जानिए कब है उत्तरायण और इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा

उत्तरायण, उत्तर एक दिशा के नाम पर है और आयन शब्द का अर्थ होता है परिवर्तन। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक साल में दो आयन होते हैं। यानी कि प्रत्येक साल में सूर्य दो बार स्थिति परिवर्तन करता है। सूरज 6 महीने उत्तरायण यानी उत्तर दिशा और 6 महीने दक्षिणायन यानी दक्षिण दिशा में रहता है। अब जानते हैं वर्ष 2021 में सूर्य का उत्तरायण कब होने वाला है और संक्रांति पल की संपूर्ण जानकारी। इसके अलावा जानते हैं उत्तरायण और दक्षिणायन का महत्व। 

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2021 में उत्तरायण कब है?

14 जनवरी, 2021 (गुरुवार)

उत्तरायण संक्रांति मुहूर्त New Delhi, India के लिए

संक्रांति पल :08:03:07

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उत्तरायण काल की शुरुआत 14 जनवरी से होती है। यह वह समय होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है यानी मकर संक्रांति। गुजरात और महाराष्ट्र में यह त्योहार उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है। जबकि इससे ही उत्तर भारत में मकर संक्रांति के नाम से जानते हैं। उत्तरायण का यह समय शुभ फल देने वाला माना गया है। इस दिन को देवताओं का दिन कहा जाता है और यही वजह है कि इस काल में कोई भी नया काम, यज्ञ, व्रत, अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसा कोई भी मांगलिक और शुभ काम करना बेहद ही अच्छा माना गया है। इसके अलावा उत्तरायण के मौके पर गंगा और यमुना या किसी भी पवित्र नदी में स्नान का भी बेहद महत्व माना जाता है। इस दिन लोग अपनी इच्छाशक्ति से दान आदि करते हैं जिसका उन्हें शुभ फल प्राप्त होता है। गुजरात में उत्तरायण के दिन पतंग महोत्सव मनाया जाता है। 

जानकारी के लिए बता दें कि जब सूर्य मकर से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है तो इसे उत्तरायण कहते हैं। सूर्य उत्तरायण की अवधि 6 महीने तक होती है। इसके बाद जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करता है तो इसे दक्षिणायन कहते हैं और इसकी अवधि भी 6 महीने की होती है। जहां दक्षिणायन नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है वहीं उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक कहा जाता है।

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उत्तरायण के समय दिन लंबा हो जाता है और रातें छोटी हो जाती है। इस दौरान तीर्थ यात्रा, धाम के दर्शन और उत्सवों का समय होता है। उत्तरायण काल में तीन ऋतुएँ प्रमुख रूप से होती हैं, शिशिर ऋतु, बसंत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु वहीं, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि माना जाता है। इस दौरान रातें लंबी होती है और दिन छोटे होने लगते हैं। जहां उत्तरायण की शुरुआत 14 जनवरी से होती है, वहीं दक्षिणायन की शुरुआत 14 जून से मानी जाती है। दक्षिणायन के दौरान विवाह, मुंडन, उपनयन, आदि मांगलिक कार्य निषेध माने जाते हैं। दक्षिणायन में तीन ऋतुएँ होती हैं वर्षा ऋतु, शरद ऋतु और हेमंत ऋतु। तामसिक प्रयोगों के लिए दक्षिणायन का समय बेहद ही उपयुक्त माना गया है। 

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उत्तरायण काल से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं 

  • उत्तरायण काल का महत्व शास्त्रों में उल्लेख श्रीमद्भागवत गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि, उत्तरायण के छह महीनों के इस शुभ समय में पृथ्वी प्रकाश में होती है इसलिए इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता। उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
  • जानकारी के लिए बता दें कि, महाभारत काल में भी भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए इसी दिन को चुना था। 
  • उत्तरायण काल के पहले दिन मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का विशेष महत्व माना गया है। इसी दिन गंगा जी स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर अवतरित हुई थी। मकर संक्रांति के दिन महाराजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था और उनका अनुसरण करते हुए गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जा समाई थी। ऐसे में इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व माना गया है। 

हिंदू धर्म में उत्तरायण 

हिंदू धर्म में उत्तरायण आस्था का महापर्व माना जाता है। इस दौरान स्नान, दान, धर्म और पूर्वजों का तर्पण करना विशेष महत्वपूर्ण होता है। उत्तरायण के मौके पर देश में कई जगहों पर भव्य मेले लगते हैं। इस मौके पर श्रद्धालुओं गंगा और देश की अन्य पवित्र नदियों पर स्नान दान और धर्म कर्म करने पहुंचते हैं। मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण में उत्तरायण का जिक्र मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आध्यात्मिक प्रकृति और ईश्वर की पूजा अर्चना के लिए उत्तरायण काल का समय विशेष फलदाई होता है।

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