भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में सूर्य और राहू जिस भी भाव में बैठते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट कर देता हैं और इन दोनों ग्रहों के योग और दृष्टि पात से व्यक्ति की कुंडली में एक ऐसा दोष उत्पन्न होता है जो कि व्यक्ति के सभी सुखों को छीन अनेक दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है। इस दोष को पितृदोष के नाम से जाना जाता है। अगर आप भी अपनी कुंडली में मौजूद दोष आदि और उनसे बचाव के विषय में जानना चाहते हैं तो हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषियों से प्रश्न पूछकर उनसे उचित परामर्श लें और अपनी समस्याओं का हल जानें।
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ज्योतिष के अनुसार पितृदोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। जन्मपत्री में यदि सूर्य पर शनि और राहु-केतु की दृष्टि या युति के द्वारा प्रभाव हो, तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। ऐसी स्थिति में जातक के सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक उन्नति में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती हैं। अपनी व्यक्तिगत बृहत् कुंडली की मदद से आप जान सकते हैं कि आपके जीवन में कौन से शुभ और अशुभ योग हैं।
क्यों लगता है पितृदोष
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माना गया है कि परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्माननीय लोगों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध न करने से, उनका वार्षिक श्राद्ध न करने से पितरों का दोष लगता है। इसके फलस्वरूप पितृदोष के कारण परिवार में अशांति, वंशवृद्धि में रुकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख-सुविधाएं होते हुए भी मन असंतुष्ट रहना आदि हो सकता है।
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जन्म कुंडली में पितृदोष कब और कैसे?
ज्योतिष और पुराणों मे भी पितृदोष के संबंध में अलग-अलग धारणा दिए गए हैं, लेकिन यह दोष हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा है। जब तक इस दोष का निवारण नहीं कर लिया जाए, यह दोष खत्म नहीं होता है। यह दोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है यानि यदि पिता की कुंडली में पितृदोष है और उसने इसकी शांति नहीं कराई है, तो संतान की कुंडली में भी यह दोष देखा जाता है।
जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद सही तरीके से उसका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो, तो मान्यता है उनकी आत्मा घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट “पितृदोष” के रूप में जातक की कुंडली में दिखता है।
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किन योगों के होने पर होता है पितृ-दोष
कुंडली में राहु का प्रभाव ज्यादा हो या निम्नलिखित स्थितियों में राहु हो, तो पितृ-दोष की समस्या हो जाती है।
- राहु अगर कुंडली के केंद्र स्थानों या त्रिकोण में हो।
- अगर राहु का सम्बन्ध सूर्य या चन्द्र से हो।
- अगर राहु का सम्बन्ध शनि या बृहस्पति से हो।
- राहु अगर द्वितीय या अष्टम भाव में हो।
जन्म कुंडली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है। यह पिता का घर भी होता है। अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है, तो यह सूचित करता है कि पूर्वजों की कुछ इच्छायें अधूरी रह गयी थी। सूर्य, मंगल, शनि प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते हैं, लेकिन ज्योतिष में राहु और केतु सभी लग्नों व राशियों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं। नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित हो तो यह पितृ दोष कहा जाता है।
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पितृदोष से जुड़े कुछ साधारण उपाय
- घर में श्रीमद्भागवत के गजेंद्र मोक्ष अध्याय का पाठ करें।
- हर चतुर्दशी (अमावस्या और पूर्णिमा के एक दिन पहले) को पीपल पर दूध चढ़ाएं।
- सवा किलो चावल लाकर रोज अपने ऊपर से एक मुट्ठी चावल सात बार उतारकर पीपल की जड़ में डाल दें। ऐसा लगातार 41 दिन करें।
- कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो, तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर और उसपर हार चढ़ाकर रोज़ाना उनकी पूजा स्तुति करनी चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
- अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर ज़रूरतमंदों अथवा ज्ञानी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।
- काले कुत्ते को उड़द के आटे से बने बड़े हर शनिवार को खिलाएं।
- घर के आसपास पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल चढ़ाएं। इसके साथ ही पुष्प, अक्षत, दूध, गंगा जल और काले तिल भी अर्पित करें। हाथ जोड़कर पूर्वजों से अपनी ग़लतियों के लिए क्षमा-याचना करें और उनसे आशीर्वाद माँगें।
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आशा है कि पितृ दोष के बारे में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी।
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