कर्म फल दाता शनि को हमेशा से ही क्रूर देव माना जाता है, जिनकी उपासना करने एवं उनका आशीर्वाद पाने के लिए विशेषतौर पर शनिवार व्रत का पालन किया जाता है। कथा के अनुसार शनि देव को भगवान सूर्य देव और माता छाया का पुत्र माना गया है। परंतु अपने पिता से बैर होने के कारण सूर्य एवं शनि के बीच सदैव शत्रु का भाव रहता है। इसके पीछे की पौराणिक मान्यता के अनुसार सूर्य ने शनि के श्याम वर्ण के कारण उन्हें अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया था, जिसके बाद से ही शनि पिता होने के बाद भी सूर्य देव से शत्रुता का भाव रखते हैं।
शास्त्रों में शनि देव को तीनों लोकों का न्यायाधीश भी कहा गया है। यह लोगों को उनके कर्मों के आधार पर फल देतें है। वैदिक ज्योतिष में शनि आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक आदि का कारक है।
शनिवार व्रत का महत्व
शनि ग्रह प्रकृति में संतुलन को बनाए रखता है, इसलिए जो कोई बुरे या पाप कर्म करता है। वे उसे दंडित करते हैं। इसलिए शनि के दंड से बचने के लिए शनिवार व्रत का पालन किया जाता है। शनिवार व्रत करने से व्यक्ति को शनि दोष से मुक्ति मिलती है। क्योंकि शनि दोष के कारण व्यक्ति को जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जैसे व्यक्ति दुर्घटना, कैंसर, अस्थमा, चर्म रोग आदि समस्याओं की समस्याओं से जूझता है। ज्योतिषीय दृष्टि कोण यह कहता है कि शनि व्रत को करने से व्यक्ति अपनी कुंडली में पीड़ित या कमज़ोर शनि ग्रह को मजबूत कर सकता है। जिस व्यक्ति पर शनि देव की कृपा होती है वह व्यक्ति अपनी मेहनत के बलबूते सफलता की हर एक मंज़िल पर पहुँच सकता है।
शनिवार व्रत की विधि
- शनिवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें,
- स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें,
- पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करें,
- प्रातः लोहे से निर्मित शनि देव की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराए,
- इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें,
- धूप, अगरबत्ती, काले तिल, तेल एवं काले वस्त्र के साथ शनि महाराज की पूजा करें,
- पूजा के दौरान शनि के दस नामों (कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर) का स्मरण करें,
- पूजा के बाद पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें,
- इसके बाद शनि मंत्र को पढ़ते हुए कामना करें:
शनि का वैदिक मंत्र
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।
शनि का तांत्रिक मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।।
शनि का बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
शनिवार व्रत की पूजा सामग्री
- धूप
- अगरबत्ती
- सरसों का तेल
- सूती धागा
- स्वच्छ जल
- पंचामृत
- चावल
- फल
- कलश
- लोहे से निर्मित शनि देव की प्रतिमा
- पूजा की थाल
- काले तिल
- पुष्प
- काला कपड़ा
शनिवार व्रत का उद्यापन
शनिवार व्रत का उद्यापन शनिवार के दिन ही करना चाहिए। उद्यापन के लिए व्रत सामग्री आवश्यक है। व्रत का उद्यापन विधि अनुसार करने के पश्चात ही व्यक्ति को उसका वास्तविक फल मिलता है। इसलिए इस पवित्र कार्य को आपको किसी अच्छे और योग्य पंडित के द्वारा ही करना चाहिए। उद्यापन में दान-दक्षिणा का भी विधान है।
उद्यापन विधि
- उद्यापन के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा हेतु ब्राह्मण द्वारा चार द्वारो का मंडप तैयार करें।
- इसके बाद वेदी बनाकर देवताओं का आह्नान करें और कलश की स्थापना करें।
- गंध, पुष्प, धूप, नैवेद्य, फल, दक्षिणा, फूल, आदि देवताओं को अर्पित करें।
- इसके बाद आप शनि देव की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराए और हवन आरम्भ करें।
- हवन की समाप्ति पर यथाशक्ति दक्षिणा अथवा शनि से संबंधित वस्तुएँ दान करें।
- तत्पश्चात ब्राह्मण को भोजन करा कर विदा करें और स्वयं भोजन करें।