कृपा बनी रहती है, और भगवान कार्तिकेय का भी आशीर्वाद मिलता है। ऐसी भी मान्यता है, की भगवान कार्तिकेय की आराधना कर उपवास करने से व्यक्ति के जीवन में आ रही सभी तरह की परेशानियां खत्म हो जाती है। आइए नीचे दिए गए लेख में आपको बताते है स्कंद षष्ठी से जुड़ी खास बात और रोचक कथा।

स्कंद षष्ठी का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक स्कंद षष्ठी के दिन भगवान भोले, माता पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है, वेद-पुराण के अनुसार स्कंद षष्ठी के दिन पूजा-पाठ करने और व्रत रखने से घर पर आया किसी भी तरह का संकट दूर हो जाता है, साथ ही साथ जीवन में आने वाली अड़चनों से भी छुटकारा मिलता है, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान शिव-माता पार्वती और भगवान कार्तिकेय तीनों का आशीर्वाद मिलता है, इसलिए हिन्दू धर्म में स्कंद षष्ठी के दिन का विशेष महत्व है, और इस दिन पूजा-पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती। जीवन में सुख-समृद्धि और वैभव आता है।

माघ स्कंद षष्ठी 2021 मुहूर्त (Magh Skanda Sashti 2021 Muhurat)

स्कंद षष्ठी- 17 फरवरी,2021, बुधवार

माघ शुक्ल षष्ठी प्रारंभ- सुबह 05:46 से

माघ शुक्ल षष्ठी समाप्त- सुबह 07:17 तक

स्कंद षष्ठी पूजा विधि

  • प्रात: काल उठकर स्नान करें, फिर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें
  • भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान कार्तिकेय तीनों की पूजा करें
  • घी का दीपक जलाएं, तीनों को तिलक लगाकर भोग चढ़ाएं।
  • शिव चालीसा का पाठ कर आरती करें 
  • दिन भर उपवास कर एक वक्त फलाहार ग्रहण करें 

 स्कंद षष्ठी व्रत की रोचक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब देवलोक में असुरों ने आतंक मचाया था, और असुरों के आतंक के सामने देवताओं को पराजय का सामना भी करना पड़ा, जिसके बाद लगातार असुरों का आतंक बढ़ता ही गया, और यह सब देख देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से मदद की गुहार लगाई, तब भगवान ब्रह्मा ने बताया की इन सभी असुरों का अंत भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही होगा।लेकिन देवताओं के सबसे बड़ी समस्या यह थी , की उस वक्त भगवान शिव माता सती के वियोग के कारण समाधि में लीन थे, तब भगवान शिव को समाधि से उठाने के लिए इंद्र और देवताओं ने भगवान कामदेव की मदद मांगी। फिर भगवान कामदेव ने भस्म होकर भगवान शिव की तपस्या को भंग कर दिया। इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती के साथ विवाह संपन्न किया, और फिर भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के साथ देवदारु वन में एक दूसरे के साथ समय बिताने चले गए। जब भगवान भोले नाथ माता पार्वती के साथ एक गुफा में रह रहे थे, उसी वक्त एक कबूतर गुफा में प्रवेश कर गया और उसने इस दौरान भगवान शिव के वीर्य को ग्रहण कर लिया। परंतु वह कबूतर इसे सहन नहीं कर सका और उसने उसे भागीरथी को सौंप दिया…लेकिन गंगा की लहरों के कारण वह 6 भागों में हो गया, और फिर 6 बालकों ने जन्म लिया, यही 6 बालक मिलकर 6 सिर के बालक बन गए…और इस तरह भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ…फिर भगवान कार्तिकेय ने असुरों का अंत कर देवताओं की समस्या को खत्म किया, तभी से भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना कर भक्त सुख-समृद्धि और वैभव की कामना करते हैं।