हर एक बीते दिन के साथ शारदीय नवरात्रि जैसे-जैसे अपने समापन के निकट आ रही है वैसे ही वैसे महत्वपूर्ण दोनों की शुरुआत होने लग रही है। दरअसल शारदीय नवरात्रि में यूं तो सभी दिन बेहद ही खास और महत्वपूर्ण माने जाते हैं लेकिन इनमें से सप्तमी, अष्टमी और नवमी का दिन सबसे ज्यादा खास और महत्वपूर्ण होता है।
इस दिन बहुत से लोग कन्या पूजन भी करते हैं। एस्ट्रोसेज के आज के हमारे इस खास ब्लॉग में हम बात करेंगे शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि के बारे में। अष्टमी तिथि को महा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही जानेंगे इस दिन माता के किस स्वरूप की पूजा की जाएगी, इस दिन का शुभ मुहूर्त क्या है, साथ ही हम यहां जानेंगे कि अगर आप अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन कर रहे हैं तो आपको किन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखने की जरूरत पड़ने वाली है। तो चलिए बिना देरी किए शुरू करते हैं शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि से संबंधित हमारा यह खास ब्लॉग।
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शारदीय नवरात्रि अष्टमी तिथि- शुभ मुहूर्त
सबसे पहले बात करें शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि की तो वर्ष 2024 में अष्टमी तिथि नवरात्रि के नौवें दिन पड़ रही है अर्थात 11 अक्टूबर 2024 को दुर्गा अष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन मां महागौरी की पूजा करने का विधान है। बात करें इस दिन के शुभ मुहूर्त और हिंदू पंचांग की तो इस दिन की तिथि अष्टमी रहेगी, पक्ष शुक्ल रहेगा, नक्षत्र उत्तरा आषाढ़ रहेगा, योग सुकर्मा रहेगा, अभिजीत मुहूर्त की बात करें तो अभिजीत मुहूर्त इस दिन 11:44:20 सेकंड से लेकर 12:30:41 सेकंड तक रहने वाला है।
शारदीय नवरात्रि पर माँ महागौरी की पूजा का है विधान
नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर माता के मां महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है। अष्टमी और नवमी तिथि पर बहुत से लोग भगवती की प्रसन्नता हासिल करने के लिए कन्या पूजन करते हैं। मान्यता है कि नवरात्रि में इन दिनों में मां दुर्गा स्वयं पृथ्वी लोक पर आती हैं और भक्तों के दुख दर्द दूर करती हैं। अष्टमी तिथि को नवरात्रि में सबसे महत्वपूर्ण दिन माना गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि कहते हैं कि अष्टमी तिथि पर ही मां दुर्गा असुरों का संघार करने के लिए प्रकट हुई थीं।
अष्टमी के दिन ही देवी दुर्गा ने चंड-मुंड नामक राक्षसों का संघार किया था। यही वजह है कि माना जाता है कि अगर आप पूरे 9 दिनों का नवरात्र या पूजा व्रत नहीं कर पाए हैं तो अगर आप केवल अष्टमी और नवमी तिथि के दिन भी व्रत रख लें तो इससे भी आपको नवरात्रि में नौ दिनों के समान व्रत करने और पूजा करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
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बात करें माता के आठवें स्वरूप मां महागौरी को के बारे में तो, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है माता का वर्ण पूर्ण रूप से गौर अर्थात सफेद है। इन्होंने सफेद रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं। कहते हैं देवी महागौरी की पूजा करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि मां महागौरी का ध्यान, स्मरण पूजा आदि करने से भक्तों के जीवन में सब कुछ कल्याणमय होने लगता है, मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और ऐसे व्यक्ति को अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
जो कोई भी भक्त श्रद्धा भक्ति से मां महागौरी की पूजा करता है उनके सभी पाप नष्ट होते हैं और भविष्य में पाप, संताप, दैनिक दुख उनके पास कभी नहीं भटकते। माँ की कृपा से भक्तों को अलौकिक सिद्धियां की प्राप्ति होती है। यह भक्तों के कष्ट जल्द ही दूर कर देने के लिए जानी जाती हैं। भक्तों के लिए देवी का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का स्वरूप माना गया है। यही वजह है कि बहुत से लोग अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन करवाते हैं। मां महागौरी धन, वैभव और सुख शांति की देवी हैं। ऐसे में धन-धान्य और सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए मां गौरी की उपासना अवश्य की जानी चाहिए।
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माँ महागौरी के नाम का अर्थ और महत्व
देवी दुर्गा की आठवीं शक्ति को मां महागौरी के नाम से जाना जाता है और नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर मां की उपासना की जाती है। इन्हें मां पार्वती, अन्नपूर्णा के रूप में भी पूजा जाता है क्योंकि मां पूर्ण रूप से गौर हैं इसलिए इन्हें महागौरी कहा गया है। मां के गौरता की उपमा शंखचंद्र और कुंद के फूल से की गई है और माना जाता है की मां की आयु केवल 8 वर्षों की है।
मां ने समस्त वस्त्र और आभूषण भी श्वेत ही धारण किए हुए हैं। कहा जाता है कि अपनी कठिन तपस्या में मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था तभी से इन्हें उज्ज्वल स्वरूप महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया।
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शारदीय नवरात्रि अष्टमी तिथि- मंत्र- भोग- प्रिय रंग
अब बात करें शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर पूजा में शामिल किए जाने वाले मंत्र की तो इस दिन की पूजा में मां महागौरी से संबंधित इस मंत्र को अवश्य शामिल करें।
मंत्र: श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा। या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
इसके अलावा बात करें मां के प्रिय भोग की तो देवी भागवत पुराण के अनुसार नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मां महागौरी को नारियल का भोग अवश्य लगाएँ। मां महागौरी को नारियल बेहद ही प्रिय होता है। इसके साथ ही क्योंकि बहुत से लोग इस दिन कन्या पूजन भी करते हैं ऐसे में भोग में काले चने का प्रसाद भी अवश्य शामिल करें।
अब बात करें मां के प्रिय रंग और पुष्प की तो मां को रात रानी का पुष्प बेहद ही प्रिय होता है। इसके अलावा रंगों में श्वेत या हल्के रंग के वस्त्र मां को बेहद ही पसंद होते हैं। ऐसे में नवरात्रि की अष्टमी तिथि की पूजा में श्वेत और हल्के रंग के वस्त्र अवश्य शामिल करें।
इसके अलावा कहा जाता है कि मां महागौरी का संबंध राहु ग्रह से भी है अर्थात राहु ग्रह पर मां का आधिपत्य होता है और यही वजह है कि जिन लोगों की कुंडली में राहु दोष मौजूद होता है उन्हें इस दोष से मुक्ति पाने के लिए मां महागौरी की पूजा करने की सलाह दी जाती है।
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महा-अष्टमी कन्या पूजन महत्व और नियम
जैसा कि हमने पहले भी बताया कि बहुत से लोग महा अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन करते हैं। ऐसे में अगर आप भी इस दिन कन्या पूजन कर रहे हैं या करने का विचार कर रहे हैं तो यहाँ जान लेते हैं इसकी सही विधि और नियम क्या होते हैं।
सबसे पहले विधि की बात करें तो,
- शास्त्रों के मुताबिक नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर भोजन करने से पूर्व एक दिन पहले कन्याओं को उनके घर जाकर सम्मानपूर्वक निमंत्रण दें।
- अगले दिन जब कन्याएं भोजन के लिए आयें तो घर में घुसने से पहले ही उनका पुष्प वर्षा के साथ स्वागत करें और माता के सभी नामों के जयकारे लगाएँ।
- आप कन्याओं को आरामदायक और साफ जगह पर बिठा कर इनके पैर अपने हाथों से धोएँ।
- उनके माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाएँ। फिर मां भगवती का ध्यान करते हुए इन देवी रूपी कन्याओं को भोजन कराएं।
- भोजन के बाद कन्याओं के हाथ और पांव वापस से धोएं। पैर धोकर इनका आशीर्वाद लें और अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें कुछ दक्षिणा और उपहार अवश्य दें।
- इस बात का विशेष रूप से ध्यान दें कि जब भी आप नौ कन्याओं को भोजन करवाएँ तो उनके साथ किसी बालक को बटुक या काल भैरव के स्वरूप में अवश्य आमंत्रित करें और उन्हें भी स-सम्मान भोजन आदि कराएं।
कन्या पूजन के नियम
महाअष्टमी पर अगर आप कन्या पूजन करने जा रहे हैं तो इन नियमों का विशेष रूप से ध्यान रखें। नवरात्रि की सभी तिथियां को एक-एक और अष्टमी और नवमी को नौ कन्याओं की पूजा की जाती है। अलग-अलग वर्षों की कन्याओं का अलग-अलग महत्व होता है। जैसे कि,
- 2 वर्ष की कन्या को कुमारी कहा जाता है और उनकी पूजा करने से दुख और दरिद्रता दूर होती है।
- 3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है इनका पूजन करने से जीवन में धन्य धन्य आता है और परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।
- 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है।
- 5 वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी की पूजा करने से जीवन से रोग और दुख दूर होता है।
- 6 वर्ष की कन्या को कालिका कहा गया है। कालिका रूप की पूजा करने से व्यक्ति को विद्या, विजय और राजयोग की प्राप्ति होती है।
- 7 वर्ष की कन्या को चंडिका कहा गया है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्या की प्राप्ति होती है।
- 8 वर्ष की कन्या शांभवी कहलाती है। इनकी पूजा करने से वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है।
- 9 वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इनका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है और सभी कार्य पूर्ण होते हैं।
- 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है और सुभद्रा की पूजा और भोजन करने से व्यक्ति के सारे मनोरथ पूरे होते हैं।
क्या यह जानते हैं आप? शारदीय नवरात्रि में दुर्गा अष्टमी पर संधि पूजा करना क्यों है जरूरी माना गया है और संधि पूजा क्या होती है?
तो दरअसल दो प्रहर, तिथि, दिन, पक्ष या अयन के मिलन को संधि कहा जाता है। जब सूर्य अस्त हो जाता है तब दिन और रात के बीच के समय को संध्या काल कहते हैं। इस तरह जब एक तिथि समाप्त होकर दूसरी तिथि प्रारंभ हो रही है तो उसके काल को संधि कहते हैं। इसी काल में पूजा करने को संधि पूजा कहा जाता है।
बात करें यह पूजा कब की जाती है तो अष्टमी और नवमी दोनों दिनों तक संधि पूजा चलती है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने की शुरुआती 24 मिनट के समय को संधिकाल कहते हैं। संधि पूजा करने से अष्टमी और नवमी दोनों ही देवियों की एक साथ पूजा की जा सकती है।
माना जाता है कि इसी काल में देवी दुर्गा ने असुर चंड और मुंड का वध किया था और उसके अगले दिन महिषासुर का वध किया था।
संधि काल का समय दुर्गा पूजा के हवन के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं इस काल में अगर हवन किया जाए तो उससे तुरंत ही फल प्राप्त होते हैं। संधि पूजा के समय केला, ककड़ी, कद्दू और अन्य फल और सब्जियों की बलि दी जाती है। संधि काल में 101 दीपक जलाकर मां की वंदना और आराधना करते हैं। ऐसा करने से माँ की प्रसन्नता हासिल होती है और मनोवांछित कामना पूर्ण होती है साथ ही जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है।
शारदीय नवरात्रि अष्टमी तिथि के सटीक उपाय दिलाएँगे जीवन में सफलता
अब बात करें शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर किए जाने वाले उपायों की तो,
- इस दिन आप अगर कन्या पूजन कर रहे हैं तो घर आई कन्याओं को भोजन करने के पश्चात लाल चुनरी अवश्य भेंट करें।
- इस दिन मां दुर्गा को लौंग और लाल फूल अर्पित करें। इससे जीवन के कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- अगर आपके घर में नकारात्मक बढ़ गई है तो कपूर से मां महागौरी की पूजा करें।
- जीवन में धन्य धान्य और बरकत के लिए गुलाब के फूल में कपूर जलाकर मां दुर्गा को अर्पित करें।
- घर में सुख शांति का वास हो इसके लिए नवरात्रि की अष्टमी तिथि के दिन तुलसी के पौधे के पास 9 दीपक जलाएं और फिर उस पौधे की परिक्रमा करें।
- दुर्गा मंदिर में जाकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। इससे आपके जीवन में सुख समृद्धि और यश की प्राप्ति होगी।
- अष्टमी तिथि के दिन योग और ध्यान करने से परम सुख की प्राप्ति होती है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
वर्ष 2024 में 11 अक्टूबर 2014 को अष्टमी तिथि पड़ रही है
माना जाता है कि इसी काल में देवी दुर्गा ने असुर चंड और मुंड का वध किया था और उसके अगले दिन महिषासुर का वध किया था। संधि काल का समय दुर्गा पूजा के हवन के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं इस काल में अगर हवन किया जाए तो उससे तुरंत ही फल प्राप्त होते हैं।
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा का विधान बताया गया है।
मां महागौरी को नारियल का भोग बेहद ही प्रिय होता है। इसके साथ ही इस दिन की पूजा में काले चने का भोग भी अवश्य चढ़ाना चाहिए।