ज़रूर सुने प्रदोष व्रत की यह कथा, मिलेगा आपको मनवाँछित फल !

हर माह के शुक्ल व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से शिव और शक्ति को समर्पित है, जिसमें उनकी स्तुति की जाती है। उत्तर भारत में इसे प्रदोष व्रत और दक्षिण भारत में प्रदोषम के नाम से जाना जाता है। एक साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। सात वारों के हिसाब से सात प्रदोष व्रत हैं। इस व्रत का फल प्रत्येक वार के अनुसार बदल जाता है। प्रदोष व्रत को स्त्री तथा पुरूष दोनों कर सकते हैं। कल के दिन प्रदोष व्रत मनाया जायेगा। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिवार का प्रदोष व्रत यदि निःसंतान दंपत्ति करते हैं, तो उन्हें बहुत जल्द संतान सुख प्राप्त होता है। वहीं बुधवार का प्रदोष व्रत व्यक्ति अपने समृद्ध जीवन की कामना के लिए करता है। स्कंद पुराण में बताया गया है कि आप चाहे कोई भी प्रदोष व्रत करें, लेकिन सच्चे मन से पूजा-पाठ कर, प्रदोष व्रत कथा सुनने पर व्यक्ति को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। तो चलिए आज  इस लेख में आपको प्रदोष व्रत की कथा बताते हैं –  

प्रदोष व्रत की कथा

स्कंद पुराण में दी गयी एक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक गांव में एक गरीब विधवा ब्राह्मणी और उसका एक पुत्र रहता था। दोनों अपने भरण पोषण के लिए रोज़ भिक्षा मांगते थे और जो कुछ भी मिलता था, उससे अपना पेट भरते थे। हर रोज़ की तरह एक दिन वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी, अचानक उसे नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक दिखा। ब्राह्मणी उसे नहीं जानती थी। दरअसल वह बच्चा विदर्भ देश का राजकुमार, धर्मगुप्त था। उस बालक के पिता विदर्भ देश के राजा थे, जो युद्ध में दुश्मनों के द्वारा मारे गए और उनका सारा राज्य दुश्मनों ने अपने अधीन कर लिया। 

पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी। अनाथ बालक की हालत को देख ब्राह्मणी को उसपर बहुत दया आयी और वह धर्मगुप्त का पालन-पोषण भी अपने पुत्र के समान करने लगी। कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी की भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। उन्होंने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को पूरे वधि-विधान के साथ प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि के बताये नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया। कुछ दिनों बाद दोनों बालक जंगल में घूम रहे थे, तभी उन्हें  बेहद सुन्दर गंधर्व कन्याएं नजर आईं। 

अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर राजकुमार धर्मगुप्त आकर्षित हो गए। कुछ समय बाद दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। गंधर्व कन्या अंशुमती ने राजकुमार धर्मगुप्त को विवाह के लिए अपने पिता गंधर्वराज से मिलने को कहा। जब कन्या के पिता को यह पता चला कि वह कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि विदर्भ देश का राजकुमार है, तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह करा दिया। राजकुमार धर्मगुप्त ने कड़ी मेहनत से दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया, और विदर्भ देश पर वापस अधिपत्य प्राप्त कर लिया।

कुछ समय बाद धर्मगुप्त को यह ज्ञात हुआ, कि बीते समय में उसे जो कुछ भी हासिल हुआ है, वह उनके द्वारा किये प्रदोष व्रत का फल था। तभी से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन पूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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