जानें शीतला अष्टमी का महत्व, ऐसे करें शीतला माता की पूजा

इस दिन माता रानी को चढ़ाया जाता है बासी भोजन का प्रसाद 

शीतला अष्टमी हिंदू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक त्योहार है। यह होली के आठवें दिन मनाया जाता है। इस साल यानि 2020 में शीतला अष्टमी 16 मार्च 2020 (सोमवार) को है। चैत्र कृष्ण पक्ष की इस अष्टमी को बसौड़ा (Basoda) और शीतलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।

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हालांकि अधिकांश लोग इसे होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं। इस दिन शीतला माता की पूजा होती है और उन्हें बासी खाने का भोग लगाया जाता है। इस दिन सभी लोग बासी खाना खाते हैं। मान्यता है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। शीतला अष्टमी को उत्तर भारत के राज्यों राजस्थान, यूपी और गुजरात में प्रमुखता से मनाया जाता है।

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शीतला अष्टमी शुरूआत 

03:19

(16 मार्च 2020)

शीतला अष्टमी समाप्त

02: 59

(17 मार्च 2020)

शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त : सुबह 06:29 से शाम 06:30

होली के बाद मौसम में बदलाव आने लगता है और शीत ऋतु से ग्रीष्मकाल आने की आहट होने लगती है। शीतला माता के स्वरूप को शीतलता प्रदान करने वाला माना जाता है। शीतला माता देवी का एक रूप हैं। जो गधे पर सवार होकर आती हैं। उनके एक हाथ में झाड़ू होती है और आभूषण के तौर पर वह नीम के पत्ते धारण करती हैं।

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उनके दूसरे हाथ में ठंडे जल का कलश होता है। शीतला माता को साफ-सफाई, स्वच्छता और शीतलता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए शीतलाष्टमी के दिन हमें साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना होता है। इस अष्टमी को अलग-अलग राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में इसे शीतला अष्टमी कहा जाता है।

हालांकि कई जगहों पर इसे बसौड़ा, बसोरा और शीतलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता को खास मीठे चावल का भोग चढ़ाया जाता है। इस चावल को गुड़ या गन्ने के रस में बनाया जाता है। जैसे कि हमने बताया इस दिन ताजा खाना नहीं बनाते इसलिए इस भोग को हम एक रात पहले यानि सप्तमी को ही बनाते हैं। भोग लगाने के बाद इस प्रसाद को घर के सभी सदस्यों को खिलाया जाता है। 

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ऐसे करें शीतला माता की पूजा 

  • इस दिन से सूर्य के एक दम ऊपर आ जाने से गर्मी बढ़ जाती है इसलिए सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से स्नान करें। पानी में गंगाजल अवश्य डालें। 
  • नारंगी रंग के वस्त्र पहनें।
  • पूजा की थाली तैयार करें – थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें। वहीं दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें और साथ में ठंडे पानी का लोटा रखें।
  • नीम के पेड़ में जल चढ़ाएं और घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करें और दीपक को बिना जलाए ही घर के मंदिर में रखें। सभी चीजों का भोग लगाएं।
  • घर में पूजा के बाद दोपहर करीब 12 बजे शीतला माता के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करें। पहले माता को जल चढ़ाएं, रोली और हल्दी का टीका करें, मेहंदी, रोली और वस्त्र अर्पित करें।  बासी खाने का भोग लगाएं और कपूर जलाकर आरती करें और ऊं शीतला मात्रै नम: मंत्र का जाप करें।
  • इसके बाद जहां होलिक दहन हुआ था वहां पूजा करें।
  • अगर पूजन सामग्री बच जाए तो उसे किसी गाय या ब्राह्मण को दे दें। 

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शीतला माता की व्रत कथा

एक गावं में बूढ़ी माता रहती थी। एक दिन पूरे गांव में आग लग गई। इस आग में पूरा गांव जलकर खाक हो गया लेकिन बूढ़ी माता का घर बच गया। यह देखकर सभी दंग रह गए कि पूरे गांव में केवल एक बूढ़ी माता का घर कैसे बच गया। सभी बूढ़ी माता के पास आकर पूछने लगे तो उन्होंने बताया कि वह चैत्र कृष्ण अष्टमी को व्रत रखती थीं। शीतला माता की पूजा करती थीं। बासी ठंडी रोटी खाती थीं। इस दिन चूल्हा भी नहीं जलाती थी। यही वजह है कि शीतला माता की कृपा से उनका घर बच गया और बाकी गांव के सभी घर जलकर खाक हो गए। माता के इस चमत्कार को देख पूरा गांव माता शीतला की पूजा करने लगा और तब से शीतला अष्टमी का व्रत रखने की परंपरा शुरू हो गई।

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