सदियों बाद रामलला की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की स्थितियां बनी हैं क्योंकि मान्यता के अनुसार रामलला वहीं प्रकट हुई थे। पूर्व में वह वहीं प्रतिष्ठित भी थे किन्तु कालान्तर में कुछ ऐसा हुआ कि आस्थावान लोग रामलला को तम्बू के नीचे रखने को विवश हो गए। अब सदियों बाद 22 जनवरी को रामलला की पुनर्प्रतिष्ठा होने जा रही है। ऐसे में विद्वानों के बीच प्राण प्रतिष्ठा को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। कुछ एक चर्चाएं विवाद का भी रूप ले चुकी हैं। हम उस विवाद में पड़ने का प्रयास नहीं कर रहे हैं बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना मत रख रहे हैं।
यह मत उचित भी हो सकता है और अनुचित भी, यह निर्भर करेगा आपके नज़रिए पर। सभी विद्वानों के तर्क अपनी अपनी जगह पर मुझे ठीक लगे। इस मुहूर्त का विरोध करने वाले लोगों के तर्क भी अपनी जगह सही लग रहे हैं और मुहूर्त का समर्थन करने वाले लोगों के तर्क भी। अब आप कह सकते हैं कि दोनों तो सही हो नहीं सकते? सही तो कोई दो में से एक पक्षा ही होगा? होता है कई बार ऐसा होता जब ऐसी स्थितियां देखने को मिल जाती हैं जहां दोनो पक्ष अपनी-अपनी जगह पर सही होते हैं। इसी कारण से हम न तो किसी का समर्थन करने में समर्थ हैं और न ही खंडन।
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जड़ चेतन गुण दोषमय विश्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि विकार।
अर्थात: इस जड़ चेतन संसार की रचना करने वाले विधाता ने इस विश्व को गुण और दोष दोनों से युक्त कर रखा है लेकिन संत रूपी हंस हैं दूषित जल को छोड़कर शुद्ध जल प्राप्त कर ही लेते हैं। (नोट:- कुछ मामलों में “पय” का अर्थ दूध भी होता है।)
इसी तरह काल/समय भी गुण और दोषयुक्त होता है। ऐसे में जब गुण अधिक हों और दोष कम हों तो उस समय का वरण मुहूर्त के रूप में कर लिया जाता है। वैसे भी केवल मुहूर्त मात्र से भविष्य अच्छा रहने की गारंटी तो ली नहीं जाती। इस बात को हम एक-दो ऐसे उदाहरणों के माध्यम से समझते हैं जो हम सबके बीच के जुड़े हुए उदाहरण हैं।
पहला उदाहरण हम विवाह मुहूर्त का लेते हैं, किसी एक ही विवाह मुहूर्त में कई लोगों का विवाह होता है; जिनमें से कुछ लोगों का विवाह पूरी तरह से सफल और सुखद रहता है, कुछ लोग उतार-चढ़ाव सहते हुए जीवन यापन कर लेते हैं। तो वहीं कुछ लोगों का वैवाहिक जीवन बहुत ही कष्टमय रहता है। इसी तरह हम गृह प्रवेश मुहूर्त के मामले में पाते हैं कि किसी अच्छे मुहूर्त में गृह प्रवेश करने वाले कुछ लोगों को घर गृहस्थी का बहुत अच्छा सुख मिलता है, तो वहीं कुछ लोग छोटी-मोटी परेशानियों को बर्दाश्त करते हुए जीवन यापन कर लेते हैं लेकिन कुछ लोग गृह प्रवेश के बाद कष्ट भी पाते हैं।
इन उदाहरणों के माध्यम से हमें यह बात समझ में आती है कि, भले ही मुहूर्त एक हो और शुभ हो लेकिन प्रत्येक व्यक्ति का अपना अपना भाग्य होता है। उसके आधार पर भी उन्हें फल प्रतिफल मिलते हैं। इसके अलावा उनके कर्म व वास्तु दोष आदि का प्रभाव भी अपना प्रभाव दिखाता है। ऐसे में मेरे अनुभव में यह बात आती है कि मुहूर्त का पहला उद्देश्य संबंधित कार्य का निर्बाध रूप से संपन्न होना या करवाना होता है। क्योंकि जब शुरुआत या मुहूर्त ही निर्बाध और अच्छा रहेगा तो भविष्य में भी अच्छा होने की उम्मीद हम रख सकते हैं। यदि स्वयं का प्रारब्ध और स्वयं के कर्म खराब हों तो अकेले अच्छे मुहूर्त में कार्य करने मात्र से सब ठीक नहीं रहता।
मंदिर का सम्पूर्ण निर्माण ना होना- क्या है अर्थ?
वर्तमान में जिस बात को सबसे ज्यादा अनुचित कहा जा रहा है वह है, मंदिर का सम्पूर्ण निर्माण न होना। इस मामले में विद्वानों का यह भी मत है कि देव प्रतिष्ठा दो तरह से होती है एक संपूर्ण निर्माण हो जाने पर और दूसरा मंदिर का काम शेष रहने किंतु गर्भगृह की संपूर्ण होने पर, दरवाजे लग जाने पर। यहां गर्भगृह बन गया है, दरवाजे लग गए हैं इसलिए प्राण प्रतिष्ठा में दोष नहीं माना जाएगा, बल्कि पूरा निर्माण कार्य होने के बाद कलश स्थापित किया जाएगा।
संपूर्ण मंदिर बन जाने के बाद ऊपर कलश की प्रतिष्ठा सन्यासी के द्वारा करने की परंपरा रही है। भविष्य में यहां की भी कलश स्थापना किसी उत्तम मुहुर्त में किसी संन्यासी के द्वारा कराई जा सकेगी। ऐसे कई प्रमाण और ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध हैं जो इस मान्यता को बल देते हैं कि अधूरे बने मंदिर में भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह हो सकता है। अगर मंदिर का शिखर व कलश स्थापित नहीं है, तब भी प्राण प्रतिष्ठा इसके पहले भी हुई है। शिखर बन जाने के बाद शिखर का प्रतिष्ठा समारोह अलग से किया जा सकता है।
पौष माह का विवाद
दूसरा विवाद पौष माह को लेकर है। यद्यपि देवप्रतिष्ठा के लिए कई शास्त्रज्ञ पौष माह को अच्छा नहीं मानते हैं लेकिन आचार्य बृहस्पति पौष माह में देव प्रतिष्ठा को राज्यप्रद मानते हैं। इसी तरह सूर्य के उत्तरायण होने पर पौष माह के दोष के समन होने की बात भी कुछ विद्वान करते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि नक्षत्र का वेद पंचशलाका का विवाह तथा सप्तशलाका अन्य कार्यों में विचरण होती है। वहीं जो लोग अभिजित नक्षत्र को मानते हैं उनके अनुसार 22 जनवरी के दिन सूर्य की डिग्री 7:30 डिग्री से ऊपर होगी जबकि अभी तो नक्षत्र की शुरुआत 6:40 डिग्री से ही हो जाती है। इस कारण से सूर्य अभिजित नक्षत्र में होगा और वेध का दोष भी समाप्त हो जाएगा।
हालांकि कुछ विद्वान इस तर्क को मानने के लिए राजी नहीं हैं। इतना ही नहीं कुछ विद्वानों के अनुसार चंद्रमा की दृष्टि से भले ही यह पौष मास हो किंतु सौर मास की दृष्टि से यह माघ का महीना होगा। यानी कि इस मामले में विद्वानों में मतभेद है। इतना ही नहीं दक्षिण भारत के विद्वानों व उत्तर भारत के विद्वानों के मत में कुछ भेद विभेद देखने को मिल भी जाता है। इन्हीं सब कारणों से इस मुहूर्त को लेकर मतान्तर देखने को मिल रहा है।
यदि हम बात करें रामलला के विग्रह में प्राण प्रतिष्ठा के बारे में तो भगवान “रामलला विराजमान” का चर विग्रह वहां पर पहले से विराजमान है। उस विग्रह के सानिध्य में एक नई प्रतिमा के नए विग्रह में प्राण प्रतिष्ठा की बात चल रही है। अर्थात वहां पर पहले से ही रामत्व और देवत्व मौजूद हैं, स्थापित हैं। वैसे पहले से प्रतिष्ठित विग्रह और तत्व के लिए किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती लेकिन यह मुहूर्त इस उद्देश्य से निकाला गया प्रतीत हो रहा है जिससे देश और समाज का भला हो।
जिस मुहूर्त में पूजन करने से राष्ट्र का विकास हो, राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो यानी कि यहां पर प्राण प्रतिष्ठा निमित्त मात्र है। आस्थावान लोगों के लिए यह कर्मकांड का एक चरण मात्र है कि हम भगवान का आवाहन करेंगे। “रामलला विराजमान” के रूप में भगवान वहां पहले से स्थापित हैं, पहले से मौजूद हैं। वहां पर चर विग्रह जो 1949 से पूजित हैं, पहले से ही वहां मौजूद हैं बस कर्मकांड के लिए एक मुहूर्त चाहिए था जो 22 जनवरी 2024 को निर्धारित किया गया है। यानी मुहूर्त रामलला के विग्रह के लिए नहीं बल्कि कर्मकांड के लिए जरूरी था, उसके लिए यह मुहूर्त शोधन किया गया है।
हमारे कुछ सोर्सेज की माने तो इस चरण के लिए भी वहां काफ़ी दिनो से पूजा पाठ, कर्मकाण्ड आदि चल रहा है। यानी कि भले ही अनावरण/उद्घाटन या कथित प्रतिष्ठा मुहूर्त 22 जनवरी 2024 को निर्धारित किया गया लेकिन कुछ पूजन अनुष्ठान कुछ महीनों से चल रहा है। जो 84 सेकेंड का मुहूर्त है उसमें भी कुछ विशेष सेकेंड होंगे जो स्थीनीय समयानुसार संशोधित किए गए हैं उनके आधार पर अनावरण या कथित प्रतिष्ठा की जानी है।
ध्यान देने वाली बात यह कि बहुत सारे धार्मिक कार्य या अनुष्ठान गुप्त रूप से किए जाते हैं। अत: जरूरी नहीं कि मीडिया के माध्यम से जो बातें हम तक पहुंच रही हैं वो उसी तरह हों। मुहूर्त शोधन मूर्धन्य विद्वानों के द्वारा किया गया है। अत: इस बात का ज्यादा बतंगड़ बनाना ठीक नहीं होगा। शंकराचार्य जी का विरोध अपनी जगह बिल्कुल ठीक हो सकता है लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि जो बाते जिस तरह प्रतीत हो रही हैं वह भिन्न हों।
लग्न शोधन- मुहूर्त उचित या अनुचित?
खैर अब हम चर्चा करेंगे लग्न शोधन की तो इसके बारे में विद्वानों का कहना है कि,
चराश्च गुरुणा दृष्ट्वा प्रतिष्ठायां सुशोभना:
शुभग्रहयुते राशौ चरः शोभनतां ब्रजेत्॥
यानी कि यदि चर लग्न हो, वह गुरु से युत या दृष्ट हो तब देव प्रतिष्ठा के लिए शुभ है। यानी कि इस सूत्र के अनुसार लग्न बिल्कुल उचित है।
इसी मामले में अगला सूत्र है कि…
एकोऽपि जीवो वलवांतनुस्थः सितोऽपि सौम्योऽप्यथवा बली चेत्।
दोषोनशेधान्विनिहन्ति सद्यः स्कन्दो यथा तारक दैत्यवर्गम्॥
यानी कि यदि लग्न में गुरु, शुक्र, बुध में से कोई भी एक ग्रह बलवान होकर स्थित हो तो वह समस्त दोषों को समाप्त कर देता है। यानी कि जो मुहूर्त कथित प्रतिष्ठा के लिए निकाला गया है उसमें यह सूत्र भी लागू होता है। मुहूर्त लग्न को बलवान बताने के लिए एक नियम यह भी कहता है कि लग्न का स्वामी जब केंद्र त्रिकोण अथवा उपचय स्थानों में कहीं भी हो, चाहे वह शुभ ग्रह हो अथवा अशुभ ग्रह; तो वह सभी दोषों को नष्ट कर देता है।
ऊपर से कथित प्रतिष्ठा के समय अभिजीत मुहूर्त भी रहेगा इसे भी समस्त दोषों को नष्ट करने वाला कहा गया है। इस तरह से कथित प्रतिष्ठा के लिए जो लग्न मुहूर्त शोधित किया गया है जो दिन के 12:29 और 8 सेकंड से लेकर 12:30 और 32 सेकंड अर्थात 84 सेकंड का रहेगा; वह अनुकूल और उचित सिद्ध हो रहा है।
22 जनवरी 2024 को 12 बजकर 29 मिनट और 8 सेकंड से लेकर 12 बजकर 30 मिनट और 32 सेकंड अर्थात 84 सेकंड की अवधि के समय मेष लग्न, वृश्चिक (स्थिर नवांश), अभिजित मुहूर्त, मृगशिरा नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, रवि योग जैसे शुभत्त्व को बढ़ाने वाली स्थितियां निर्मित हो रही हैं।
मुहूर्त लग्न के समय लग्न का स्वामी मंगल भाग्य स्थान पर है और भाग्य स्थान का स्वामी बृहस्पति लग्न भाव में है। यानी धर्म का और मुहूर्त लग्न का सुंदर संगम हो रहा है। दोनों के स्वामियों का एक दूसरे से एक्सचेंज है जो उत्तम स्थिति मानी जाएगी। कुंडली का चौथा भाव भावना का होता है, जन भावना का होता है और चंद्रमा चतुर्थ भाव का कारक भी है तथा इस मुहूर्त कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी भी है। ऐसी स्थिति में चंद्रमा का उच्च का होना जनभावना को संतुष्ट करने या संतुष्ट होने का द्योतक है।
राम मंदिर का निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा जनभावना से जुड़ा हुआ विषय ही है। ऐसी स्थिति में चंद्रमा की उत्तम स्थिति जनभावना को संतुष्ट करने का काम करेगी। मुहूर्त कुंडली में बृहस्पति प्रथम भाव में है। भगवान राम की प्रचलित कुंडली में भी बृहस्पति पहले भाव में ही था। भगवान राम का जन्म भी अभिजीत मुहूर्त में हुआ था और कथित प्रतिष्ठा भी अभिजीत मुहूर्त में ही हो रही है।
धर्म का कारक बृहस्पति पहले भाव में होकर पंचम भाव जो पूर्व जन्म के पुण्य का भाव होता है, साथ ही साथ धर्म भाव से नवम भाव होने के कारण यहां से भी धर्म कर्म का विचार किया जाता है। बृहस्पति की दृष्टि पड़ने के कारण यह धर्म और ज्ञान के बढ़ने का संकेतक है। सप्तम भाव में बृहस्पति की दृष्टि न केवल देश की सुख समृद्धि के बढ़ने का संकेतक है बल्कि इस कार्य से देश के भीतर विशेषकर अवध क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि होने की भी संकेतक है।
इतना ही नहीं बृहस्पति की सप्तम भाव पर दृष्टि स्त्री वर्ग के लिए भी हितकर कही जाएगी। साथ ही साथ बृहस्पति की धर्म भाव पर दृष्टि धर्म की स्थापना, संस्थापना के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह धार्मिक कार्य, धर्म-कर्म को भी बल प्रदान करेगी। ऐसा प्रत्यक्ष भी नजर आ रहा है और मुहूर्त कुंडली का भी यही संकेत है।
ऊपर से जब मामला प्रभु का हो तो फ़िर क्या लग्न क्या मुहूर्त। “जाकर नाम सुनत शुभ होई” अर्थात जिससे नाम को सुनने मात्र से शुभता बढ़ जाती है, जिससे जन्म लेने से रिक्ता तिथि भी पूर्ण होने का भान कराती है, जिनके आने से सारे ग्रह नक्षत्र अनुकूल हो जाते हैं, इसका वर्णन स्पष्ट रूप से रामचरितमानस में मिलता है। तुलसीदास जी लिखते हैं कि,
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥
अर्थात प्रभु श्री राम के जन्म के समय योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए। जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए। (क्योंकि) श्री राम का जन्म सुख का मूल है॥ रामचरितमानस में ही
राम से संबंधित एक प्रसंग है कि जब राजा दशरथ भगवान श्री राम के राज्य अभिषेक के लिए महर्षि वशिष्ठ से शुभ मुहूर्त निकालने के लिए कहते हैं तब ज्योतिष शास्त्र के अष्टादश प्रवर्तकों में से प्रमुख महर्षि वशिष्ठ कहते हैं,
बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।
अर्थात हे राजन्! अब देर मत कीजिये; सारी तैयारियाँ करिए क्योंकि शुभ दिन और सुन्दर मङ्गल तभी है जब श्रीरामचन्द्रजी युवराज हो जायँ। यानी कि राम के लिये, राम से संबंधित कार्य के लिए सभी दिन शुभ और मङ्गलमय हैं। इस दृष्टि से श्री राम मंदिर के निर्माण के लिए, भूमि पूजन के लिए अथवा प्रतिष्ठा के लिए प्रत्येक क्षण मुहूर्त की तरह है। इन तमाम तर्कों और तथ्यों के दृष्टिकोण से तो 22 जनवरी 2024 के दिन का कथित प्रतिष्ठा मुहूर्त उचित ही प्रतीत हो रहा है।
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