हिन्दू धर्म में रमा एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। हर साल कुल 24 एकादशियाँ होती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को “रमा एकादशी” या “रम्भा एकादशी” या “कार्तिक कृष्ण एकादशी” कहते हैं। इस एकादशी के दिन महालक्ष्मी के रमा स्वरूप के साथ-साथ भगवान विष्णु के पूर्णावतार केशव स्वरुप कि पूजा की जाती है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों की एकादशियाँ एक समान फल देती हैं। आने वाली 24 अक्टूबर को “रमा एकादशी” का व्रत रखा जायेगा। यह एक ऐसा व्रत माना जाता है, जिसे रखने और इसकी कथा सुनने मात्र से ही व्यक्ति के सारे पाप मिट जाते हैं और जीवन में सभी ऐश्वर्य और सुख की प्राप्ति होती है। तो चलिए जानते हैं, रमा एकादशी से जुड़ी कथा-
रमा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का एक राजा हुआ करता था। इंद्र, यम, कुबेर, वरुण और विभीषण से उनकी मित्रता थी। उस राजा की एक कन्या थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। मुचुकुंद की कन्या का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था, जो कि शरीर से बेहद दुर्बल था। एक बार शोभन अपने ससुराल आया। उन्हीं दिनों पुण्यदायिनी एकादशी जिसे रमा एकादशी भी कहते हैं, आने वाली थी। जब व्रत का दिन नज़दीक आया तो चंद्रभागा के पिता ने दशमी को ढोल बजवाकर सारे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि एकादशी के दिन राज्य का कोई भी व्यक्ति अन्न ग्रहण नहीं करेगा। घोषणा सुनकर शोभन को अत्यंत चिंता हुई कि वो तो भूख बर्दाश्त नहीं कर पायेगा। उसने अपनी पत्नी से आग्रह किया वो उसे कुछ उपाय बतलाये।
एकादशी व्रत के दौरान हुआ शोभन को कष्ट
चंद्रभागा ने शोभन को यह सलाह दी कि यदि आप भोजन करना चाहते हैं, तो किसी दूसरे राज्य चले जाना क्योंकि यदि आप यहाँ रहेंगे तो अवश्य व्रत करना पड़ेगा। ऐसा सुनकर शोभन ने यह निर्णय लिया कि वह व्रत अवश्य करेगा, बाकि जो भाग्य में होगा, वह देखा जाएगा। शोभन ने एकादशी के दिन व्रत प्रारम्भ किया, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतने लगा वह भूख और प्यास से पीडि़त होने लगा। जैसे-तैसे उसने रात निकाली और व्रत पूरा तो कर लिया पर प्रात:काल होते ही शोभन के प्राण निकल गए। पूरे विधि-विधान से उसका दाह संस्कार करवाया गया। पति की मृत्यु के पश्चात् चंद्रभागा अपने पिता के घर में ही रहने लगी।
दूसरे जन्म में देवपुर का राजा बना शोभन
दूसरी तरफ रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन पुनः जन्म लेकर देवपुर का राजा बनता है। एक दिन मुचुकुंद नगर में रहने वाले एक ब्राह्मण, जिसका नाम सोम शर्मा था, वो तीर्थयात्रा करता हुआ देवपुर की तरफ से गुज़रा। शोभन को देख वह ब्राह्मण उसे पहचान गया और उसके पास जा कर पूछा कि ऐसा सुंदर नगर उसे कैसे प्राप्त हुआ! तब शोभन ने उसे बताया कि यह सब धन-ऐश्वर्य उसे कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मिला है, लेकिन यह सारे सुख अस्थिर हैं। उसने ब्राह्मण से कोई उपाय पूछा, जिससे यह सब स्थिर हो जाए। शोभन की पूरी बात सुनने के बाद ब्राह्मण सोम शर्मा वहां से चला जाता है, और अपने नगर लौटकर चंद्रभागा को सारी बात बताता है। ब्राह्मण के द्वारा अपने पति के बारे में सुन चन्द्रप्रभा बहुत प्रसन्न होती है, और उससे कहती है कि मुझे मेरे पति के पास ले चलो। मैं अपने पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूँगी। ब्राह्मण चंद्रभागा को मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम लेकर जाता है, जहाँ वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा दिव्य हो गयी।
चंद्र भागा के पुण्य से स्थिर हुआ देवपुर का ऐश्वर्य
उसके बाद चंद्रभागा अपने पति के पास पहुँचती है, और उससे कहती है कि अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी, तब से विधि पूर्वक एकादशी के व्रत को करती आ रही हूँ। मेरे जीवनभर के पुण्य से आपका यह नगर स्थिर हो जायेगा, इसीलिए अपना सारा पुण्य मैं आपको अर्पित करती हूँ। चंद्रभागा के ऐसा करते ही देवपुर का ऐश्वर्य स्थिर हो जाता है, और सभी वहां आनंदपूर्वक रहने लगें।
यह भी पढ़ें –