जैनधर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक पर्युषण आज समाप्त हो रहा है और इसके साथ ही साथ आज संवत्सरी महापर्व मनाया जाएगा। श्वेताम्बर जैन समाज में मनाये जाने वाले इस पर्व को विशेष रूप क्षमा और मित्रता का प्रतीक माना जाता है। हर साल मनाये जाने वाले इस त्यौहार को विशेष रूप से अपने अंदर क्षमा की भावना उत्पन्न करने और लोगों में मित्रता का भाव जागृत करने के लिए प्रमुख माना जाता है। आज हम आपको इस त्यौहार से जुड़े प्रमुख तथ्यों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
क्षमा और मित्रता का संदेश देता है संवत्सरी पर्व
आपको बता दें कि श्वेतांबर जैन धर्म का महापर्व पर्युषण के समाप्ति के साथ ही आज 3 सितंबर को संवत्सरी महापर्व मनाया जा रहा है। इस त्यौहार को मुख्य रूप से क्षमा और मित्रता का संदेश देने वाले पर्व के रूप में मनाया जाता है। पर्युषण पर्व को मुख्य रूप से आत्म शुद्धि के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य ये है कि इस दिन विशेष रूप से व्यक्ति अपने अंदर क्षमा की भावना को जागृत करे और दूसरों के प्रति मित्रता का भाव रखे। जैनधर्म का ये प्रमुख पर्व मुख्य रूप से इस बात का संदेश देता है कि आप अपने आप को स्वाध्याय, व्रत, प्रवचन आदि के लिए किस प्रकार से तैयार करते हैं। इसके साथ ही अपने अंतर्मन को साफ़ करते हुए खुद के भीतर किस प्रकार से दूसरों के प्रति मित्रता की भावना को जागृत करते हैं।
पर्युषण पर्व का महत्व
आपको बता दें कि 27 अगस्त से आरंभ होकर आज 3 सितंबर को अंत होने वाले इस त्यौहार को मुख्य रूप से हर साल जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर अनुयायियों द्वारा भादो माह में मनाया जाता है। इस दौरान जैन धर्म के अनुयायी महावीर भगवान् के नाम पर उपवास रखते हैं और अपने आत्मा की शुद्धि एक लिए प्रयासरत रहते हैं। इस दौरान जहाँ श्वेतांबर समाज के अनुयायी आठ दिनों का व्रत रखते हैं, वहीं दिगंबर समाज के अनुयायी दस दिनों तक उपवास रखकर पर्युषण पर्व मनाते हैं। बता दें कि श्वेतांबर समाज इसे अष्टान्हिका और दिगंबर समाज इसे दसलक्षण के नाम से जानते है। बता दें कि ये पर्व मुख्य रूप से जैन धर्म के पांच सिद्धांतों पर आधारित है, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, सत्य और अपरिग्रह। इस त्यौहार के दौरान जैन धर्म के अनुयायी मुख्य रूप से इन पांच सिद्धांतों को अपने जीवन में ढालने के लिए उपवास रखते हैं। इस त्यौहार को मनाये जाने के पीछे मुख्य उद्देश्य ये है की व्यक्ति अपने मन के सभी विकारों को खत्म करे। जैसे की मन में उठने वाले बुरे विचार, कुंठा, दूसरों का अहित आदि। सवंत्सरी महापर्व को इसलिए मनाया जाता है की ताकि व्यक्ति इस अंतराल में आत्म शुद्धि के बाद स्वयं को धर्म के मार्ग पर लेकर चलता है।