शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा पाने का दिन है हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को होता है और यह हर माह में दो बार आता है, एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में। शुक्रवार के दिन पड़ता वाले प्रदोष को शुक्र प्रदोष कहते हैं। इस बार शुक्रवार 11 अक्टूबर को आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। ऐसे में 11 अक्टूबर को शुक्र प्रदोष व्रत पड़ रहा है। प्रदोष व्रत में देवों के देव महादेव शिव जी की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव प्रदोष काल के समय में कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं। माना जाता है कि शुक्र प्रदोष व्रत करने से भक्तों के मन की इच्छा की पूर्ति होती है। साथ ही इस व्रत को करने से जीवन के सभी रोग, दोष, शोक, कलह आदि हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं। यह व्रत आँखों के रोग और वैवाहिक जीवन की परेशानियों को भी दूर करता है। शुक्र प्रदोष व्रत करना बहुत ही फलदायक होता है, तो चलिए आज इस लेख में आपको बताते हैं शुक्र प्रदोष व्रत की संपूर्ण पूजा विधि –
शुक्र प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्त
10 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 52 मिनट से आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ हो रहा है, जो कि 11 अक्टूबर को रात 10 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। शुक्र प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त 11 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 56 मिनट से रात के 08 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में ही भगवान शिव की भक्ति करना उत्तम होगा।
शुक्र प्रदोष व्रत पूजा विधि
- शुक्र प्रदोष व्रत करने के लिए त्रयोदशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं।
- स्नानादि से निवृत होने के बाद साफ हल्के सफेद या गुलाबी कपड़े पहनें और शुक्र प्रदोष व्रत का संकल्प लें।
- उसके बाद बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें।
- इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है, इसीलिए निराहार रहें और केवल जल का सेवन करें।
- पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले दोबारा से स्नान करें।
- शाम के समय प्रदोष काल मे उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं और भगवान शिव को जल से स्न्नान कराकर रोली, मौली, चावल ,धूप, दीप से पूजा करें। भगवान शिव को चावल की खीर और फल अर्पण करें।
- अंत में ऊँ नम: शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें और अपने सभी परेशानियों को दूर करने के लिए भोलेनाथ से प्रार्थना करें।
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