पित्तरों के मोक्ष के लिए ऐसे करें श्राद्ध कर्म! पितृ तर्पण करने से होता है पीड़ियों का उद्धार और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन।
हिन्दू पंचांग की भाद्रपद पूर्णिमा तिथि को श्राद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह तिथि हिन्दुओं की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण है। इस तिथि के बाद से ही अश्विन कृष्ण पक्ष प्रारंभ हो जाता है। जिसे पितृ पक्ष कहते हैं। पितृ पक्ष का समापना अश्विन अमावस्या को होता है। इस वर्ष पितृ पक्ष 13 सितंबर से शुरु हो रहे हैं, जो 28 सितंबर को समाप्त होंगे। पितृ पक्ष हमारे लिए पूर्वजों के प्रति ऋण उतारने का अवसर होता है। उनके प्रति सम्मान, आदर भाव प्रकट करने का अवसर होता है। शास्त्रों में मनुष्यों के तीन ऋण देव, ऋषि और पितृ ऋण बताए गए हैं। श्राद्ध कर्म से पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है।
पितृ पक्ष 2019 की तिथि एवं वार
तारीख़ | दिन | श्राद्ध |
13 सितंबर 2019 | शुक्रवार | पूर्णिमा श्राद्ध |
14 सितंबर 2019 | शनिवार | भाद्रपद पूर्णिमा व्रत |
15 सितंबर 2019 | रविवार | प्रतिपदा श्राद्ध |
16 सितंबर 2019 | सोमवार | द्वितीया श्राद्ध |
17 सितंबर 2019 | मंगलवार | तृतीया श्राद्ध |
18 सितंबर 2019 | बुधवार | चतुर्थी श्राद्ध |
19 सितंबर 2019 | गुरुवार | पंचमी श्राद्ध |
20 सितंबर 2019 | शुक्रवार | षष्ठी श्राद्ध |
21 सितंबर 2019 | शनिवार | सप्तमी श्राद्ध |
22 सितंबर 2019 | रविवार | अष्टमी श्राद्ध |
23 सितंबर 2019 | सोमवार | नवमी श्राद्ध |
24 सितंबर 2019 | मंगलवार | दशमी श्राद्ध |
25 सितंबर 2019 | बुधवार | एकादशी श्राद्ध |
26 सितंबर 2019 | गुरुवार | द्वादशी श्राद्ध |
27 सितंबर 2019 | शुक्रवार | त्रयोदशी/चतुर्दशी श्राद्ध |
28 सितंबर 2019 | शनिवार | अमावस्या श्राद्ध |
पितृ पक्ष में पितरों के लिए होता श्राद्ध कर्म
हमारे पूर्वजों की वजह से ही हमारा अस्तित्व ज़िंदा है। पितृ पक्ष में हमारे दिवंगत पूर्वजों के लिए श्राद्ध कार्यक्रम किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध करने से हमारे पितृगण प्रसन्न होते हैं और मनुष्य का सौभाग्य बढ़ता है। इस पूरे पक्ष में न तो कोई शुभ कार्य किया जाता है और न ही नए वस्त्र बनवाए अथवा ख़रीदे जाते हैं। इस पक्ष में शरीर पर तेल मालिश व बाल कटवाना भी वर्जित माना जाता है।
परिवार में जिन व्यक्तियों की आकस्मिक अथवा अप्राकृतिक मौत हो जाती है तो उनकी आत्माओं की तृप्ति के लिए भी श्राद्ध का महत्व है। वहीं ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से कुंडली में बनने वाले काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
श्राद्ध से जुड़े विशेष नियम
श्राद्ध के दो प्रकार हैं – पार्वण और एकोदिष्ट। श्राद्ध के इन दो प्रकारों का भेद समझना हमारे लिए आवश्यक है। पार्वण श्राद्ध अपराह्न काल का होता है जो मृत्यु के दिन सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बारहवें मुहूर्त तक किया जाता है। पार्वण श्राद्ध में पिता, दादा, पड़-दादा, नाना, पड़-नाना तथा इनकी पत्नियों का श्राद्ध किया जाता है। वहीं एकोदिष्टि श्राद्ध मध्याह्न काल में सातवें मुहूर्त से लेकर नौवें मुहूर्त तक मृत्यु तिथि पर किया जाता है। इसमें गुरु, ससुर, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा, शिष्य, फूफा, पुत्र, मित्र व इन सभी की पत्नियों का श्राद्ध किया जाता है।
दिवंगत पूर्वजों के श्राद्ध कर्म से तिथि
- जिस संबंधी की मृत्यु जिस चंद्र तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध आश्विन कृष्णपक्ष की उसी तिथि के दोबारा आने पर किया जाता है।
- सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है।
- सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी तिथि को किया जाता है।
- विमान दुर्घटना, सर्प के काटने, जहर, शस्त्र प्रहार आदि से मृत्यु को प्राप्त हुए संबंधियों का श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए।
- जिन संबंधियों की मृत्यु तिथि पता न हो उनका श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है।
- जिन लोगों की मृत्यु तिथि पूर्णिमा हो उनका श्राद्ध भाद्रपद पूर्णिमा अथवा आश्विन अमावस्या को किया जाता है।
श्राद्ध कर्म विधि
- पितृ पक्ष में जिस भी तिथि को श्राद्ध कर्म करना है उस दिन प्रातः जल्दी उठें।
- गंगाजल से अथवा किसी पवित्र नदीं में स्नान करें।
- तिल, अक्षत, और कुशा (घास) को हाथ में लेकर पित्तरों को जलांजलि अर्पित करें।
- श्राद्ध नियमों के अनुसार मध्याह्न या अपराह्न काल में श्राद्ध कर्म करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराकर ही स्वयं भोजन करें।
गया में पिण्डदान का होता विशेष महत्व
गया (बिहार) फल्गु नदी के तट पर स्थित प्राचीन शहर है। पितृ पक्ष के अवसर पर यहाँ देश-विदेश से पित्तरों का तर्पण करने के लिए आते हैं। मान्यता है कि पितृ पक्ष के अवसर पर गया में पिण्डदान करने से मृत व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। उसकी आत्मा जीवन-मरण के चक्र से निकल जाती है। साथ ही पिण्डदान करने वाले व्यक्ति की आने वाली सात पीड़ियों का भी उद्धार हो जाता है।
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