सिंह संक्रांति 2024: सूर्य देव की पूजा सनातन धर्म में देवता के स्वरूप में की जाती है जबकि ज्योतिष में इन्हें नवग्रहों के राजा कहा जाता है। इस प्रकार, सूर्य मनुष्य जीवन के साथ-साथ समस्त संसार के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इनके बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है क्योंकि सूर्य देव को जगत पिता और संसार की आत्मा के नाम से जाना जाता है जो अपने प्रकाश से मानव समेत पेड़-पौधों एवं जीव-जंतुओं को जीवन प्रदान करते हैं।
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ऐसे में, सूर्य ग्रह का राशि परिवर्तन महत्वपूर्ण माना गया है और अब जल्द ही यह सिंह राशि में गोचर करने जा रहे हैं। एस्ट्रोसेज के इस विशेष ब्लॉग में आपको सिंह संक्रांति 2024 से जुड़ी समस्त जानकारी प्राप्त होगी जैसे कि तिथि, मुहूर्त और समय। इसके अलावा, क्या है सिंह संक्रांति का महत्व और इस दिन किन उपायों को करने से मिलती है सूर्य भगवान की कृपा आदि से भी रूबरू करवाएंगे। लेकिन, सबसे पहले जानते हैं सिंह संक्रांति 2024 की तिथि एवं मुहूर्त के बारे में।
सिंह संक्रांति 2024: तिथि और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष सिंह संक्रांति को भाद्रपद महीने में मनाया जाता है। इस संक्रांति को एक साल में आने वाली सभी संक्रांति तिथियों में से सबसे खास स्थान प्राप्त है। सिंह संक्रांति के दिन भगवान सूर्य चंद्र देव की राशि कर्क से निकलकर स्वयं की राशि सिंह में प्रवेश कर जाते हैं इसलिए इसे पर्व को “सिंह संक्रांति” के नाम से जाता है। यह संक्रांति देश भर के विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न नामों से जानी जाती है जैसे कि उत्तराखंड में सिंह संक्रांति को घी संक्रांति या ओल्गी संक्रांति कहते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, इस संक्रांति को कृषि और पशुपालन से भी जोड़ा जाता है जिसके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।
सिंह संक्रांति की तिथि एवं पूजा मुहूर्त
सिंह संक्रांति की तिथि: 16 अगस्त 2024, शुक्रवार
सिंह संक्रांति का पुण्यकाल: दोपहर 12 बजकर 25 मिनट से शाम 07 बजकर 01 मिनट तक,
अवधि: 06 घंटे 37 मिनट तक
सिंह संक्रांति का महापुण्य काल: शाम 04 बजकर 49 मिनट से शाम 07 बजकर 01 मिनट तक,
सिंह संक्रांति का क्षण: शाम 07 बजकर 54 मिनट तक
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कब और किस समय होगा सूर्य का सिंह राशि में गोचर?
बता दें कि सूर्य महाराज 16 अगस्त 2024 की शाम 07 बजकर 32 मिनट पर कर्क राशि को छोड़कर सिंह राशि में गोचर करने जा रहे हैं। ऐसे में, सूर्य गोचर का प्रभाव मनुष्य के जीवन सहित देश-दुनिया पर नज़र आएगा। चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और आपको अवगत करवाते हैं संक्रांति तिथि के अर्थ के बारे में।
किसे कहते है संक्रांति?
सिंह संक्रांति से पहले हमें संक्रांति के अर्थ के बारे में बात करेंगे, तो आपको बता दें कि एक राशि से दूसरी राशि में सूर्य के प्रवेश को संक्रांति कहते हैं। एक वर्ष में सूर्य देव 12 बार अपनी राशि में परिवर्तन करते हैं। इस प्रकार, हर महीने सूर्य लगभग एक माह के लिए एक राशि में रहते हैं और इसके पश्चात, यह दूसरी राशि में चले जाते है। राशि चक्र में सूर्य देव को मेष से लेकर मीन राशि तक के अपने सफर को पूरा करने में 12 महीनों का समय लगता है।
सामान्य शब्दों में कहें, तो इन्हें बारह राशियों में गोचर करने में एक साल लगता है। संक्रांति 2024 के अनुसार, एक वर्ष में में कुल 12 संक्रांतियां आती हैं और इसी क्रम में, सूर्य के राशि परिवर्तन के दिन यानी संक्रांति को देश भर में एक पर्व के रूप में मनाया जाता है।
इस प्रकार, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो सूर्य के संक्रमण काल को उत्सव की तरह मनाये जाने का विधान है। बता दें कि सूर्य देव के उत्तरायण होने की अवधि को देवताओं का दिन माना जाता है जबकि दक्षिणायन देवताओं की रात्रि मानी गई है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था।
सिंह संक्रांति का धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टि से, सिंह संक्रांति की तिथि अति शुभ मानी जाती है और इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करना श्रेष्ठ होता है। वर्ष 2024 में 16 अगस्त, शुक्रवार के दिन पड़ने वाली सिंह संक्रांति का नाम मिश्र है, सूर्य देव का वाहन सिंह, वस्त्र श्वेत, दृष्टि नैऋत्य, गमन पूर्व और भक्ष्य पदार्थ अन्न है। इस संक्रांति पर सूर्य भगवान श्वेत वस्त्रों में शेर पर सवार होकर पूर्व दिशा की तरफ गमन करेंगे। भाद्रपद या भादो के महीने में आने वाली संक्रांति को सिंह संक्रांति कहते हैं और देशभर में इस संक्रांति के साथ अलग-अलग नाम और मान्यताएं जुड़ी हैं।
हिंदू धर्म में हर माह आने वाली संक्रांति तिथि को प्रत्येक शुभ एवं मांगलिक कार्यों को करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह तिथि सूर्य भगवान को समर्पित होती है और इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही, सिंह संक्रांति पर सूर्य पूजा के साथ-साथ जगत के पालनहार भगवान विष्णु और नरसिंह जी की पूजा का भी विधान है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सिंह संक्रांति पर पूजा-पाठ, दान और स्नान करने से भक्त को विशेष लाभ मिलता है। इस अवसर पर भक्तजन सूर्य देव सहित समस्त देवी-देवताओं की कृपा प्राप्ति के लिए पवित्र नदियों में स्नान आदि करते हैं और भक्तजन अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों एवं जरूरतमंदों को दान करते हैं। साथ ही, पूर्वजों का स्मरण करते हुए हवन करते हैं।
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देश के विभिन्न राज्यों में सिंह संक्रांति
हम आपको बता चुके हैं कि सिंह संक्रांति को उत्तराखंड में घी संक्रांति या ओल्गी संक्रांति कहते हैं। यह एक लोक पर्व है जिसका संबंध कृषि और पशुपालन से है। इस दिन किसान फसल की अच्छी पैदावार के लिए भगवान से कामना करते हैं और इस समय चारों तरफ हरियाली छाई रहती है। साथ ही, दूध में बढ़ोतरी होने से दही-मक्खन-घी भी अच्छी मात्रा में प्राप्त होता है।
भारत के उत्तरी हिस्से की तुलना में दक्षिण के राज्यों में सिंह संक्रांति को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। सिंह संक्रांति से मलयालम कैलेंडर में चिंगा माह, तमिल में अवनि माह और बंगाली कैलेंडर में भादो महीने का आरंभ होता है।
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सिंह संक्रांति पर क्यों किया जाता है घी का सेवन?
सिंह संक्रांति पर घी का सेवन अत्यंत शुभ होता है और इस दिन घी का उपयोग भी किया जाता है। कहते हैं कि इस अवसर पर घी खाने से याददाश्त तेज़ होने के साथ-साथ जातक को तेज़ बुद्धि का भी आशीर्वाद मिलता है। साथ ही, वह ऊर्जावान बना रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो जातक सिंह संक्रांति पर घी का सेवन नहीं करते हैं, उनको अगला जन्म घोंघे के रूप में प्राप्त होता है। हम जानते हैं कि घोंघा आलस का प्रतिनिधित्व करता है और इस वजह से यह बहुत मंद गति से चलता है इसलिए इस दिन घी का सेवन अवश्य किया जाता है ताकि हमें अगला जन्म घोंघे का न मिले। इसके अलावा, सिंह संक्रांति के दिन घी का सेवन राहु और केतु के अशुभ प्रभावों से आपको मुक्ति दिलाता है।
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ज्योतिषीय दृष्टि से सिंह संक्रांति का महत्व
जैसे कि हम आपको बता चुके हैं कि सूर्य देव को हिंदू धर्म के साथ-साथ ज्योतिष में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है जिन्हें आत्मा के कारक कहा जाता है। सिंह संक्रांति के दिन लगभग एक साल के बाद सूर्य महाराज अपने आधिपत्य वाली राशि सिंह में गोचर करते हैं और ऐसा माना जाता है कि सिंह राशि में गोचर करने के साथ ही सूर्य बहुत शक्तिशाली हो जाते हैं। इसके अलावा, इनके प्रभाव में भी वृद्धि होती है।
सिंह राशि में सूर्य ग्रह की स्थिति अन्य राशियों की तुलना में काफ़ी मज़बूत होती हैं। सूर्य के सिंह राशि में गोचर के संबंध में कहा जाता है कि जब सूर्य बली अवस्था में होते हैं, तो वह जातक के जीवन से सभी तरह के रोगों को नष्ट करते हैं। साथ ही, व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि भी करवाते हैं। सूर्य के सिंह राशि में विराजमान होने पर सूर्य देव की पूजा-अर्चना अत्यंत कल्याणकारी मानी जाती है इसलिए एक माह तक जब यह सिंह राशि में निवास करते हैं उस अवधि में नियमित रूप से भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही, सिंह संक्रांति पर घी का सेवन करने का भी विधान है।
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सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए सूर्य संक्रांति पर करें ये 5 उपाय
अर्घ्य और दान: अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य दोष है, तो सिंह संक्रांति के दिन आप सूर्य से जुड़ी वस्तुओं जैसे तांबा, गुड़ आदि का दान करें। साथ ही, इस दिन सूर्य देव को सुबह अर्घ्य दें।
भगवान विष्णु का पूजन: सिंह संक्रांति पर भगवान विष्णु और भगवान नरसिंह की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
लाल वस्तुओं का करें दान: सिंह संक्रांति 2024 पर स्नान एवं पूजन के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए जैसे तांबे का बर्तन, लाल वस्त्र, लाल रंग, लाल चंदन आदि।
घी का करें उपयोग: धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस दिन घी का सेवन नहीं करेगा, उसका अगला जन्म घोंघे के रूप में मिलेगा इसलिए नवजात शिशुओं के सिर और पैर के तलवों पर घी लगाया जाता है इसलिए इस दिन खान-पान में घी का इस्तेमाल करें और उसका सेवन करें।
आटे का दीपक करें प्रवाहित: सूर्य संक्रांति के दिन आटे से दीपक बनाकर शुभ मुहूर्त में नदी में प्रवाहित करना चाहिए। इस उपाय को करने से मनुष्य के जीवन के सभी संकट नष्ट हो जाते हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्तर 1. इस अवसर पर देश के कुछ हिस्सों में खिचड़ी खाने की परंपरा है। आप चाहे तो सात्विक भोजन जैसे फल, सब्जियां, दूध, दही आदि का सेवन कर सकते हैं।
उत्तर 2. सिंह संक्रांति पर मांसाहार का सेवन करने के साथ-साथ झूठ बोलने, क्रोध करने या किसी के साथ बुरा व्यवहार करने से बचना चाहिए।
उत्तर 3. सिंह संक्रांति से जुड़ी मान्यता है कि सिंह संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव नामक राक्षस का संहार किया था।