रविदास जयंती 2021 :(Ravidas jayanti :2021) भारत की धरती पर कई महान गुरुओं ने अवतार लिया, और उन गुरुओं का योगदान आज भी भुलाया नहीं जा सकता है। इन सभी महान गुरु में से एक थे गुरु रविदास, जिनके वचनों ने दुनियाभर में अपना परचम लहराया। गुरु रविदास की वाणी इतनी महान थी, उसमें इतनी ताकत थी, की लोग उन्हें सुनने के लिए अलग-अलग जगहों से आते थे।
गुरु रविदास के भक्तिमय वचनों और दोहों ने देश में भक्ति की एक अलौकिक ज्योति जला दी। पुराने इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें, तो गुरु रविदास का जन्म लगभग 1377 सी.ई. में वाराणसी के छोटे से मंडुआडीह नाम के गांव में हुआ था। गुरु रविदास की मां का नाम कलसा देवी था, और उनके पिता का नाम श्री संतोख दास था। यदि हिन्दू पंचांग के आधार पर देखे तो गुरु रविदास के जन्म की तिथि माघ पूर्णिमा के दिन पड़ती है, इसलिए माघ पूर्णिमा के दिन ही गुरु रविदास की जयंती को बड़े भक्ति भाव और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
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साल 2021 में गुरु रविदास की 644 वीं वर्षगांठ है। सभी धर्म के लोग संत गुरु रविदास की जयंती को बड़े उत्साह के साथ मनाते है, क्योंकि गुरु रविदास बिना किसी भेदभाव के लोगों को सदैव आपस में प्रेम करने की शिक्षा देते थे।
रविदास जयंती मुहूर्त : Ravidas jayanti 2021
रविदास जयंती- 27 फरवरी, शनिवार
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 26 फरवरी, दोपहर 03:49 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 27 फरवरी, दोपहर 01:46 तक
गुरु रविदास जयंती के दिन करते है गंगा स्नान
दुनियाभर के संत -महात्माओं में संत रविदास को विशेष दर्जा प्राप्त है। संत रविदास के भक्त रैदासी कहलाते है। रविदास जयंती के दिन रैदासी पवित्र नदी या पवित्र कुंड में सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करते हैं और उसके बाद अपने गुरु संत रविदास के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंग को और उनके जीवन की सभी महान घटनाओं को याद कर अपने जीवन में उनसे प्रेरणा लेते हैं।
संत रविदास ने ऐसे कई गुरु मंत्र दिए है, जिनको अपने जीवन में उतारने से व्यक्ति सदैव सुखी रहता है। रविदास जयंती के दिन रैदासी बड़े हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाते है। रैदासी बड़ी संख्या में संत रविदास की जन्म भूमि पर पहुंच कर बड़ा आयोजन करते हैं। संत रविदास के दोहे को गाते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं।
रविदास संत कैसे बने
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, रविदास जी अपने साथियों के साथ खेल रहे थे। एक दिन रविदास जी अपने साथी के साथ खेले लेकिन अगले दिन उनका साथी उनके साथ खेलने नहीं आया, जिस पर वह स्वयं अपने साथी को खोजने निकल पड़े। थोड़ा दूर खोजने के बाद उन्हें मालूम चला की उनके साथी की मृत्यु हो गई है।
यह सुनते ही रविदास को बहुत दुख हुआ, और वह अपने साथी के मृत शरीर के पास पहुंचे और उससे बोलने लगे, की उठो मित्र यह सोने का वक्त नहीं है, इतना सुनते ही उनका साथी खड़ा हो गया। ऐसा देख सभी आश्चर्यचकित रह गए। दरअसल रविदास को जन्म के वक्त से ही अलौकिक शक्तियां प्राप्त थी, और समय के साथ-साथ रविदास जी अपनी शक्तियां भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में लगाते गए।
इस तरह रविदास लोगों को सत्य के पथ पर चलना सिखाते हुए सबका भला करते रहे और संत रविदास बन गए ।