हिन्दू धर्म में किये जाने वाले व्रत-त्योहारों का एक मकसद हमारे जीवन में सुख और शांति प्रदान करना होता है। हालाँकि मौजूदा समय के लिहाज़ से हम सभी के मन में आने वाले कल को लेकर अनेकों प्रश्न हैं जिससे हमारा मन शांत नहीं रह पता है। ऐसे में यदि आप भी किसी प्रश्न का जवाब जानकर अपने जीवन में शांति का अनुभव करना चाहते हैं तो अभी देश के जाने-माने ज्योतिषियों से प्रश्न पूछें।
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श्रावण पुत्रदा एकादशी साल में दो बार मनाई जाती है। पौष शुक्ल पक्ष एकादशी और श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी। इन दोनों ही एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। पुत्रदा एकादशी देशभर में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इस व्रत के बारे में मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान सुख की प्राप्ति और मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
जाने इस वर्ष कब है पुत्रदा एकादशी
हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक ये एकादशी हर साल सावन के महीने के दौरान आती है। इस वर्ष यह एकादशी 30 जुलाई-2020, गुरुवार को मनाई जाएगी।
श्रावण पुत्रदा एकादशी पारणा मुहूर्त :05:42:05 से 08:24:09 तक 31, जुलाई को
अवधि : 2 घंटे 42 मिनट
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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत-पूजन विधि
- इस दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का स्मरण करें।
- फिर नहाकर साफ कपड़े पहने।
- इसके बाद मंदिर में श्री विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करके व्रत का संकल्प ले।
- इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति को स्नान कराएं और नए कपड़े पहनाए।
- भगवान विष्णु को नैवेद्य का भोग लगाएं।
- श्रावण पुत्रदा एकादशी में तुलसी, मौसमी फल, और तिल का प्रयोग अवश्य किया जाता है।
- इसके बाद भगवान विष्णु को धूप, दीप इत्यादि दिखाएं और विधिवत पूजा करें। आरती करें।
- श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत निराहार रहा जाता है। शाम के समय पूजा करके कथा सुनें और उसके बाद ही फलाहार ग्रहण करें। इस दिन रात में भजन कीर्तन जागरण किया जाता है।
- इसके बाद अगले दिन यानी द्वादशी को ब्राह्मणों को खाना खिलाकर और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें दान दें। ब्राह्मणों को घर नहीं बुला सकते हैं तो उनके नाम से भोजन या अन्न पहले ही निकाल के अलग कर लें, और फिर किसी मंदिर में दान कर दें।
- इसके बाद ही खुद भोजन करके व्रत का पारण करें।
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श्रावण पुत्रदा एकादशी महत्व
दक्षिण भारत में श्रावण पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। हिंदू धर्म के मुताबिक इस एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही निसंतान दंपतियों को इस व्रत को करने की सलाह दी जाती है, जिससे उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि अगर कोई भी निसंतान दंपत्ति इस दिन पूरी आस्था और मन से इस दिन व्रत करें भगवान विष्णु की पूजा करें तो उन्हें संतान सुख अवश्य मिलता है। इस व्रत के बारे में यह भी कहा जाता है कि जो कोई भी इंसान पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पड़ता है, सुनता है या औरों को सुनाता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
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श्रावण एकादशी पर इन कामों में बरतें सावधानी
- दशमी को रात में शहद, चना, साग, मसूर की दाल और पान नहीं खाना चाहिए।
- एकादशी के दिन किसी भी तरह का कोई झूठ बोलने या कोई भी बुरा काम करने से बचना चाहिए।
- दशमी के दिन मांस और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
- एकादशी के दिन चावल और बैंगन भी नहीं खाने चाहिए।
- एकादशी और दशमी को किसी से भी मांग कर खाना नहीं खाना चाहिए।
- इस व्रत के दिन जुआ नहीं खेलें।
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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में भद्रावतीपुरी नगर में सुकेतुमान नाम के एक राजा हुआ करते थे। शादी के काफी समय बाद तक उनकी कोई संतान नहीं थी। जिससे राजा और रानी दोनों ही चिंतित थे। राजा को इस बात की चिंता सताए जा रही थी कि उनकी मृत्यु के बाद अब उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा? और उनके पितरों का तर्पण कौन करेगा?
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एक दिन इसी बात से परेशान राजा वन की तरफ चले गए। काफी देर तक घने जंगलों में गुजरते हुए उन्हें प्यास लगने लगी। जल की तलाश में राजा एक तालाब के पास पहुंचे। वहां उनको एक आश्रम दिखाई दिया। उन्होंने जल ग्रहण किया और ऋषि-मुनियों के उस आश्रम में चले गए। वहां ऋषि मुनि वेद पाठ कर रहे थे। वहां पहुंचकर राजा ने सब को प्रणाम किया जिसके बाद राजा ने पूछा यह वेद पाठ क्यों किया जा रहा है?
तब ऋषि-मुनियों ने उन्होंने बताया कि आज एकादशी है और जो भी व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है और सच्चे मन से पूजा करता है उसको संतान सुख अवश्य मिलता है। इस बात को सुनकर राजा ने श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने का प्रण किया। इसके बाद उन्होंने एकादशी व्रत रखा जिसमें भगवान विष्णु के बाल गोपाल स्वरूप की आराधना की और अगले दिन यानि कि द्वादशी को पारण किया। इस व्रत के प्रभाव से कुछ ही समय में राजा और उनकी पत्नी को एक सुंदर संतान की प्राप्ति हुई। इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी व्यक्ति इस व्रत को सच्ची निष्ठा के साथ रखता है उन्हें संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है।
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