सनातन धर्म में सभी त्योहारों का विशेष स्थान है और ऐसे ही हिन्दू धर्म में मनाये जाने वाला एक खास पर्व है नवरात्रि का। नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा के नौ स्वरूप क्रमश: माँ शैलपुत्री, माँ ब्रह्मचारिणी, माँ चंद्रघंटा, माँ कुष्मांडा, माँ स्कंदमाता, माँ कात्यायनी, माँ कालरात्रि, माँ महागौरी और माँ सिद्धिदात्री की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है।
नवरात्रि की शुरुआत के साथ नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है। घटस्थापना को बहुत सी जगह पर कलश स्थापना भी कहा जाता है। नवरात्रि में घट स्थापना का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यतों के अनुसार इस अनुष्ठान के साथ ही नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि यानी कि पहले दिन शुभ मुहूर्त में पूरे विधि विधान के साथ घट स्थापना की जाती है।
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सनातन धर्म में किसी भी पूजा या मांगलिक कार्य की शुरुआत करने से पहले प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की पूजा करने का विधान बताया गया है। हिंदू धर्म में कलश को भगवान गणेश की संज्ञा दी गई है और इसीलिए नवरात्रों के पहले दिन घट स्थापना किए जाने का विधान बताया गया है। आइए, अब आगे बढ़ते हैं और जानते हैं घटस्थापना से जुड़े कुछ विशेष नियम, इसके लिए आवश्यक सामग्री, घट स्थापना की विधि और इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें।
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नवरात्रि घटस्थापना महत्व और मुहूर्त
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ 26 सितंबर से हो रहा है। जैसा कि हमने पहले भी बताया कि 9 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का शुभारंभ कलश स्थापना से किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, माँ की पूजा में कलश को भगवान विष्णु का प्रतिरूप माना जाता है और यही वजह है कि सबसे पहले कलश का ही पूजन किया जाता है।
यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि, कलश स्थापना से पहले पूजा वाली जगह को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है, फिर सभी देवी देवताओं को पूजा के लिए आमंत्रित किया जाता है, कलश में हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, मुद्रा, रखी जाती है और उसके बाद इसे पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है।
कलश के नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और इस पर जौ बोये जाते हैं, अन्नपूर्णा देवी का पूजन किया जाता है, इसके बाद पूजा वाली जगह पर रोली, चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, वस्त्र, आभूषण, सुहाग की सामग्री, आदि अर्पित की जाती है। इसके बाद रोज सुबह माता को अलग-अलग तरह के भोग, फल-फूल आदि अर्पित किए जाते हैं। यह जानने वाली बात यह भी है कि नवरात्रि की पूजा दिन में दो बार की जाती है।
कलश स्थापना 2022 शुभ मुहूर्त
घटस्थापना मुहूर्त : 06:11:08 से 07:51:10 तक
अवधि : 1 घंटे 40 मिनट
अधिक जानकारी: ऊपर दिया गया मुहूर्त नई दिल्ली के लिए मान्य है। यदि आप अपने शहर के अनुसार इस वर्ष कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त जानना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
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कलश स्थापना के नियम
- कलश स्थापना दिन के एक तिहाई हिस्से से पहले संपन्न कर लेना उत्तम माना गया है।
- कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त को सबसे शुभ और उत्तम माना गया है।
- नक्षत्रों की बात करें तो घट स्थापना के लिए पुष्य नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, रेवती नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, अश्विनी नक्षत्र, मूल नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, धनिष्ठा नक्षत्र, और पुनर्वसु नक्षत्र, को सबसे उत्तम माना गया है। ऐसे में इन नक्षत्रों के दौरान ही घटस्थापना करें।
घटस्थापना के लिए महत्वपूर्ण सामग्री
कलश स्थापना करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कलश कभी भी खाली ना हो। कलश को हमेशा जल से भरकर ही रखें। अब आप जानना चाहेंगे कि आखिर ऐसा क्यूं? आखिर कलश को बिना जल के क्यों नहीं रखा जाता है?
शास्त्रों में लिखा गया है कि कलश को कभी भी बिना जल के स्थापित नहीं किया जाना चाहिए। कलश स्थापित करते हुए नीचे दिए गयी सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में और घर में सुख-समृद्धि एवं सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
- सात तरह के अनाज
- मिट्टी का एक चौड़े मुंह वाला बर्तन
- पवित्र जगह से लायी गयी मिट्टी
- एक कलश
- थोड़ा सा गंगाजल या सादा जल
- आम, अशोक या पान के पत्ते
- सुपारी
- सूत
- मौली
- एक नारियल, संभवतः जटा वाला
- अक्षत
- केसर
- कुमकुम
- लाल रंग का साफ़ कपड़े का टुकड़ा
- साफ़ और ताज़े फ़ूल
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नवरात्रि पहला दिन: माँ शैलपुत्री को है समर्पित!
नवरात्रि का पहला दिन घट स्थापना के साथ साथ माँ शैलपुत्री को समर्पित होता है। माँ शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जाना जाता है। देवी को गाय का घी और गाय के घी से ही बनी वस्तुओं का भोग लगाना शुभ माना गया है।
माँ शैलपुत्री पूजा महत्व
मान्यता है कि, नवरात्रि के पहले दिन विधिवत रूप से माँ शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में तमाम सुख आने लगते हैं, मनोकामनाएं पूरी होती हैं, विवाह में आने वाली हर प्रकार की बाधा दूर होती है, वैवाहिक जीवन में सुख आता है।
माँ शैलपुत्री भोग
नवरात्रि में पहले दिन दिन की पूजा माँ शैलपुत्री को समर्पित होती है। ऐसे में यदि आप इस दिन माता को गाय का शुद्ध साफ़ घी भोग के रूप में चढ़ाते हैं तो इससे माता प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आरोग्य और संपन्न जीवन का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
देवी शैलपुत्री की उपासना मंत्र इस प्रकार है
वन्दे वान्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
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