हिन्दू कैलेण्डर में हर महीने दो बार संकष्टी चतुर्थी पड़ती है, जिसमें से जहाँ अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है तो वहीं पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार भाद्रपद माह की चतुर्थी तिथि मतलब संकष्टी चतुर्थी आज यानी सोमवार 19अगस्त को है। इन दिन भगवान गणपति जी का व्रत करने और विधि-विधान से पूजन करने पर सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और साथ ही साथ व्यक्ति को उसके सारे कष्टों से भी निजात मिल पाती है। आइये जानते हैं इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा।
संकष्टी चतुर्थी का पौराणिक एवं धार्मिक महत्व
संकष्टी चतुर्थी को लेकर हिन्दू धर्म में एक सबसे प्रचलित कथा सुनने को मिलती है। जिसके अनुसार एक दिन स्नान करने के लिए भगवान शंकर कैलाश पर्वत से भोगावती नामक जगह पर गए। भगवान शिव के कैलाश पर्वत से जाने के बाद मां पार्वती ने अपने घर में स्नान किया, जिस दौरान उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक बेहद सुंदर पुतले का निर्माण किया। उस पुतले में मां पार्वती ने जान फूंकी और उसका नाम गणेश रखा। इसके बाद मां पार्वती ने गणेश को आदेश देकर उसे द्वार पर ही पहरा देने के लिए कहा। जिसके लिए पार्वती जी ने भगवान गणेश से कहा कि “पुत्र जब तक मैं स्नान करके बाहर ना आ जाऊँ किसी को भी भीतर मत आने देना।”
इसी दौरान भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव वापस कैलाश आए तो वे घर के अंदर जाने लगे, लेकिन इस दौरान ही माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए और उन्हें न पहचानते हुए बाल गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। बाल गणेश द्वारा रोके जाने पर भगवान शिवजी ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर उन्होंने बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर चले गए। शिवजी जब अंदर पहुंचे तो वो बेहद क्रोधित थे, जिसे देखकर मां पार्वती जी ने सोचा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव शायद क्रोधित हैं। इसलिए उन्होंने तुरंत 2 थालियों में भोजन परोसकर भगवान शिवजी को बुलाया और भोजन करने का आग्रह किया।
भोजन करने के लिए भगवान शिव जैसे ही बैठे तो उन्होंने अपने समक्ष दो थाली देखकर मां पार्वती से पूछा, ‘यह दूसरी थाली किसके लिए लगाई है?’ इसका उत्तर देते हुए मां पार्वती ने कहा कि, ये दूसरी थाली मेरे पुत्र गणेश के लिए है, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनते ही भगवान शिव आश्चर्यचकित रह गए और उन्होने पार्वती जी को बताया कि, ‘जो बालक बाहर पहरा दे रहा था, मैने भूल वश क्रोध में आकर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है।’
यह सुनकर मां पार्वती बहुत दुखी हुईं और विलाप से रोने लगीं। उन्होंने भगवान शिव से अपने पुत्र को दोबारा जीवित करने का आग्रह किया। तब मां पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उसे मृतक बाल गणेश के धड़ से जोड़ दिया, जिससे बालक पुनः जीवित हो गया, इसी कारण भगवान गणेश का एक अन्य नाम ‘गजानन यानी हाथी मुख वाला’ भी है। पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर मां पार्वती बहुत प्रसन्न हुईं। माना जाता है कि जिस दिन ये घटना हुई उस समय चतुर्थी तिथि थी और चूँकि इस दिन ही भगवान गणेश का पुनः जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को उनके जन्मदिवस में रूप अर्थात संकष्टी चतुर्थी के नाम से मनाया जाने लगा। यही कारण है कि इस दिन का हिन्दू धर्म में अपना एक अलग ही महत्व होता है जिसे भारत के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न नामों के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।