हिन्दू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि पर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने और व्रत रखने से भक्तों पर भगवान गणेश की विशेष कृपा बनती है।
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि पर विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा की जाती है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2021, 2 मार्च को मंगलवार के दिन है। हिन्दू धर्म में फाल्गुन माह की चतुर्थी तिथि को बेहद शुभ माना जाता है, इस दिन भगवान गणेश के 32 रुपों में से उनके छठे स्वरूप की पूजा की जाती है।ऐसी मान्यता है, कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने और व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियों का अंत हो जाता है। विघ्नगर्ता गणेश की भक्त पर विशेष कृपा होती है,उसे सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पर राशि अनुसार करें गणपति की पूजा !
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजा मुहूर्त
संकष्टी चतुर्थी 2021: 2 मार्च, मंगलवार
चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 2 मार्च, सुबह 05:46 से
चतुर्थी तिथि समाप्त- 3 मार्च, सुबह 02:59 तक
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर पूजा कैसे करें
हिन्दू धर्म में द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी तिथि को बेहद खास माना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की उपासना कर उपवास रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं तो व्यक्ति के जीवन में सभी परेशानियों का अंत हो जाता है और विघ्नहर्ता उसके सभी दुख हर लेते हैं। तो आइए जानते है भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए कैसे करें पूजा
- प्रात: काल उठकर स्नान करें, साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
- घर में मंदिर की साफ-सफाई करें।
- भगवान गणेश को उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके जल अर्पित करें।
- जल अर्पित करने से पहले उसमें तिल अवश्य डाल लें ।
- दिनभर उपवास रखें।
- शाम को विधि-विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा करें ।
- भगवान गणेश की आरती उतारें, भोग में लड्डू चढ़ाएं।
- रात में चांद देखकर अर्घ्य दें।
- लड्डू या तिल खाकर व्रत खोलें।
- तिल का दान करें।
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत की रोचक
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, एक शहर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। एक दिन साहूकार की पत्नी अपने पड़ोसन के घर गई, जहां वह संकष्टी चतुर्थी की पूजा कर कथा कह रही थी।साहूकार की पत्नी ने कथा सुनने के बाद घर आकर अगले चतुर्थी पर पूरी विधि-विधान के साथ पूजा कर उपवास रखा। भगवान गणेश के आशीर्वाद से साहूकार दंपत्ति को पुत्र की प्राप्ति हुए।
साहूकार का बेटा बड़ा हो गया, तो साहूकारनी ने भगवान गणेश के फिर कामना की, कि उसके पुत्र का विवाह तय हो जाए, तो वह व्रत रखेगी, और प्रसाद चढ़ाएगी, परंतु बेटे का विवाह तय होने के बाद साहूकारनी प्रसाद चढ़ाना और व्रत करना भूल गई।
जिससे भगवान गणेश ने नाराज़ होकर साहूकार के बेटे को शादी के दिन बंधक बनाकर एक पीपल के वृक्ष से बांध दिया। कुछ समय के बाद पीपल के पेड़ के पास से एक अविवाहित कन्या गुजर रही थी, तभी उसने साहूकार के बेटे की आवाज़ सुनी और अपनी मां को बताया। यह सारी बात जानने के बाद साहूकार की पत्नी ने भगवान गणेश से क्षमा मांगी, प्रसाद चढ़ाकर उपवास रखा, और बेटे के वापस मिलने की कामना करने लगी। भगवान गणेश ने साहूकार के बेटे को वापस लौटा दिया, और बड़े धूम-धाम से साहूकार ने अपने बेटे का विवाह किया। तभी से पूरे नगर में सभी लोग चतुर्थी व्रत कर भगवान गणेश की उपासना करने लगे।
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