शनि देवता को तीनों लोकों का न्यायाधीश कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान शनि सभी को उसके कर्म के अनुसार फल देते हैं। यही वजह है कि उन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। हालांकि ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर ग्रह कहा गया है और आम लोगों के बीच यह भी मान्यता है कि शनि के प्रभाव से बुरे फल की प्राप्ति होती है लेकिन यह शत प्रतिशत सही नहीं है।
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शनि देवता तभी बुरे फल देते हैं जब वे जातक की कुंडली में गलत स्थान पर बैठे हों या फिर कहें कि कमजोर स्थिति में हो। लेकिन यदि शनि देवता किसी जातक की कुंडली में मजबूत स्थिति में हों तो वे उस जातक को शुभ फल भी देते हैं। शनि के इन्हीं गुणों की वजह से शनि को ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष ग्रह के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में आज हम आपको शनि साढ़े साती से जुड़ी कुछ विशेष जानकारी देंगे और साथ ही आपको यह भी बताएँगे कि कैसे आप कुछ लक्षणों को पहचान कर शनि साढ़े साती के शुरुआत का पता लगा सकते हैं और कुछ उपायों को अपनाकर इसे शांत कर सकते हैं।
शनि साढ़े साती
शनि देवता सभी ग्रहों में सबसे धीमी रफ्तार से चलते हैं। यही वजह है कि शनि का गोचर एक राशि से दूसरी राशि में सामान्यतः लगभग ढाई साल में एक बार होता है। शनि साढ़े साती किसी जातक की कुंडली में शनि ग्रह की दशा होती है जो लगभग 7 साल और 6 महीने लंबी होती है। शनि की धीमी चाल की वजह से ही शनि का प्रभाव भी जातकों पर धीमे-धीमे पड़ता है और अमूमन इसके तीन भाग होते हैं जिनसे आप इसके शुरुआत का अंदाजा लगा सकते हैं।
शनि साढ़े साती के लक्षण
शनि देवता अपनी शुरुआती स्थिति यानी कि शनि साढ़े साती के पहले हिस्से में मानसिक तनाव देते हैं। इस दौरान आपको सिर में दर्द महसूस होता रहता है। बेवजह भी एक प्रकार की चिंता बनी रहती है जिसकी वजह से स्वभाव में चिड़चिड़ापैन आ जाता है। वहीं शनि साढ़े साती के दूसरे भाग में शनि देवता आर्थिक और शारीरिक कष्ट देते हैं। इस दौरान अचानक आपको महसूस होने लगेगा कि आपके बने हुए काम बिगड़ने लगे हैं। पैसों के खर्च अप्रत्याशित रूप से बढ़ते हुए दिखाई देने लगेंगे। शारीरिक रोग जैसे कि चर्म रोग और कुछ बड़ी बीमारियों से पाला पड़ सकता है या फिर किसी प्रकार की दुर्घटना से दो-चार हो सकते हैं। इसके अलावा शनि की साढ़े साती के तीसरे भाग यानी कि अंतिम हिस्से में शनि देवता आपको हुए नुकसान की भरपाई करते हैं। शनि की साढ़े साती का अंतिम हिस्सा जातकों के लिए अच्छा माना जाता है।
इसके अलावा अगर आप ऐसा महसूस करते हैं कि शनिवार का दिन आपका अच्छा नहीं बीत रहा है तो यह भी शनि साढ़े साती के लक्षण हो सकते हैं। तो ऐसे में सवाल उठता है कि शनि साढ़े साती के बुरे प्रभावों से बचने के लिए कोई उपाय हैं? जी हाँ! बिलकुल हैं। आइये जानते हैं।
शनि शांति के उपाय
- सनातन धर्म में दान-दक्षिणा को पुण्य कर्म माना गया है और भगवान शनि तो कर्म के अनुसार ही फल देते हैं। ऐसे में शनिवार के दिन दान-दक्षिणा करने से शनि देवता शांत होते हैं। आप शनिवार के दिन लोहा, काले उड़द की दाल, काला तिल या काला वस्त्र दान कर सकते हैं। इससे भगवान शनि अति प्रसन्न होंगे।
- शनिवार का दिन शनि देवता का दिन माना जाता है। ऐसे में आप शनिवार के दिन अच्छे से नहा-सुना कर साफ वस्त्र धारण करें और पीपल के पेड़ के नीचे एक दीपक जलाएं। साथ ही इस दिन शनि स्त्रोत का पाठ करने से भी शनि देवता बेहद प्रसन्न होते हैं।
- शनिवार के दिन भगवान शनि को किसी मंदिर में जाकर सरसों के तेल में काला तिल मिलाकर अर्पित करें। शनि देवता बेहद प्रसन्न होंगे।
- शनिवार के दिन आप शनि चालीसा या फिर हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करें। शनि साढ़े साती के प्रभाव को कम करने में भगवान हनुमान जी की पूजा अत्यंत कारगर मानी जाती है।
- शनिवार के दिन रामायण के उत्तरकाण्ड का पाठ करें। इससे न सिर्फ शनि देवता शांत होते हैं बल्कि राहु और केतु जैसे क्रूर ग्रहों के प्रभाव खत्म हो जाते हैं।
- शनिवार के दिन काला वस्त्र धारण करने से भी शनि देवता बहुत प्रसन्न होते हैं। शनिवार के दिन किसी काले कुत्ते को या फिर कौवे को रोटी खिलाएं। स्शनी के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलेगी।
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