भारत विभिन्न-विभिन्न धर्मों का देश है जहाँ हर धर्म और हर समुदाय के अलग-अलग त्योहार और संस्कृति ही उसकी मुख्य पहचान हैं, जिसे हर समुदाय बेहद उत्साह, उमंग व ख़ुशियों के साथ मनाता है। हर धर्म के अपने कुछ विशेष पर्व भी होते हैं जिन्हें उस धर्म से संबंधित समुदाय के लोग अपने धर्म की पहचान के स्वरूप में सालों से मनाते आ रहे हैं। इसी में से एक समुदाय है सिंधी समाज जिसका ‘थदड़ी’ पर्व बेहद महत्वपूर्ण होता है।
अपने अर्थ के अनुसार ही ‘थदड़ी’ का अर्थ सिंधी भाषा में होता है ठंडी, शीतल, आदि। सिंधी समुदाय का ये विशेष पर्व हर वर्ष रक्षाबंधन पर्व के आठवें दिन को आता है, जिसे देश-विदेश में समूचा सिंधी समुदाय बहुत हर्षोल्लास से मनाता है। इस वर्ष ये पावन पर्व आज, यानी शुक्रवार 23 अगस्त को मनाया जाएगा।
थदड़ी पर्व का पौराणिक महत्व
सिंधी समुदाय के लोग इस पर्व को सदियों से मनाते आ रहे हैं। इस पर्व को मनाने के पीछे की जो पौराणिक कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है, उसके अनुसार आज से कई हजारों वर्ष पूर्व एक बार मोहन जोदड़ो की खुदाई के दौरान ज़मीन में से माँ शीतला देवी की एक भव्य प्रतिमा निकली थी। ऐसी मान्यता है कि उन्हीं की आराधना में सिंधी समुदाय यह पर्व तभी से मनाता आ रहा है।
थदड़ी पर्व को लेकर इसके अलावा भी अलग-अलग तरह की पौराणिक कहानियाँ बेहद प्रचलित है। जिसमें से एक अन्य कथा के अनुसार पुराने काल में धरती पर तरह-तरह की मान्यताएँ मानी जाती थी। उस वक़्त प्राकृतिक घटनाओं को दैवीय प्रकोप माना जाता था। जिस प्रकार मान्यताओं अनुसार समुद्री तूफानों को जल देवता के एक प्रकोप के रूप में देखा जाता है, सूखा-ग्रस्त क्षेत्रों को इंद्र देवता की नाराज़गी के साथ जोड़ा जाता है, उसी तरह उस समय जब एक बार किसी को माता (चेचक) निकलती थी तो उसे दैवीय प्रकोप मानकर देवी को प्रसन्न करने हेतु उसकी स्तुति की गई और तभी से थदड़ी पर्व मनाया जाने लगा जिस दौरान ठंडा खाना खाए जाने का विधान है।
सिंधी समाज के थदड़ी पर्व से जुड़ी कुछ बातें:-
- सिंधी समुदाय के लोगों के बीच ये पर्व विशेष महत्व रखता है, इसलिए इस त्योहार के एक दिन पहले से ही हर सिंधी परिवार में तरह-तरह के लज़ीज व्यंजन बनाए जाने शुरू हो जाते हैं।
- व्यंजन पकाने के बाद इस पर्व से एक दिन पहले की रात को सोने से पूर्व चूल्हे पर जल छिड़क कर हाथ जोड़कर अग्नि देव की पूजा किये जाने का विधान है। जिसके बाद चूल्हा ठंडा कर दिया जाता है।
- एक बार चूल्हा ठंडा कर दिया जाता है तो मान्यता अनुसार दूसरे दिन किसी भी सिंधी घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और सभी घरों में केवल एक दिन पहले बनाया हुआ ठंडा खाना ही खाया जाता है।
- इसके साथ ही इस दिन परिवार के सभी सदस्य किसी नदी, नहर, कुएँ या बावड़ी में जाकर मां शीतला देवी की विधिवत पूजा करते हैं।
- जिसके बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद लेकर ही ठंडा खाना प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
- हालांकि आज बदलते दौर में इस दिन की पूजा का स्वरूप भी पहले के मुकाबले बदल गया है।
- चूँकि आज कुएँ, बावड़ी व नदियाँ अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं, ऐसे में लोग इस पर्व पर घरों में ही पानी के स्रोत बनकर भी उसमें पूजा कर सकते हैं।
- मान्यता है कि इस पूजा में घर के छोटे बच्चों को विशेष तौर से शामिल किया जाता है, जिस दौरान मां शीतला देवी की पूजा कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।
- इस दौरान सिंधी समुदाय ये लोक पंक्तियाँ गाता हैं :-
“ठार माता ठार पहिंजे बच्चणन खे ठार
माता अगे भी ठारियो तई हाणे भी ठार…”
- जिसका तात्पर्य होता है कि, ‘हे माता मेरे बच्चों को शीतलता देना। आपने पहले भी ऐसा किया है आगे भी ऐसा करना…’
- इसके बाद घर के बड़े सदस्य सभी छोटे सदस्यों को भेंट स्वरूप में दक्षिणा या कोई दूसरा उपहार देते हैं।
- थदड़ी पर्व के दिन शादीशुदा बहन और बेटियों को खासतौर पर मायके बुलवाने का विधान है।
- इसके बाद लड़की के ससुराल में भी किसी सदस्य द्वारा ठंडे व्यंजन और फल भेंट स्वरूप भेजे जाते हैं, जिसे ‘थदड़ी का ढि्ण’ कहा जाता है।
थदड़ी पर्व पर पकाए जाने वाले सिंधी व्यंजन
- इस दिन सिंधी परिवार विशेष तौर पर कूपड़, गच, कोकी, सूखी तली हुई सब्ज़ियाँ- भिंडी, करेला, आलू, रायता, दही-बड़े, मक्खन आदि पकाता है।
- इस दिन आटे में मोयन डालकर और शक्कर की चाशनी से आटा गूँथकर कूपड़ बनाए जाते हैं।
- इसके अलावा मैदे में मोयन और पिसी इलायची व पिसी शक्कर डालकर गच का आटा गूँथा जाता है।
- जिसे बाद में मनचाहे आकार में तलकर गच तैयार किए जाते हैं, जो इस दिन इस पर्व को मनाते हुए दूसरों को बाटें जाते हैं।
तो कुछ इस तरह सिंधी समाज आज मनाएगा ‘थदड़ी पर्व’ ।
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