विवाह पंचमी के दिन का पुराणों में ख़ास महत्व बताया गया है। देश के कई हिस्सों में इस दिन धूमधाम से भगवान श्री-राम की बारात निकाली जाती है, माता सीता को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और फिर दोनों का स्वयंवर कराया जाता है। इस बार 1 दिसंबर को विवाह पंचमी का त्यौहार मनाया जायेगा, लेकिन क्या आप इस त्यौहार के बारे में ये जानते हैं कि आज के दिन रामचरित मानस का अधूरा पाठ किया जाता है। आज के दिन इस अधूरे पाठ की ही मान्यता होती है। आइये हम आपको बताते हैं दरअसल ऐसा क्यों किया जाता है।
इस वजह के चलते किया जाता है रामचरित-मानस का अधूरा पाठ:
विवाह पंचमी के दिन कई जगहों पर रामचरित मानस का पाठ भी करवाया जाता है, लेकिन ये पाठ राम-जानकी विवाह प्रसंग तक ही सुना और कराया जाता है। लोगों के बीच ये मान्यता है कि इसके आगे माता सीता को दुखों का सामना करना पड़ा था, इसीलिए विवाह पंचमी के दिन राम-जानकी विवाह जैसे शुभ प्रसंग के साथ ही पाठ का समापन कर देना चाहिए।
क्यों मनाई जाती है विवाह पंचमी?
मान्यता है कि विवाह पंचमी वाले दिन पूरे विधि-विधान से भगवान राम और माता सीता का विवाह पूरा कराने से शादी में आ रही अड़चनें दूर हो जाती हैं. विवाह पंचमी वाले दिन भगवान राम और माता सीता के सामने बालकाण्ड में विवाह प्रसंग का पाठ करें, और इस मंत्र का जाप करें। ‘ॐ जानकीवल्लभाय नमः’. कहा जाता है कि इस दिन सभी को भगवान राम- और माता सीता की आराधना करनी चाहिए। आराधना करते हुए आप अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद मांग सकते हैं। भगवान ये आशीर्वाद अवश्य पूरा करते हैं।
विवाह पंचमी मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. बताया जाता है कि इस दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था. यही वजह है कि इस दिन को विवाह पंचमी के रूप में जाना जाता है. इस दिन मंदिरों में भगवान राम-माता सीता का विवाह किया जाता है. विवाह के अगले दिन श्रीराम कलेवा होता है, परंपरा के मुताबिक, विवाह के अन्य शगुन भी पूरी परंपरा के साथ पूरे किये जाते हैं।
इस दिन लोग नहीं कराते हैं अपनी बेटियों का विवाह
यहाँ आपको ये बात जानकर ताज्जुब होगा कि जिस दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था उस दिन कई लोग अपनी बेटियों का विवाह कराने से बचते हैं। यूँ तो भृगु संहिता में इस दिन को कन्या विवाह के लिए बहुत ही अच्छे मुहूर्त के रुप में बताया गया है लेकिन इसके बावजूद आज भी कुछ जगहों के लोग (खासकर मिथिलावासी और नेपाल के लोग) इस दिन अपनी बेटियों की शादी कराना पसंद नहीं करते। इसके पीछे उनकी धारणा यह है कि इस दिन विवाह होने के कारण ही माता सीता और भगवान राम को कभी भी पूर्ण वैवाहिक जीवन का सुख नहीं मिल पाया था। शादी होने के बाद भी माता सीता को वन-वास जाना पड़ा था। वन-वास से लौटकर भी जब भगवान राम अयोध्या के राजा बने तब एक बार फिर राज-धर्म निभाने के लिए भगवान राम को माता सीता से अलग होना पड़ा था। इसी वजह से इस दिन लोग अपनी बेटियों का विवाह नहीं कराते हैं.
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